इसके ठीक
तीसरे दिन नीलेश पीताम्बर के शहर पहुँचा ।
दूसरा दिन उसने वनखण्डी मन्दिर पर ही गुजारा था ।
दूसरा दिन उसने वनखण्डी मन्दिर पर ही गुजारा था ।
बदरी बाबा के
जीवन में उससे जुङी हुयी यह पहली हत्या थी । इसलिये अन्दर ही अन्दर वह बेहद डरा
हुआ था । हालांकि नीलेश को एक परसेंट ही किसी बबाल की उम्मीद थी । फ़िर भी वह बदरी
का डर समझते हुये रुक गया था ।
गजानन का थैला आदि अन्य सामान उसने दूसरे साधुओं के नोटिस में आने से पहले ही छिपा देने को कह दिया था । इस तरह अपनी समझ से उसने पूरा इंतजाम ही कर दिया था । इसके बाद भी कोई बात होती, तो बदरी के पास उसका फ़ोन नम्बर था, जिससे वह सीधी बात करा सकता था । तब जाकर बदरी को थोङा तसल्ली मिली ।
गजानन का थैला आदि अन्य सामान उसने दूसरे साधुओं के नोटिस में आने से पहले ही छिपा देने को कह दिया था । इस तरह अपनी समझ से उसने पूरा इंतजाम ही कर दिया था । इसके बाद भी कोई बात होती, तो बदरी के पास उसका फ़ोन नम्बर था, जिससे वह सीधी बात करा सकता था । तब जाकर बदरी को थोङा तसल्ली मिली ।
नीलेश की
ऊँची पहुँच भी उसे काफ़ी हिम्मत बँधा रही थी ।
अब वह सीधा डायन के विशाल निवास में मौजूद था ।
अब वह सीधा डायन के विशाल निवास में मौजूद था ।
एक बार को
मुम्बई में अमिताभ बच्चन का निवास तलाशने में दिक्कत आ सकती थी । पर डायन का निवास
तलाश करने में उसे कोई दिक्कत नहीं आयी । उसने डायन के बारे में सीधा सीधा न पूछकर
पीताम्बर द्वारा बताये ब्यौरे के आधार पर घुमा फ़िराकर पूछा, और
आसानी से यहाँ तक बिना किसी रोकटोक के पहुँच गया । उसने पीताम्बर या हरीश से
सम्पर्क करने की कोई कोशिश नहीं की ।
उसके साथ जलवा के नाम से प्रसिद्ध उन्नीस साल का बातूनी बोलने की आदत से मजबूर लङका था । जिसे वह इस पूरे खेल की अहमियत समझते हुये वक्त बेवक्त जरूरत की सोचकर ले आया था । जलवा को भुतहा बातों का बङा शौक था । भुतहा स्थानों को देखने का बङा शौक था । भूतों का देखने का बङा शौक था । पर आज तक उसकी भूत देखने की हसरत पूरी नहीं हुयी थी ।
उसके साथ जलवा के नाम से प्रसिद्ध उन्नीस साल का बातूनी बोलने की आदत से मजबूर लङका था । जिसे वह इस पूरे खेल की अहमियत समझते हुये वक्त बेवक्त जरूरत की सोचकर ले आया था । जलवा को भुतहा बातों का बङा शौक था । भुतहा स्थानों को देखने का बङा शौक था । भूतों का देखने का बङा शौक था । पर आज तक उसकी भूत देखने की हसरत पूरी नहीं हुयी थी ।
वह नीलेश की
इस योगी रूप वास्तविकता से परिचित नहीं था । लेकिन नीलेश से कुछ कुछ अवश्य परिचित
था, और उसके अत्यन्त धनाढ़य होने का रौब खाता था ।
नीलेश ने उसे
बताया कि रामसे ब्रदर्स और रामगोपाल वर्मा कोई डरावनी फ़िल्म बनाना चाहते हैं ।
जिसके लिये उन्हें एक हटकर और रियल टायप लोकेशन की तलाश है । उसी को देखने वह जा
