- देख
भाई ! नीलेश बिस्तर की तरफ़ आते जा रहे तिलचट्टे को उंगली से
दूर छिटकता हुआ बोला - भुतहा फ़िल्म की लोकेशन, और उसकी बैकग्राउंड का सही अंदाजा, रात को बारह एक
बजे पर ही पता चलता है । जब चाँद एकदम सिर पर होगा । यहाँ ये इधर उधर रेंगते जीव
और अपने बिलों में घुसे साँप छँछूदर कैसी आवाज करेंगे । चाँदनी रात में यह महल और
आसपास का नजारा कैसा होगा । ये सब पहले से कैसे पता चले, और
रही बात उस बुढ़िया की, तो अब मुझे क्या पता था कि यहाँ कोई
रहता भी होगा । इसलिये कुछ ले दे के उसको भी निपटा देंगे ।
- अच्छा ! जलवा ने ठंडी सांस भरी - फ़िर ठीक है । बस एक बात और बता दो कि शूटिंग तो मैं अभी के अभी ही देख रहा हूँ । फ़िल्म देख पाऊँगा या नहीं? मतलब तब तक जीता तो रहूँगा ।
- डांट वरी जलवा ! मैं हूँ ना ।
नीलेश अच्छी तरह से जानता था कि जलवा के मन में बहुत सी बातें हैं, जिनको वह कह नहीं पा रहा है । पर अगर वह कहता भी, तो नीलेश के पास उसका कोई जबाब नहीं था । वह सोच रहा था कि जलवा गहरी नींद में सो जाये, तो ज्यादा अच्छा हो ।
लगभग दो घन्टे से थोङा पहले ही जलवा के खर्राटे गूंजने लगे । नीलेश ने बेहोशी लाने वाली जङी उसे सुंघाने की सोची । फ़िर कुछ सोचकर हाथ हटा लिया, और कमरे से बाहर निकल आया । उसने नीचे झांककर देखा पर वहाँ सन्नाटा ही था । और रात के अंधेरे में डायनी महल में डरावनी सांय सांय ही गूंज रही थी ।
- अच्छा ! जलवा ने ठंडी सांस भरी - फ़िर ठीक है । बस एक बात और बता दो कि शूटिंग तो मैं अभी के अभी ही देख रहा हूँ । फ़िल्म देख पाऊँगा या नहीं? मतलब तब तक जीता तो रहूँगा ।
- डांट वरी जलवा ! मैं हूँ ना ।
नीलेश अच्छी तरह से जानता था कि जलवा के मन में बहुत सी बातें हैं, जिनको वह कह नहीं पा रहा है । पर अगर वह कहता भी, तो नीलेश के पास उसका कोई जबाब नहीं था । वह सोच रहा था कि जलवा गहरी नींद में सो जाये, तो ज्यादा अच्छा हो ।
लगभग दो घन्टे से थोङा पहले ही जलवा के खर्राटे गूंजने लगे । नीलेश ने बेहोशी लाने वाली जङी उसे सुंघाने की सोची । फ़िर कुछ सोचकर हाथ हटा लिया, और कमरे से बाहर निकल आया । उसने नीचे झांककर देखा पर वहाँ सन्नाटा ही था । और रात के अंधेरे में डायनी महल में डरावनी सांय सांय ही गूंज रही थी ।
क्या कर रही
होगी डायन इस समय?
उसने सोचा ।
- शक्ति!
उसके दिमाग में जैसे ही यह विचार आया ।
उसे डायन की
आवाज सुनाई दी -
अँधेरा, कायम रहेगा ।
ठीक बारह बजे !
एक दीवाल के सहारे पीठ टिकाये खङा नीलेश सिगरेट के कश लगाता हुआ नीचे आंगन में देख रहा था कि तभी उसे मौलश्री बाहर आंगन में नजर आयी । उसकी चाल ढाल और हरकतों से किसी भी तरह से नहीं लगता था कि वह कोई बूढ़ी कमजोर औरत है । बस उसका शरीर और मुँह अवश्य बूढ़ों वाला था ।
उसके हाथ में पानी से भरा एक बङा मटका था । मौलश्री ने अपने सभी कपङे उतार दिये, और आंगन में घूम घूमकर अपने सर पर से पानी गिराती हुयी वह स्नान करने लगी । इसके बाद उसने वही कहीं से लाल रंग के कपङे उठाये, और पहन लिये । फ़िर वह एक दूसरे अन्य कमरे की तरफ़ चली गयी ।
ठीक बारह बजे !
