- ऐ !
फ़िर अचानक वह खिसियाया सा बोला - क्या बिगाङा
है, इन मासूम लोगों ने तेरा । क्यों नहीं इन्हें चैन से जीने
देती, इन हत्याओं से तुझे क्या मिलता है ।
- सावधान
योगी ! डायन यकायक धीर गम्भीर स्वर में बोली - मैं कोई ऐ..बे..तू..दुष्ट..श्रेणी की छिछोरी महत्वहीन प्रेतात्मा नहीं
हूँ । मैं गण श्रेणी में आने वाली नियुक्त डायन हूँ, और
मृत्युकन्या के अधीन कार्य करती हूँ ।
यह सब जानते हुये भी नीलेश को उसके बोलने पर ऐसा लगा, मानो उसके पास बम फ़टा हो । वह अपनी जगह पर जैसे जङवत होकर रह गया, और उसके कानों में अज्ञात अदृश्य शून्य की सांय सांय सी गूँजने लगी ।
मृत्युकन्या !
यह सब जानते हुये भी नीलेश को उसके बोलने पर ऐसा लगा, मानो उसके पास बम फ़टा हो । वह अपनी जगह पर जैसे जङवत होकर रह गया, और उसके कानों में अज्ञात अदृश्य शून्य की सांय सांय सी गूँजने लगी ।
मृत्युकन्या !
मृत्युकन्या
कोई मामूली बात नहीं थी ।
और इसका एकदम
साफ़ सा मतलब था कि वह डयूटी पर आयी थी, और उसे उसका कार्य करने से
कोई नहीं रोक सकता था । शायद इसीलिये ये अच्छा ही हुआ था कि पीताम्बर और दूसरों ने
उसे खुद ही नाकाबिल समझ लिया था, वरना ये भयावह स्थिति वह
उन्हें एक जन्म में भी नहीं समझा पाता । और अगर समझाने में कामयाब भी हो जाता,
तो वह उन्हें कोई दवा देने के स्थान पर उनका दर्द और भी बढ़ाने वाला
था । क्योंकि इससे तो वे और भी भयभीत ही हो जाने वाले थे ।
- शक्ति ! यकायक फ़िर जैसे ही नीलेश के दिमाग में यह विचार आया ।
- शक्ति ! यकायक फ़िर जैसे ही नीलेश के दिमाग में यह विचार आया ।
डायन अंगूठा
दिखाती हुयी बोली -
अँधेरा, कायम रहेगा ।
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नीलेश कमरे
से बाहर आकर नीचे मंदिर के प्रांगण में झांककर देखने लगा कि पीताम्बर एण्ड कंपनी
क्या कर रही है । उसकी आशा के मुताबिक ही वे नीचे अन्य साधुओं से बात कर रहे थे ।
वह फ़िर से कमरे में आ गया ।
- आप फ़्रिक मत करिये ! उसे डायन का मधुर स्वर सुनाई दिया - उन्हें आज मंदिर में ही रुकना होगा, और उनमें से एक को..। उसने आसमान की तरफ़ उँगली उठायी - आज रवाना होना पङेगा । क्या अजीब सा खेल है ना, कि मृत्यु की गोद में बैठे इंसान को भी पता नहीं होता कि बस वह कुछ ही घंटों का मेहमान और है । यही नियम है, यही दस्तूर है ।
वह जो भी बोलती थी । उससे आगे बोलने के लिये जैसे नीलेश के पास शब्द ही नहीं होते थे । फ़िर वह क्या बोलता, और क्या करता । अतः वह खुद को एकदम असहाय सा महसूस कर रहा था । उसे गुरू की जरूरत महसूस हो रही थी, उसे प्रसून की जरूरत महसूस हो रही थी । पर क्या पता वे कहाँ थे ।
फ़िर भी वह बोला - लेकिन इसका क्या प्रमाण कि जो आप कह रही हो, वह सच है । मतलब आप मृत्युकन्या द्वारा नियुक्त हो ।
वह फ़िर से कमरे में आ गया ।
- आप फ़्रिक मत करिये ! उसे डायन का मधुर स्वर सुनाई दिया - उन्हें आज मंदिर में ही रुकना होगा, और उनमें से एक को..। उसने आसमान की तरफ़ उँगली उठायी - आज रवाना होना पङेगा । क्या अजीब सा खेल है ना, कि मृत्यु की गोद में बैठे इंसान को भी पता नहीं होता कि बस वह कुछ ही घंटों का मेहमान और है । यही नियम है, यही दस्तूर है ।
वह जो भी बोलती थी । उससे आगे बोलने के लिये जैसे नीलेश के पास शब्द ही नहीं होते थे । फ़िर वह क्या बोलता, और क्या करता । अतः वह खुद को एकदम असहाय सा महसूस कर रहा था । उसे गुरू की जरूरत महसूस हो रही थी, उसे प्रसून की जरूरत महसूस हो रही थी । पर क्या पता वे कहाँ थे ।
फ़िर भी वह बोला - लेकिन इसका क्या प्रमाण कि जो आप कह रही हो, वह सच है । मतलब आप मृत्युकन्या द्वारा नियुक्त हो ।
- प्रत्यक्षम
किं प्रमाणम । वह किसी देवी की तरह ही बोली - योगी, आज रात का खेल जब देखोगे, तब यह प्रश्न खुद समाप्त
हो जायेगा । मेरे द्वारा शरीर मुक्त की गयी जीवात्मा को लेने जब दूत आयेंगे,
तो वे मुझे प्रणाम करेंगे, और त्रिनेत्रा योगी
के लिये ये दृश्य देखना कोई बङी बात नहीं ।
नीलेश का सर मानो धङ से अलग होकर अनन्त आकाश में तेजी से घूमने लगा ।
और वह
सिर रहित धङ ही रह गया ।नीलेश का सर मानो धङ से अलग होकर अनन्त आकाश में तेजी से घूमने लगा ।
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