शाम के सात
बजने वाले थे ।
और हल्का
हल्का अंधेरा घिरने लगा था ।
तभी उसकी
निगाह मंदिर के आंगन में ही खङे पीपल के विशाल वृक्ष पर गयी ।
जिस पर बैठी
पैर झुलाती हुयी डायन नीचे बैठे लोगों को ही देख रही थी ।
- सान्ता मारिया ! वह सीने पर क्रास बनाकर बोला - किसका सफ़ाया करने वाली है यह? कौन जानता था ।
उसके दिमाग में कुछ देर पूर्व ही हुआ सारा वाकया किसी रील की तरह घूमने लगा ।
- सान्ता मारिया ! वह सीने पर क्रास बनाकर बोला - किसका सफ़ाया करने वाली है यह? कौन जानता था ।
उसके दिमाग में कुछ देर पूर्व ही हुआ सारा वाकया किसी रील की तरह घूमने लगा ।
खासतौर पर
गुरू का ये कहना ‘सर्वत्र..’
इसका तो मतलब
यही हुआ ना कि प्रसून भाई उसके साथ हैं ।
लेकिन कहाँ? इस
बात का कोई उत्तर उसके पास नहीं था ।
पीताम्बर और
उसके साथी वाकई रुक गये मालूम होते थे । पर वे क्यों कर रुके थे, ये
अभी उसको पता नहीं था । बदरी बाबा और दो अन्य साधु मिलकर भोजन बनाने की तैयारी कर
रहे थे ।
जो होगा देखा
जायेगा,
सोचकर उसने एक सिगरेट सुलगायी, और गहरा कश
लेते हुये पीपल पर झूलती हुयी सी डायन को देखने लगा ।
फ़िर अचानक उसके दिमाग में बिजली सी कौंधी।
फ़िर अचानक उसके दिमाग में बिजली सी कौंधी।
और उसने
समूची एकाग्रता डायन पर केन्द्रित कर दी ।
आज रात में
डायन उन चार आगंतुकों में से किसी एक को यमलोक पहुँचाने वाली थी । इसलिये बहुत
संभव था कि डायन का पूरा ध्यान उसी लक्ष्य व्यक्ति पर केन्द्रित रहेगा, और
तब इसकी सबसे बङी पहचान ये होगी कि उन चारो में से मौत की गोद में बैठ चुके
व्यक्ति के मस्तक आदि पर मृत्यु के लक्षण जैसे जाला सा बनना, उसके दोनों सुरों का एक साथ चलना, उसकी चाल ढाल व्यवहार
में एक सम्मोहन सा होना अवश्य होंगे । इससे बहुत आसानी से पता लग सकता था कि आज
कौन हलाल होने वाला है, और तब शायद कुछ किया भी जा सकता है ।
मगर शायद ही !
पर इस परीक्षण में भी कठिनाई थी । एक तो अंधेरा हो चुका था, इसलिये शरीर पर उभरे मृत्यु पूर्वाभास चिह्न देखना आसान नहीं था । वे चारो अथवा नीचे वाले मिलाकर कई लोग हमेशा साथ ही रहने थे । अतः सम्मोहित को भी आसानी से तलाशना मामूली बात नहीं थी । दूसरे अगर डायन रात के दो बजे तक भी टारगेट को निशाना बनाने वाली थी, तो अब से लेकर सिर्फ़ सात घण्टे ही बचे थे ।
पर इस परीक्षण में भी कठिनाई थी । एक तो अंधेरा हो चुका था, इसलिये शरीर पर उभरे मृत्यु पूर्वाभास चिह्न देखना आसान नहीं था । वे चारो अथवा नीचे वाले मिलाकर कई लोग हमेशा साथ ही रहने थे । अतः सम्मोहित को भी आसानी से तलाशना मामूली बात नहीं थी । दूसरे अगर डायन रात के दो बजे तक भी टारगेट को निशाना बनाने वाली थी, तो अब से लेकर सिर्फ़ सात घण्टे ही बचे थे ।
सिर्फ़ सात
घन्टे !
और इन सात
घन्टों में कोई भी समय ऐसा नहीं आने वाला था, जब वह कुछ कर सकता था ।
कुछ, मगर
क्या?
कुछ भी, जो
अभी खुद उसे ही पता नहीं था ।
फ़िर उसने वही अंधेरे में तीर चलाने का नुस्खा आजमाने की सोची, और डायन की दृष्टि का अनुसरण करने की कोशिश करने लगा । मगर नीचे पीताम्बर कंपनी को मिलाकर एक दर्जन से अधिक लोग लगभग एक साथ ही बैठे हुये थे, और ऐसे में वह डायन खास किसको ध्यान में ले रही है । पता करना बेहद कठिन ही था ।
तभी अचानक डायन वहीं बैठी बैठी उससे खुद ही सम्पर्की होकर बोली - अँधेरा..कायम रहेगा । आप मेरी गतिविधियों को अध्ययन करने की कोशिश कर रहे हैं, चलो मैं खुद ही बता देती हूँ कि मेरा लक्ष्य हरीश है, सबसे छोटा हरीश ।
नीलेश के दिमाग पर मानों घन प्रहार हुआ हो । फ़िर स्वतः ही उसने नीचे देखना बन्द कर दिया, और कुर्सी की पीठ पर टेक लगाता हुआ अधलेटा सा होकर अब निश्चिन्त भाव से डायन की तरफ़ देखने लगा ।
फ़िर उसने वही अंधेरे में तीर चलाने का नुस्खा आजमाने की सोची, और डायन की दृष्टि का अनुसरण करने की कोशिश करने लगा । मगर नीचे पीताम्बर कंपनी को मिलाकर एक दर्जन से अधिक लोग लगभग एक साथ ही बैठे हुये थे, और ऐसे में वह डायन खास किसको ध्यान में ले रही है । पता करना बेहद कठिन ही था ।
तभी अचानक डायन वहीं बैठी बैठी उससे खुद ही सम्पर्की होकर बोली - अँधेरा..कायम रहेगा । आप मेरी गतिविधियों को अध्ययन करने की कोशिश कर रहे हैं, चलो मैं खुद ही बता देती हूँ कि मेरा लक्ष्य हरीश है, सबसे छोटा हरीश ।
नीलेश के दिमाग पर मानों घन प्रहार हुआ हो । फ़िर स्वतः ही उसने नीचे देखना बन्द कर दिया, और कुर्सी की पीठ पर टेक लगाता हुआ अधलेटा सा होकर अब निश्चिन्त भाव से डायन की तरफ़ देखने लगा ।
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