मंगलवार, जुलाई 26, 2011

डायन The Witch 13



- देख भाई ! नीलेश बिस्तर की तरफ़ आते जा रहे तिलचट्टे को उंगली से दूर छिटकता हुआ बोला - भुतहा फ़िल्म की लोकेशन, और उसकी बैकग्राउंड का सही अंदाजा, रात को बारह एक बजे पर ही पता चलता है । जब चाँद एकदम सिर पर होगा । यहाँ ये इधर उधर रेंगते जीव और अपने बिलों में घुसे साँप छँछूदर कैसी आवाज करेंगे । चाँदनी रात में यह महल और आसपास का नजारा कैसा होगा । ये सब पहले से कैसे पता चले, और रही बात उस बुढ़िया की, तो अब मुझे क्या पता था कि यहाँ कोई रहता भी होगा । इसलिये कुछ ले दे के उसको भी निपटा देंगे ।
- अच्छा ! जलवा ने ठंडी सांस भरी - फ़िर ठीक है । बस एक बात और बता दो कि शूटिंग तो मैं अभी के अभी ही देख रहा हूँ । फ़िल्म देख पाऊँगा या नहीं? मतलब तब तक जीता तो रहूँगा ।
- डांट वरी जलवा ! मैं हूँ ना ।
नीलेश अच्छी तरह से जानता था कि जलवा के मन में बहुत सी बातें हैं, जिनको वह कह नहीं पा रहा है । पर अगर वह कहता भी, तो नीलेश के पास उसका कोई जबाब नहीं था । वह सोच रहा था कि जलवा गहरी नींद में सो जाये, तो ज्यादा अच्छा हो ।
लगभग दो घन्टे से थोङा पहले ही जलवा के खर्राटे गूंजने लगे । नीलेश ने बेहोशी लाने वाली जङी उसे सुंघाने की सोची । फ़िर कुछ सोचकर हाथ हटा लिया, और कमरे से बाहर निकल आया । उसने नीचे झांककर देखा पर वहाँ सन्नाटा ही था । और रात के अंधेरे में डायनी महल में डरावनी सांय सांय ही गूंज रही थी ।
क्या कर रही होगी डायन इस समय? उसने सोचा ।
- शक्ति! उसके दिमाग में जैसे ही यह विचार आया ।
उसे डायन की आवाज सुनाई दी - अँधेरा, कायम रहेगा ।
ठीक बारह बजे !
एक दीवाल के सहारे पीठ टिकाये खङा नीलेश सिगरेट के कश लगाता हुआ नीचे आंगन में देख रहा था कि तभी उसे मौलश्री बाहर आंगन में नजर आयी । उसकी चाल ढाल और हरकतों से किसी भी तरह से नहीं लगता था कि वह कोई बूढ़ी कमजोर औरत है । बस उसका शरीर और मुँह अवश्य बूढ़ों वाला था ।
उसके हाथ में पानी से भरा एक बङा मटका था । मौलश्री ने अपने सभी कपङे उतार दिये, और आंगन में घूम घूमकर अपने सर पर से पानी गिराती हुयी वह स्नान करने लगी । इसके बाद उसने वही कहीं से लाल रंग के कपङे उठाये, और पहन लिये । फ़िर वह एक दूसरे अन्य कमरे की तरफ़ चली गयी ।
नीलेश तेजी से नीचे उतर आया, और उसी कमरे की तरफ़ बढ़ गया । उस कमरे में कमरे के अन्दर एक और कमरा था, जो लगभग सुरक्षित हालत में था ।
अन्दर वाले कमरे का गेट खुला था । पर नीलेश बाहर ही रुक गया ।
अन्दर कमरे में एक बङा दिया रोशन था । जिसका प्रकाश पूरे कमरे में फ़ैला हुआ था । तांत्रिकी क्रियाओं के सामान से भरा कमरा जैसे अपनी कहानी खुद ही कह रहा था । अन्दर बीच कमरे में मौलश्री एक नग्न पुरुष लाश के ऊपर बैठी हुयी थी । लाश पुरानी थी, और तंत्रक्रिया तथा अन्य लेपों द्वारा सुरक्षित की गयी थी ।
उसके समीप ही कच्चे फ़र्श में गढ्ढा खोदकर हवन कुण्ड सा बनाया गया था । जिसमें उसने आग जलाना शुरू कर दी थी । पास ही एक प्याला टायप मिट्टी के बरतन में कुछ अधमरे घायल से चमगादङ गिरगिट जैसे छोटे जीव थे ।
लाश के ऊपर बैठी मौलश्री को अगर कोई देख लेता, तो उसकी रूह तक कांप जाती । पर नीलेश के लिये ये कई बार के देखे हुये दृश्य थे । अतः वह आराम से खङा हुआ उसके क्रियाकलाप देख रहा था । मगर बिना किसी उत्सुकता और आश्चर्य के ।
कच्चे कुण्ड की अग्नि भङक उठी । मौलश्री ने विभिन्न जङी बूटियों के छोटे छोटे टुकङे उसमें डाल दिये । अग्नि और भी तेज हो गयी । फ़िर इस निरंतर तेज होती अग्नि के साथ ही उसका चेहरा भभकने सा लगा, और उसने प्याले के घायल जीव कुण्ड में झोंक दिये । कमरे में अजीब सी बू वाला धुँआ का गुबार उठता हुआ कमरे की छत में बनी चिमनी से बाहर जाने लगा ।
फ़िर वह तंत्र जगाती हुयी मंत्रोच्चारण आदि भंगिमायें करने लगी ।
अचानक चट चट की आवाज के साथ उसके शरीर में बदलाव होने लगा, और देखते ही देखते वह अत्यन्त खूबसूरत युवती में बदल गयी । उसके स्तनों और अन्य शरीरी अंगों ने मानो तीव्रता से विकास किया, और उनके बंधन स्वतः टूट गये ।
- मैंने कहा था ना । अचानक वह नीलेश के पीछे दृष्टिपात करती हुयी बोली - सिर्फ़ निगाह का फ़र्क है ।
नीलेश ने सहमति में सिर हिलाया, और पीछे मुढ़कर देखा ।
वहाँ हतप्रभ सा जलवा खङा था ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।