गुरुवार, सितंबर 02, 2010

अघोरवासा की एक रात



रात के बारह बज चुके थे ।
उस वातानुकूलित कमरे में नतालिया, मनोहर और सवेटा मौजूद थे ।
सवेटा इंटरनेट पर किसी फ़्रेंड से चैटिंग में व्यस्त थी, और नतालिया बेड पर मनोहर के पास ही तीन तकियों के सहारे अधलेटी सी बैठी थी । उन्होंने कुछ ही देर पहले सेक्स किया था । जिसमें सवेटा ने इच्छा न होने से भाग तो नहीं लिया था । पर बाहरी तौर पर उनका साथ देते हुये उसने पूरा एन्जाय अवश्य किया था ।
नतालिया ने अभी भी वस्त्र नहीं पहने थे, और पैरों पर एक चादर डाले, वो एक पतली सी लम्बी विदेशी सिगरेट के कश लगा रही थी । मनोहर ने प्रायः लेडीज सिगरेट का टेस्ट कम ही लिया था । अतः उसने भी उसके सिगरेट बाक्स से एक सिगरेट निकाल कर सुलगा ली ।
नतालिया से उसकी पहचान दस महीने पहले इंटरनेट के जरिये ही हुयी थी । वह यूनाइटेड किंगडम के एक पब्लिकेशन के लिये सीनियर रिपोर्टर का कार्य करती थी, और न्यूयार्क में रहती थी । नतालिया बत्तीस की हो चुकी थी । उसके परिवार में उसकी एक छोटी बहन और माँ के अलावा कोई न था । उसके पिता जीवित थे पर उनका आपस में तलाक हो चुका था ।
नतालिया ने विवाह तो नही किया था । पर छह साल तक मार्टिन के साथ रहने के बाद उनकी फ़्रेंडशिप में दरार पङ गयी, और वे स्वेच्छा से अलग अलग रहने लगे ।
मार्टिन से नतालिया को चार साल का एक लङका भी था ।
नतालिया भारत में मैगजीन के काम से, यानी भारत के अघोरी साधुओं पर एक विस्त्रत रिपोर्ट तैयार करने के लिये आयी थी । एडीटर द्वारा जब ये काम उसे सौंपा गया, तो नतालिया को स्वतः ही मनोहर का नाम याद आया, और उसने फ़ोन पर अपने आने की सूचना दी ।
मनोहर ने उसे समझाना चाहा कि अघोरियों की रिपोर्टिंग करना तुम्हारे बस की बात नहीं है । अतः अपने एडीटर को बोलो कि इस काम के लिये किसी पुरुष रिपोर्टर को भेजे ।
तब उसने जबाब दिया कि एक तो वह इंडिया आना चाहती है, और दूसरे उसकी निजी ख्वाहिश है, कि वो अघोरियों को पास से देखे, और इस तरह से घूमने में उसका एक भी पैसा खर्च नहीं होगा, और रही बात पुरुष की, तो उसके लिये तुम हो तो, माय डियर हीमैन ।
अब आगे कहने के लिये जैसे उसके पास कुछ बचा ही नहीं था ।
फ़िर चौथे दिन नतालिया अपनी फ़्रेंड सवेटा के साथ, इंडिया में, उसके घर में, उसके बेडरूम में साधिकार मौजूद थी । सिगरेट के कश लगाता हुआ मनोहर एक ही बात सोच रहा था कि औरत अभी कितनी तरक्की और करेगी । दो लगभग अनजान लङकियाँ उसके अकेले के बेडरूम में कुछ देर की चुहलबाजी के बाद सेक्स करती हैं, और बिना किसी औपचारिकता के इस तरह बर्ताव करती हैं । मानो उनकी जान पहचान बहुत पुरानी हो ।
- क्या सोच रहे हो मनोहर? अचानक नतालिया ने उसकी तरफ़ देखते हुये अंग्रेजी में कहा ।
- यही कि मुसीबत, कभी पहले से बताकर नहीं आती । उसने अफ़सोस सा प्रकट करते हुये कहा ।
इसके साथ ही कमरा उन दोनों की मधुर खिलखिलाहट से गूँज उठा ।
सवेटा ने कम्प्यूटर आफ़ कर दिया था ।
फ़िर उसने लाइट भी आफ़ कर दी, और लगभग जम्पिंग स्टायल में बेड पर आ गयी ।
अब सवेटा सेक्स के लिये इच्छुक हो रही थी । पर उसे और नतालिया को नींद आ रही थी ।
अतः वे गुडनाइट करके सो गये ।
-------------

