रविवार, अप्रैल 01, 2012

कामवासना 14



- नितिन जी ! मैंने एक अजीब सी कहानी सुनी है । वह फ़िर बोला - पता नहीं क्यों, मुझे तो वह बङा अजीब सी ही लगती है । एक आदमी ने एक शेर का बच्चा पाल लिया, लेकिन वह उसे कभी माँस नहीं खिलाता था । खून का नमकीन नमकीन स्वाद उसके मुँह को न लगा था । वह सादा रोटी दूध ही खाता था । फ़िर एक दिन शेर को अपने ही पैर में चोट लग गयी, और उसने घाव से बहते खून को चाटा । खून, नमकीन खून । उसका स्वाद, अदभुत स्वाद । उसके अन्दर का असली शेर जाग उठा । शेर के मुँह को खून लग गया । उसने एक शेर दहाङ मारी, और...
पदमा बङी तल्लीनता से धूल झाङ रही थी । वह झाङू को रगङती, फ़ट फ़ट करती, और धूल उङने लगती, कितनी कुशल गृहणी थी वो ।
वह उस दिन का नमकीन स्वाद भूला न था ।
उसके सीने की गर्माहट अभी भी रह रहकर उसके शरीर में दौङ जाती । वह उसकी तरफ़ पीठ किये थी । उसके लहराते लम्बे रेशमी बाल उसके कूल्हों को स्पर्श कर रहे थे ।
- तुमने कभी सोचा मनोज ! पदमा की झंकार जैसी आवाज फ़िर से उसके कानों में गूँजी  - एक सुन्दर जवान औरत कितनी आकर्षक लगती है । रंग बिरंगे फ़ूलों की डाली जैसी । तुम ध्यान दो, तो औरत के हर अंग से रस टपकता है । वह रस से लबालब भरी होती है ।
कितना सच कहा था उसने, इस छ्लकते रस को उसने जाना ही न था ।
वह चित्रलिखित सा खङा रह गया ।
एक आवरण रहित सुन्दरता की मूर्ति जैसे उस नाममात्र के झीने पर्दे के पार थी, और तबसे बराबर उसकी उपेक्षा सी कर रही थी, उसे अनदेखा कर रही थी । वह चाह रहा था कि वह फ़िर से उसे अंगों की झलक दिखाये, फ़िर से उसकी आँखों में आँखे डाले, पर वह तो जैसे यह सब जानती ही न थी ।
उससे ये उपेक्षा सहन नहीं हो रही थी । उसके कदम खुद ब खुद बढ़ते गये ।
वह उसके पास गया, और पीछे से एकदम सटकर खङा हो गया । उसके नथुनों से निकलती गर्म भाप पदमा की गर्दन को छूने लगी ।
- क्या हुआऽ । वह फ़ुसफ़ुसाई, और बिना मुङे ही रुक रुककर बोली - बैचेन हो क्या, तुम्हारा  स्पर्श.. मुझे महसूस हो रहा है ।..पूर्ण पुरुष, क्या तुम एक स्त्री को आनन्दित करने वाले हो ।
- ह हाँ । उसका गला सा सूखने लगा - समझ में नहीं आता, कैसा लग रहा है । शरीर में अज्ञात धारायें सी दौङ रही है, और ये खुद तुमसे आकर आलिंगित हुआ है..कामिनी ।
- भूल जाओ.. भूल जाओ.. अपने आपको । वह झंकृत स्वर में बोली - भूल जाओ कि तुम क्या हो, भूल जाओ कि मैं क्या हूँ । जो स्वयं होता है, होने दो, उसे रोकना मत ।
स्वयं !
स्वयं उसके हाथ पदमा के इर्द गिर्द लिपट गये ।
वह अपने शरीर में एक तूफ़ान सा उठता हुआ महसूस कर रहा था ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।