आज कुछ बातें स्पष्ट
कर देना चाहता हूँ। जिसकी जरूरत मुझे कुछ पाठकों की प्रतिक्रियायें देखकर महसूस
हुयी। और वो बातें ये हैं कि मेरे सभी उपन्यास और कहानी सामान्य विषयों पर नहीं
हैं बल्कि उनके विषय और दृश्य ज्यादातर ‘जीवन के इस पर्दे से पार’ के हैं।
इसके अलावा दूसरी खास
बात ये भी है कि आजकल लेखकों द्वारा जितना भी साहित्य आदि लेखन हो रहा है। उसमें
सही मायनों में सही हिन्दी का इस्तेमाल ना के बराबर ही होता है, और
इसके स्थान पर उर्दू या अंग्रेजी या फ़िर अन्य प्रचलित अपभ्रंश शब्दों का इस्तेमाल
ही अधिक होता है। जो कि मेरे लेखन में नहीं है, या फ़िर बेहद
कम है।
तीसरी बात यह है कि
मेरा उद्देश्य सिर्फ़ एक लेखक के तौर पर स्थापित होना भर नहीं है। बल्कि अपने
पाठकों को तन्त्र मन्त्र,
योग, पुनर्जन्म, परालौकिक
आदि दुर्लभ विषयों पर अधिकाधिक जानकारी देना, तथा यदि उनमें
चाह और योग्यता है, तो उन विषयों में रुचि जगाते हुये शोध की
ओर उन्मुख करना भी है । क्योंकि संसार में तमाम लोग इस तरफ़ प्रयासरत हैं। पर शायद
कहीं न कहीं उन्हें सही जानकारी का अभाव है।
यहाँ यह बात ठीक से
समझ लेना चाहिये कि ऐसा लेखन सिर्फ़ मनोरंजन या दुनियावी जानकारी के उद्देश्य से
नहीं होता,
बल्कि उसका प्रभाव सीधा हमारी चेतना और अंतःकरण पर भी पङता है।
जिसका सम्बन्ध न सिर्फ़ वर्तमान जीवन से है, बल्कि बीत चुके
जन्मों, और आने वाले जन्मों से भी है।
अतः सामान्य तौर पर
जब कोई पाठक पहली बार मेरी किसी किताब को पढ़ता है, तो उसे कभी कभी तो खास
कोफ़्त सी महसूस होती है। उलझन और झुंझलाहट भी होती है। पर यहाँ वही बात है कि इसका
कारण विषय और मेरी अजीब सी लेखनशैली ही है, और जो कि जानबूझ
कर ही है।
अतः ऐसा भी नहीं है
कि यह सब में सरल साधारण भाषा में नहीं लिख सकता। लिख सकता हूँ। पर ऐसा करने से
फ़िर इसका उतना लाभ नहीं होगा। जिसकी होने की पूरी पूरी संभावना है।
इसलिये मेरा यही
निवेदन है कि ये सभी उपन्यास आपको कुछेक उपन्यास पढ़ लेने पर ही ठीक ठीक समझ आयेंगे, और
बहुत संभव है कि एक ही उपन्यास कुछ लोगों को दो या अधिक बार भी पढ़ना पङे।
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राजीव श्रेष्ठ
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