एक दीवाल के सहारे पीठ टिकाये खङा नीलेश सिगरेट के कश लगाता हुआ नीचे आंगन में देख रहा था कि तभी उसे मौलश्री बाहर आंगन में नजर आयी । उसकी चाल ढाल और हरकतों से किसी भी तरह से नहीं लगता था कि वह कोई बूढ़ी कमजोर औरत है । बस उसका शरीर और मुँह अवश्य बूढ़ों वाला था ।
उसके हाथ में पानी से भरा एक बङा मटका था । मौलश्री ने अपने सभी कपङे उतार दिये, और आंगन में घूम घूमकर अपने सर पर से पानी गिराती हुयी वह स्नान करने लगी । इसके बाद उसने वही कहीं से लाल रंग के कपङे उठाये, और पहन लिये । फ़िर वह एक दूसरे अन्य कमरे की तरफ़ चली गयी ।
नीलेश तेजी
से नीचे उतर आया,
और उसी कमरे की तरफ़ बढ़ गया । उस कमरे में कमरे के अन्दर एक और कमरा
था, जो लगभग सुरक्षित हालत में था ।
अन्दर वाले
कमरे का गेट खुला था । पर नीलेश बाहर ही रुक गया ।
अन्दर कमरे में एक बङा दिया रोशन था । जिसका प्रकाश पूरे कमरे में फ़ैला हुआ था । तांत्रिकी क्रियाओं के सामान से भरा कमरा जैसे अपनी कहानी खुद ही कह रहा था । अन्दर बीच कमरे में मौलश्री एक नग्न पुरुष लाश के ऊपर बैठी हुयी थी । लाश पुरानी थी, और तंत्रक्रिया तथा अन्य लेपों द्वारा सुरक्षित की गयी थी ।
उसके समीप ही कच्चे फ़र्श में गढ्ढा खोदकर हवन कुण्ड सा बनाया गया था । जिसमें उसने आग जलाना शुरू कर दी थी । पास ही एक प्याला टायप मिट्टी के बरतन में कुछ अधमरे घायल से चमगादङ गिरगिट जैसे छोटे जीव थे ।
अन्दर कमरे में एक बङा दिया रोशन था । जिसका प्रकाश पूरे कमरे में फ़ैला हुआ था । तांत्रिकी क्रियाओं के सामान से भरा कमरा जैसे अपनी कहानी खुद ही कह रहा था । अन्दर बीच कमरे में मौलश्री एक नग्न पुरुष लाश के ऊपर बैठी हुयी थी । लाश पुरानी थी, और तंत्रक्रिया तथा अन्य लेपों द्वारा सुरक्षित की गयी थी ।
उसके समीप ही कच्चे फ़र्श में गढ्ढा खोदकर हवन कुण्ड सा बनाया गया था । जिसमें उसने आग जलाना शुरू कर दी थी । पास ही एक प्याला टायप मिट्टी के बरतन में कुछ अधमरे घायल से चमगादङ गिरगिट जैसे छोटे जीव थे ।
लाश के ऊपर
बैठी मौलश्री को अगर कोई देख लेता, तो उसकी रूह तक कांप जाती ।
पर नीलेश के लिये ये कई बार के देखे हुये दृश्य थे । अतः वह आराम से खङा हुआ उसके
क्रियाकलाप देख रहा था । मगर बिना किसी उत्सुकता और आश्चर्य के ।
कच्चे कुण्ड की अग्नि भङक उठी । मौलश्री ने विभिन्न जङी बूटियों के छोटे छोटे टुकङे उसमें डाल दिये । अग्नि और भी तेज हो गयी । फ़िर इस निरंतर तेज होती अग्नि के साथ ही उसका चेहरा भभकने सा लगा, और उसने प्याले के घायल जीव कुण्ड में झोंक दिये । कमरे में अजीब सी बू वाला धुँआ का गुबार उठता हुआ कमरे की छत में बनी चिमनी से बाहर जाने लगा ।
फ़िर वह तंत्र जगाती हुयी मंत्रोच्चारण आदि भंगिमायें करने लगी ।
अचानक चट चट की आवाज के साथ उसके शरीर में बदलाव होने लगा, और देखते ही देखते वह अत्यन्त खूबसूरत युवती में बदल गयी । उसके स्तनों और अन्य शरीरी अंगों ने मानो तीव्रता से विकास किया, और उनके बंधन स्वतः टूट गये ।
- मैंने कहा था ना । अचानक वह नीलेश के पीछे दृष्टिपात करती हुयी बोली - सिर्फ़ निगाह का फ़र्क है ।
नीलेश ने सहमति में सिर हिलाया, और पीछे मुढ़कर देखा ।
वहाँ
हतप्रभ सा जलवा खङा था ।कच्चे कुण्ड की अग्नि भङक उठी । मौलश्री ने विभिन्न जङी बूटियों के छोटे छोटे टुकङे उसमें डाल दिये । अग्नि और भी तेज हो गयी । फ़िर इस निरंतर तेज होती अग्नि के साथ ही उसका चेहरा भभकने सा लगा, और उसने प्याले के घायल जीव कुण्ड में झोंक दिये । कमरे में अजीब सी बू वाला धुँआ का गुबार उठता हुआ कमरे की छत में बनी चिमनी से बाहर जाने लगा ।
फ़िर वह तंत्र जगाती हुयी मंत्रोच्चारण आदि भंगिमायें करने लगी ।
अचानक चट चट की आवाज के साथ उसके शरीर में बदलाव होने लगा, और देखते ही देखते वह अत्यन्त खूबसूरत युवती में बदल गयी । उसके स्तनों और अन्य शरीरी अंगों ने मानो तीव्रता से विकास किया, और उनके बंधन स्वतः टूट गये ।
- मैंने कहा था ना । अचानक वह नीलेश के पीछे दृष्टिपात करती हुयी बोली - सिर्फ़ निगाह का फ़र्क है ।
नीलेश ने सहमति में सिर हिलाया, और पीछे मुढ़कर देखा ।
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