मंगलवार, जुलाई 26, 2011

डायन The Witch 10



दूसरे दिन सुबह नीलेश उन लोगों के उठने से पहले ही गायब था ।
दरअसल वह वनखण्डी मंदिर पर रात में गया ही नहीं था । 
अचानक कुछ ध्यान में आते ही वह उस दिशा में बढ़ने लगा था । जिधर हरीश भागा था ।
वह बेहद सावधानी से उसे तलाशता हुआ जा रहा था । पर उसे हरीश कहीं नजर नहीं आया । तब  उसकी तलाश छोङकर वह वनखण्डी मंदिर से पाँच किमी दूर एक अन्य मंदिर में जा पहुँचा ।
उस समय रात के चार बजने में कुछ ही मिनट कम थे ।
मंदिर का पुजारी और एक बाई गहरी नींद में सोये हुये थे । नीलेश की आहट से बूढ़ा पुजारी स्वयँ ही उठ गया । वह नीलेश को अच्छे योगी और उच्च खानदान के सपूत के तौर पर बखूबी जानता था । उसे नीलेश को इस समय अचानक देखकर कुछ आश्चर्य सा हुआ ।
नीलेश ने उसे बताया कि वह सुबह टहलते हुये इस तरफ़ चला आया, और पुजारी द्वारा खाली किये दीवान पर लेटते हुये उसने आँखें मूँद ली ।
मौत का यूँ साक्षात खेल उसके जीवन में पहली बार घटा था ।
कोई एक घन्टा बाद जब पुजारी ने हाथ में चाय लिये उसे झकझोरते हुये जगाया । तब वह गहरी नींद के आगोश में जा चुका था । तुलसी के पत्तों और तेज अदरक की साधुई चाय ने उसके सुस्त बदन में एक नयी स्फ़ूर्ति पैदा की, और वह फ़िर से चैतन्य होने लगा ।
कोई सवा पाँच बजे तक नीलेश वहीं मौजूद रहा । इसके बाद मंदिर में खङी एक युवा महन्त की बाइक उठाकर वह पीछे के रास्ते वनखण्डी पहुँचा । इसके बाद सबकी निगाह बचाता हुआ वह एक पेङ के सहारे दो मंजिल पर पहुँचा, और वहाँ से आसानी से तिमंजिला स्थिति अपने कमरे में आ गया ।
अब उसे नीचे का जायजा लेना था ।
उसने खिङकी से उस डैथ ग्राउंड का भी जायजा लिया । जहाँ गजानन बाबा देह मुक्त हुआ था ।
पर अभी वहाँ कोई हलचल नहीं थी ।
उस तरफ़ लोगों का आना जाना नौ दस बजे के लगभग ही शुरू होता था ।
तभी बदरी बाबा चाय लेकर उसके कमरे में आया ।
नीलेश उससे यूँ ही हालचाल लेने के अन्दाज में बात पूछने लगा ।
बदरी बाबा ने बताया कि वे चारो लोग पीताम्बर एण्ड कंपनी अपनी गाङी से जा चुके हैं, और सब ठीक ही है । उसे समझ में नहीं आया कि अचानक नीलेश इस तरह क्यों पूछ रहा है ।
- नहीं, नहीं । नीलेश ने बात संभाली - गजानन बाबा डायन बाधा उपचार के लिये उनके साथ जाने वाले थे । ऐसा पीताम्बर बोल रहा था, वे साथ गये, या नहीं?
बदरी बाबा बेहद उपहासी अंदाज में हँसा, और बोला - गजानन बाबा, चरसी चिलम के नशे में क्या न क्या बोल जाये, खुद उसे पता नहीं । वो भला क्या उपचार करेगा । सुबह मैंने उन लोगों को सब समझा दिया । दूसरे गजानन मुँह अंधेरे से ही खुद गायब है । कहीं दिशा मैदान (शौच) को लम्बा निकल गया होगा ।
दूसरे वो पीताम्बर का छोरा हरीश जाने को व्याकुल था, इसलिये वो लोग फ़िर चले गये । वे तुमसे भी मिलने आये, पर तुम भी यहाँ नहीं थे । मैंने कह दिया, सुबह हमारी तरह के साधु लोग अक्सर इधर उधर शौच दातुन आदि को निकल जाते हैं । साधुओं की किसी बात का कोई ठिकाना नहीं होता, कब कहाँ हों ।
- और दूसरे साधु? नीलेश ने प्रश्न किया ।
बदरी को एक बार फ़िर आश्चर्य हुआ, पर वह नीलेश का बेहद सम्मान करता था ।
अतः बोला - वे अभी नहीं उठे, लगता है चिलम ज्यादा चढ़ा ली । क्या पता उठने वाले होंगे ।
- बाबाजी ! अचानक नीलेश ने अजीब सा प्रश्न किया - आप कभी जेल गये हो?
- नहीं तो ! बदरी उछल कर बोला - क्या ..क्या.. क्यों, क्यों?
- अगर ! नीलेश बेहद गम्भीरता से बोला - आगे भी नहीं जाना चाहते, तो तुरन्त बिना सवाल किये मेरे साथ चलो ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।