- नितिन जी ! मैंने एक अजीब सी कहानी सुनी है । वह
फ़िर बोला - पता नहीं क्यों, मुझे तो
वह बङा अजीब सी ही लगती है । एक आदमी ने एक शेर का बच्चा पाल लिया, लेकिन वह उसे कभी माँस नहीं खिलाता था । खून का नमकीन नमकीन स्वाद उसके
मुँह को न लगा था । वह सादा रोटी दूध ही खाता था । फ़िर एक दिन शेर को अपने ही पैर
में चोट लग गयी, और उसने घाव से बहते खून को चाटा । खून,
नमकीन खून । उसका स्वाद, अदभुत स्वाद । उसके
अन्दर का असली शेर जाग उठा । शेर के मुँह को खून लग गया । उसने एक शेर दहाङ मारी, और...।
पदमा बङी तल्लीनता से धूल झाङ रही थी । वह झाङू को रगङती, फ़ट फ़ट करती, और धूल उङने लगती, कितनी कुशल गृहणी थी वो ।
पदमा बङी तल्लीनता से धूल झाङ रही थी । वह झाङू को रगङती, फ़ट फ़ट करती, और धूल उङने लगती, कितनी कुशल गृहणी थी वो ।
वह उस दिन का नमकीन स्वाद भूला न था ।
उसके सीने की गर्माहट अभी भी रह रहकर उसके शरीर में दौङ जाती । वह उसकी तरफ़
पीठ किये थी । उसके लहराते लम्बे रेशमी बाल उसके कूल्हों को स्पर्श कर रहे थे ।
- तुमने कभी सोचा मनोज ! पदमा की झंकार जैसी आवाज फ़िर से उसके कानों में गूँजी - एक सुन्दर जवान औरत कितनी आकर्षक लगती है । रंग बिरंगे फ़ूलों की डाली जैसी । तुम ध्यान दो, तो औरत के हर अंग से रस टपकता है । वह रस से लबालब भरी होती है ।
- तुमने कभी सोचा मनोज ! पदमा की झंकार जैसी आवाज फ़िर से उसके कानों में गूँजी - एक सुन्दर जवान औरत कितनी आकर्षक लगती है । रंग बिरंगे फ़ूलों की डाली जैसी । तुम ध्यान दो, तो औरत के हर अंग से रस टपकता है । वह रस से लबालब भरी होती है ।
कितना सच कहा था उसने, इस छ्लकते रस को उसने जाना ही न था ।
वह चित्रलिखित सा खङा रह गया ।
एक आवरण रहित सुन्दरता की मूर्ति जैसे उस नाममात्र के झीने पर्दे के पार थी, और तबसे बराबर उसकी उपेक्षा सी कर रही थी, उसे अनदेखा कर रही थी । वह चाह रहा था कि वह फ़िर से उसे अंगों की झलक
दिखाये, फ़िर से उसकी आँखों में आँखे डाले, पर वह तो जैसे यह सब जानती ही न थी ।
उससे ये उपेक्षा सहन नहीं हो रही थी । उसके कदम खुद ब खुद बढ़ते गये ।
वह उसके पास गया, और पीछे से एकदम सटकर खङा हो गया । उसके
नथुनों से निकलती गर्म भाप पदमा की गर्दन को छूने लगी ।
- क्या हुआऽ । वह फ़ुसफ़ुसाई, और बिना मुङे ही रुक रुककर बोली - बैचेन हो क्या, तुम्हारा स्पर्श.. मुझे महसूस हो रहा है ।..पूर्ण पुरुष, क्या तुम एक स्त्री को आनन्दित करने वाले हो ।
- ह हाँ । उसका गला सा सूखने लगा - समझ में नहीं आता, कैसा लग रहा है । शरीर में अज्ञात धारायें सी दौङ रही है, और ये खुद तुमसे आकर आलिंगित हुआ है..कामिनी ।
- भूल जाओ.. भूल जाओ.. अपने आपको । वह झंकृत स्वर में बोली - भूल जाओ कि तुम क्या हो, भूल जाओ कि मैं क्या हूँ । जो स्वयं होता है, होने दो, उसे रोकना मत ।
स्वयं !
- क्या हुआऽ । वह फ़ुसफ़ुसाई, और बिना मुङे ही रुक रुककर बोली - बैचेन हो क्या, तुम्हारा स्पर्श.. मुझे महसूस हो रहा है ।..पूर्ण पुरुष, क्या तुम एक स्त्री को आनन्दित करने वाले हो ।
- ह हाँ । उसका गला सा सूखने लगा - समझ में नहीं आता, कैसा लग रहा है । शरीर में अज्ञात धारायें सी दौङ रही है, और ये खुद तुमसे आकर आलिंगित हुआ है..कामिनी ।
- भूल जाओ.. भूल जाओ.. अपने आपको । वह झंकृत स्वर में बोली - भूल जाओ कि तुम क्या हो, भूल जाओ कि मैं क्या हूँ । जो स्वयं होता है, होने दो, उसे रोकना मत ।
स्वयं !
स्वयं उसके हाथ पदमा के इर्द गिर्द लिपट गये ।
वह अपने शरीर में एक तूफ़ान सा उठता हुआ महसूस कर रहा था ।
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