सुबह जब वह नतालिया के साथ ब्रेकफ़ास्ट ले रहा था, तब उसकी बात की गम्भीरता उसे समझ में आयी । दरअसल उसके सहयोग से यदि नतालिया बेहतरीन रिपोर्टिंग करने में कामयाब हो जाती, तो उस वीडियो से न सिर्फ़ वह ढेरों डालर कमा सकती थी, बल्कि उसका कैरियर भी चमक सकता था ।
इसलिये जिस बात को वह बेहद हल्के से ले रहा था, यानी कि पास के कुछ घाटों पर मध्यम किस्म के अघोरियों का इंटरव्यू करवा देना, वो इरादा अब उसने बदल दिया था, और अब वह पूरा पूरा रिस्क उठाकर उसे ‘झूलीखार’ के जंगलों में एक रात के लिये ले जाना चाहता था । जहाँ बेहद खतरनाक किस्म के अघोरी बाबाओं का जमावङा रहता था । उसने अपने मित्र सुनील को फ़ोन किया कि अपनी स्पेशियो गाङी ड्राइवर के हाथों उसके पास भिजवा दे ।
‘झूलीखार’ जंगल बसेरबा पुल से चालीस किलोमीटर अंदर की तरफ़ था, और कोई भी आदमी दिन में भी वहाँ जाने की हिम्मत नहीं करता था । बसेरबा पुल से पाँच किलोमीटर अन्दर चलकर एक शमशान था । बस वहीं तक पास के गाँवों के लोग पशु आदि चराने जाते थे । लेकिन वे शमशान के पास जाने में भी परहेज करते थे । क्योंकि एक तो उसका माहौल ही बेहद डरावना था, और दूसरे वहाँ से खतरनाक अघोरियों का इलाका शुरू हो जाता था ।
बसेरबा पुल से ही धङधङाकर बहती हुयी गंगा नहर शमशान तक पहुँचते पहुँचते मानो रौद्र रूप धारण कर लेती थी, और उस पर जगह जगह घूमते काले भयानक अघोरी जो देह पर चिता की राख मले रहते थे । आम लोगों के दिलों में खौफ़ पैदा करने के लिये पर्याप्त थे । शमशान के बाद ही अक्सर उनके द्वारा खायी गयी मानव लाशों के सङे टुकङे किसी भी जिगरवाले का दिल हिला देने के लिये काफ़ी थे ।
झूलीखार का जंगल इतने घने वृक्षों से आच्छादित था कि दिन के समय में भी रात का सा आभास होता था, और उसकी वजह यही थी कि अघोरियों के डर से कभी भी कोई लकङी या वृक्ष काटने नहीं जाता था । मनोहर इससे पहले तीन बार झूलीखार जा चुका था । पर इस बार जो हल्की सी घबराहट उसे हो रही थी । वो इससे पहले कभी नहीं हुयी थी, और इसकी मुख्य वजह उसके साथ जाने वाले उसके विदेशी मेहमान ही थे ।
हालांकि नतालिया और सवेटा अपनी तरफ़ से पूरी दिलेरी दिखा रही थी । पर वास्तविकता में मनोहर जानता था कि झूलीखार पहुँचते ही इनकी सिट्टीपिट्टी गुम हो जाने वाली थी, और वास्तव में अन्दर ही अन्दर वह यह भी सोच रहा था कि इन्हें झूलीखार ले जाने का उसका निर्णय सही था, या गलत । पर वह ठीक ठीक कोई निर्णय नहीं ले पा रहा था ।
दरअसल, वह झूलीखार लगभग चार साल बाद जा रहा था, और इतने समय में वहाँ कई नये अघोरी इकठ्ठे हो गये, हो सकते थे । फ़िर उसके परिचित अघोरी साधु मिलें, या न मिलें । इसकी भी कोई गारंटी नहीं थी । नये अघोरी अधिक संख्या में भी हो सकते थे, जबकि दो जवान युवतियों के साथ अकेला सिर्फ़ वह ही था । रात को अघोरी कच्ची शराब पीकर अक्सर उन्मत्त हो जाते थे । तब हो सकता था कि जवान खूबसूरत लङकियों को देखकर उनका संयम टूट जाय, और वे लङकियों के साथ सामूहिक रूप से बलात्कार कर बैठें ।
