रविवार, अप्रैल 01, 2012

कामवासना 17



- मूर्ख ! वह गुर्राकर बोली - औरत कभी तृप्त नहीं होती, फ़िर तू क्या उसकी वासना को तृप्त करेगा । तू क्या कहानी खत्म करेगा ।
- बङे भाई ! वह अजीब से स्वर में बोला - मैं हैरान रह गया ।
वह कह रही थी ।.. कमाल की कहानी लिखी है, इस कहानी के लेखक ने । जतिन.. कहानी जो उसने शुरू की, उसे कोई और कैसे खत्म कर सकता है । ये कहानी है, सौन्दर्य के तिरस्कार की । चाहत के अपमान की, प्यार के निरादर की । जजबातों पर कुठाराघात की । वह कहता है, मैं माया हूँ, स्त्री माया है, उसका सौन्दर्य मायाजाल है, और ये कहानी बस यही तो है ।
पर..पर मैं उसको साबित करना चाहती हूँ, कि  मैं माया नहीं हूँ, मैं अभी यही तो साबित कर रही थी तेरे द्वारा, पर तू फ़ेल हो गया, और तूने मुझे भी फ़ेल करवा दिया । जतिन फ़िर जीत गया, क्योंकि .. वह भयानक स्वर में बोली - क्योंकि तू..तू फ़ँस गया न मेरे मायाजाल में ।
अब गौर से याद कर कहानी । मैंने कहा था, कि मैं जतिन से प्यार करती थी, पर वह कहता था, स्त्री माया है । ये मैंने तुझे कहानी के शुरू में बताया, मध्य में बताया । इशारा किया, फ़िर मैंने तुझ पर जाल फ़ेंका, दाना डाला, और तुझसे अलग हट गयी । फ़िर भी तू खिंचा चला आया, और खुद जाल में फ़ँस गया । मेरा जाल, मायाजाल ।.. वह फ़ूट फ़ूट कर रो पङी - जतिन तुम फ़िर जीत गये, मैं फ़िर हार गयी । ये मूर्ख लङका मुझसे प्रभावित न हुआ होता, तो मैं जीत..गयी होती ।
नितिन हक्का बक्का रह गया ।
देवर भाभी प्रेमकथा के इस अन्त की तो कोई कल्पना ही न हो सकती थी ।
- सोचो बङे भाई । वह उदास स्वर में बोला - मैं हार गया, इसका अफ़सोस नहीं, पर तुम भी हार गये, इसका है । मैंने कई बार कहा, क्यों पढ़ रहे हो इस कामुक कथा को । फ़िर भी तुम पढ़ते गये, पढ़ते गये । उसने जो सबक मुझे पढ़ाया था, वही तो मैंने तुम पर आजमाया । पर तुम हार गये, और ऐसे ही सब एक दिन हार जाते हैं, और जीवन की ये वासना कथा अति भयानकता के साथ खत्म हो जाती है ।
नितिन को तेज झटका सा लगा ।
वह जो कह रहा था । उसका गम्भीर दार्श भाव अब उसके सामने एकदम स्पष्ट हो गया था ।
वह उसे रोक सकता था, कहानी का रुख मोङ सकता था, और तब वह जीत जाता ।
और कम से कम तब मनोज उदास न होता, पर वह तो कहानी के बहाव में बह गया । ये कितना बङा सत्य था ।
मनोज की आँखों से आँसू बह रहे थे ।
अब जैसे उसे कुछ भी सुनाने का उत्साह न बचा था ।
नितिन असमंजस में उसे देखता रहा ।
उसने मोबायल में समय देखा, रात का एक बज चुका था ।
चाँद ऊपर आसमान से जैसे इन दोनों को ही देख रहा था ।
काली छाया भी जैसे उदास सी थी, और अब जमीन पर बैठ गयी थी ।
चलो हार जीत कुछ भी हुआ । इसका भाभीपुराण तो समाप्त हो गया । नितिन ने सोचा, और बोला - ये शमशान में तंत्रदीप ..मेरा मतलब ।
- तुम्हें फ़िर गलतफ़हमी हो गयी । वह रहस्यमय आँखों से उसे देखता हुआ बीच में ही बोला - कहानी अभी खत्म नहीं हुयी । कमाल की कहानी लिखी है इस कहानी के लेखक ने । कहानी जो उसने शुरू की, उसे कोई और कैसे खत्म कर सकता है ? जिसकी कहानी वही इसे खत्म करेगा ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।