रहा था । फ़िर ये जानकर कि रामू जी नीलेश के दोस्त हैं । जलवा दंग रह गया । नीलेश
के प्रति उसके मन में अतिरिक्त सम्मान बढ़ गया ।
लेकिन हकीकत और ख्यालात में जमीन आसमान का अन्तर होता है ।
लेकिन हकीकत और ख्यालात में जमीन आसमान का अन्तर होता है ।
यह जलवा को
आज ही पता चला था ।
डायनी महल
में कदम रखते ही वह जहाँ का तहाँ ठिठक कर खङा हो गया ।
अपने जीवन
में इससे अधिक भयानक जगह उसने सपने में भी नहीं देखी थी । सपने में भी नहीं सोची
थी । उस विशाल टूटे फ़ूटे मकान में हर तरफ़ बेहद गन्दगी और दुर्गन्ध का साम्राज्य
कायम था । जगह जगह मरे हुये पक्षियों के सूखे पिंजर और बेतरतीब पंख बिखरे हुये थे
। विभिन्न जीवों के मल और बीट की भरमार थी । सैकङों उल्लूओं के घोंसले टूटी
दीवालों के मोखों में मौजूद थे । अन्य तरह की चिङियाओं, गिरगिट,
छिपकली, चमगादङ, काकरोच,
मेंढक, गिलहरियों आदि की भी भरमार थी । उस
निवास की सफ़ाई झाङू आदि भी बहुत वर्षों से नहीं हुयी थी ।
नीलेश वहाँ
स्वतः उग आये पेङों की लम्बी घनी पत्तेदार टहनियाँ तोङकर इकठ्ठी करने लगा । एक
समान टहनियों को उसने लकङी की छाल उतार कर उसी के रेशों से बाँधकर झाङू का आकार दे
दिया । जलवा हैरत से उसकी तरफ़ देख रहा था । पर समझ कुछ भी नहीं पा रहा था ।
- दादा
! वह बङे अजीब स्वर में बोला - यहाँ
शूटिंग करेंगे?
- अरे जलवा भाई ! नीलेश उसका हाथ थामता हुआ बोला - यह फ़िल्लम वाले भी खिसके दिमाग के होते हैं । कहाँ शूटिंग करें, क्या पता । बङी जबरदस्त शूटिंग होने वाली है यहाँ, आओ चलते हैं ।
कहकर उसका हाथ थामे वह मकान में प्रवेश कर गया, और यूँ गौर से मकान का एक एक कोना देखने लगा । जैसे गम्भीरता से मकान खरीदने की सोच रहा हो । मकान की दीवालों पर जगह जगह छोटे जीवों और पक्षियों के खून से विचित्र आकृतियाँ बनी हुयी थीं ।
- अरे जलवा भाई ! नीलेश उसका हाथ थामता हुआ बोला - यह फ़िल्लम वाले भी खिसके दिमाग के होते हैं । कहाँ शूटिंग करें, क्या पता । बङी जबरदस्त शूटिंग होने वाली है यहाँ, आओ चलते हैं ।
कहकर उसका हाथ थामे वह मकान में प्रवेश कर गया, और यूँ गौर से मकान का एक एक कोना देखने लगा । जैसे गम्भीरता से मकान खरीदने की सोच रहा हो । मकान की दीवालों पर जगह जगह छोटे जीवों और पक्षियों के खून से विचित्र आकृतियाँ बनी हुयी थीं ।
तभी एक कमरे
में पहुँच कर दोनों स्वतः ही ठिठक गये ।
इस
कमरे में एक अधखायी नोची हुयी सी सङी हालत में बकरिया पङी हुयी थी । जिससे भयंकर
सङांध उठ रही थी । जलवा को उबकायी होते होते बची । इसी कमरे में एक तरफ़ पुआल आदि
का लत्ते पत्ते बिछाकर बिस्तर बना हुआ था, और खाये हुये
पक्षियों की हड्डियाँ चारो ओर फ़ैली हुयी थी ।अमेजोन किंडले पर उपलब्ध
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