ऐसी तमाम बातें एक के बाद एक उसके दिलोदिमाग में चक्कर काट रही थीं । जब नतालिया ने यकायक उसकी आँखों के आगे हाथ हिलाते हुये ‘हेलो..हेलो’ कहकर उसकी तन्द्रा भंग की । और तब उसे सुनाई पङा कि बाहर स्पेशियो का हार्न बज रहा था । फ़िर अचानक ही उसके दिमाग में एक और विचार आया, और उसने सुनील को फ़ोन लगाकर कहा कि अगर आज की रात वह उसका ड्राइवर भी साथ ले जाये तो ।
सुनील ने पूछा - कोई विशेष बात है क्या?
उसने संक्षेप में, मगर बात की गम्भीरता उसे पूरी तरह समझा दी ।
सुनील उसके लिये चिन्तित हो गया, और एक बार तो उसने न जाने की सलाह ही दे डाली ।
मगर बाद में मान गया ।
अब उसके ड्राइवर को समझाना था ।
झूलीखार का नाम सुनते ही उसने मनोहर को इस तरह देखा कि मानो उसके सिर पर सींग निकल आये हों, और वह एकदम पागल हो । लेकिन उसका इलाज वह अच्छी तरह से जानता था ।
वह इंकार करे, इससे पहले ही उसने दो बङे गांधी उसकी आँखों के आगे लहराये, और बोला - इतने ही लौटने के बाद, ये एडवांस रखो ।
एक महीने की तनखाह एक रात में । कैसे इंकार करता बेचारा ।
गाङी में जरूरत का सभी सामान रख लेने के बाद दोपहर दो बजे वे झूलीखार के लिये रवाना हो गये, और ठीक चार बजे बसेरबा पुल पर पहुँच गये । नतालिया बीच बीच में गाङी रुकवा कर फ़ोटो लेती, और शूटिंग भी करती । नतालिया जब अपने काम में व्यस्त थी । वह अपनी गोद में लेटी हुयी सवेटा से पूछ रहा था कि क्या उसे पिस्टल चलाना आता है ।
दरअसल सुरक्षा के लिहाज से उसने तीन पिस्टल का इंतजाम करके रख लिया था । और अब तो ड्राइवर के भी साथ होने से वह लगभग निश्चिन्त था । क्योंकि अघोरी हो, या कोई अन्य, जान सबको प्यारी होती है । दो आदमी, और दो पिस्टल चलाने में सक्षम युवतियाँ, तब किसी का बाप भी उनका कुछ नहीं बिगाङ सकता था ।
हाँ, लेकिन एक आम आदमी को अघोरियों के कारनामों और उनकी छुपी शक्तियों के प्रति जैसा भय होता है, वैसा उसे कतई नहीं था । और उनकी किसी भी प्रकार की तांत्रिक मांत्रिक शक्ति उसका कुछ नहीं बिगाङ सकती थी ।
बसेरबा पुल से शमशान तक का रास्ता तय करने में ही एक घन्टा और लग गया । हालांकि शमशान तक पक्का खडंजा रोड था । फ़िर भी किनारे पर उगी झाङियों और बीच बीच में बेहद पतली हो गयी सङक आदि दिक्कतों की वजह से गाङी स्लो ही चल पा रही थी ।
उस पर नतालिया बारबार फ़ोटोग्राफ़ी के लिये रोक देती ।
शमशान के परिसर में पहुँचकर स्पेशियो रुक गयी, और वे चारों गाङी से बाहर निकल आये । दरअसल उसने यहाँ गाङी जानबूझ कर रुकवायी थी । क्योंकि वह ड्राइवर और दोनों लङकियों पर उस जगह का रियेक्शन देखना चाहता था ।
ड्राइवर के चेहरे पर तो उसे कुछ कुछ दहशत के भाव से नजर आये ।
पर सवेटा और नतालिया इस तरह प्रसन्न थी कि मानो शमशान में न होकर किसी पिकनिक स्पाट पर आयी हों । नतालिया बेहद तन्मयता से शमशान की वीडियोग्राफ़ी कर रही थी ।
उसने एक सिगरेट सुलगा ली, और शमशान की बाउंड्रीवाल पर बैठकर कश लगाने लगा ।

उफ़ ! दुनियां के लिये अत्यन्त डरावने लगने वाले इस स्थान पर कितनी घनघोर शान्ति थी ।

1 टिप्पणी:

arvind ने कहा…

bahut hi vyavahaarik...gyaanvardhak lekh...dhanyavaad.

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।