मंगलवार, जुलाई 26, 2011

डायन The Witch 11



इसके ठीक तीसरे दिन नीलेश पीताम्बर के शहर पहुँचा ।
दूसरा दिन उसने वनखण्डी मन्दिर पर ही गुजारा था ।
बदरी बाबा के जीवन में उससे जुङी हुयी यह पहली हत्या थी । इसलिये अन्दर ही अन्दर वह बेहद डरा हुआ था । हालांकि नीलेश को एक परसेंट ही किसी बबाल की उम्मीद थी । फ़िर भी वह बदरी का डर समझते हुये रुक गया था ।
गजानन का थैला आदि अन्य सामान उसने दूसरे साधुओं के नोटिस में आने से पहले ही छिपा देने को कह दिया था । इस तरह अपनी समझ से उसने पूरा इंतजाम ही कर दिया था । इसके बाद भी कोई बात होती, तो बदरी के पास उसका फ़ोन नम्बर था, जिससे वह सीधी बात करा सकता था । तब जाकर बदरी को थोङा तसल्ली मिली ।
नीलेश की ऊँची पहुँच भी उसे काफ़ी हिम्मत बँधा रही थी ।
अब वह सीधा डायन के विशाल निवास में मौजूद था ।
एक बार को मुम्बई में अमिताभ बच्चन का निवास तलाशने में दिक्कत आ सकती थी । पर डायन का निवास तलाश करने में उसे कोई दिक्कत नहीं आयी । उसने डायन के बारे में सीधा सीधा न पूछकर पीताम्बर द्वारा बताये ब्यौरे के आधार पर घुमा फ़िराकर पूछा, और आसानी से यहाँ तक बिना किसी रोकटोक के पहुँच गया । उसने पीताम्बर या हरीश से सम्पर्क करने की कोई कोशिश नहीं की ।
उसके साथ जलवा के नाम से प्रसिद्ध उन्नीस साल का बातूनी बोलने की आदत से मजबूर लङका था । जिसे वह इस पूरे खेल की अहमियत समझते हुये वक्त बेवक्त जरूरत की सोचकर ले आया था । जलवा को भुतहा बातों का बङा शौक था । भुतहा स्थानों को देखने का बङा शौक था । भूतों का देखने का बङा शौक था । पर आज तक उसकी भूत देखने की हसरत पूरी नहीं हुयी थी ।
वह नीलेश की इस योगी रूप वास्तविकता से परिचित नहीं था । लेकिन नीलेश से कुछ कुछ अवश्य परिचित था, और उसके अत्यन्त धनाढ़य होने का रौब खाता था ।
नीलेश ने उसे बताया कि रामसे ब्रदर्स और रामगोपाल वर्मा कोई डरावनी फ़िल्म बनाना चाहते हैं । जिसके लिये उन्हें एक हटकर और रियल टायप लोकेशन की तलाश है । उसी को देखने वह जा रहा था । फ़िर ये जानकर कि रामू जी नीलेश के दोस्त हैं । जलवा दंग रह गया । नीलेश के प्रति उसके मन में अतिरिक्त सम्मान बढ़ गया ।
लेकिन हकीकत और ख्यालात में जमीन आसमान का अन्तर होता है ।
यह जलवा को आज ही पता चला था ।
डायनी महल में कदम रखते ही वह जहाँ का तहाँ ठिठक कर खङा हो गया ।
अपने जीवन में इससे अधिक भयानक जगह उसने सपने में भी नहीं देखी थी । सपने में भी नहीं सोची थी । उस विशाल टूटे फ़ूटे मकान में हर तरफ़ बेहद गन्दगी और दुर्गन्ध का साम्राज्य कायम था । जगह जगह मरे हुये पक्षियों के सूखे पिंजर और बेतरतीब पंख बिखरे हुये थे । विभिन्न जीवों के मल और बीट की भरमार थी । सैकङों उल्लूओं के घोंसले टूटी दीवालों के मोखों में मौजूद थे । अन्य तरह की चिङियाओं, गिरगिट, छिपकली, चमगादङ, काकरोच, मेंढक, गिलहरियों आदि की भी भरमार थी । उस निवास की सफ़ाई झाङू आदि भी बहुत वर्षों से नहीं हुयी थी ।
नीलेश वहाँ स्वतः उग आये पेङों की लम्बी घनी पत्तेदार टहनियाँ तोङकर इकठ्ठी करने लगा । एक समान टहनियों को उसने लकङी की छाल उतार कर उसी के रेशों से बाँधकर झाङू का आकार दे दिया । जलवा हैरत से उसकी तरफ़ देख रहा था । पर समझ कुछ भी नहीं पा रहा था ।
- दादा ! वह बङे अजीब स्वर में बोला - यहाँ शूटिंग करेंगे?
- अरे जलवा भाई ! नीलेश उसका हाथ थामता हुआ बोला - यह फ़िल्लम वाले भी खिसके दिमाग के होते हैं । कहाँ शूटिंग करें, क्या पता । बङी जबरदस्त शूटिंग होने वाली है यहाँ, आओ चलते हैं ।
कहकर उसका हाथ थामे वह मकान में प्रवेश कर गया, और यूँ गौर से मकान का एक एक कोना देखने लगा । जैसे गम्भीरता से मकान खरीदने की सोच रहा हो । मकान की दीवालों पर जगह जगह छोटे जीवों और पक्षियों के खून से विचित्र आकृतियाँ बनी हुयी थीं ।
तभी एक कमरे में पहुँच कर दोनों स्वतः ही ठिठक गये ।
इस कमरे में एक अधखायी नोची हुयी सी सङी हालत में बकरिया पङी हुयी थी । जिससे भयंकर सङांध उठ रही थी । जलवा को उबकायी होते होते बची । इसी कमरे में एक तरफ़ पुआल आदि का लत्ते पत्ते बिछाकर बिस्तर बना हुआ था, और खाये हुये पक्षियों की हड्डियाँ चारो ओर फ़ैली हुयी थी ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।