मंगलवार, जुलाई 26, 2011

डायन The Witch 8



ठीक दो घन्टे बाद ।
जैसे ही घङी ने रात के ग्यारह बजाये, हरीश को कुछ बैचेनी सी महसूस हुयी ।
ये बैचेनी क्यों थी, इसका उसे कुछ पता नहीं था । उसे लघुशंका की भी आवश्यकता महसूस हो रही थी । उसने अपने पास सोये लोगों पर निगाह डाली, और तख्त से उठ खङा हुआ । फ़िर वह लघुशंका हेतु मंदिर के पिछवाङे पहुँचा ।
तभी उसे मंदिर से कुछ ही फ़ासले पर स्थिति छोटी पहाङियों के नजदीक, जुगनू की तरह चमकती, मगर उससे अधिक प्रकाश वाली, चार आँखें सी चमकती नजर आयीं । जो किन्हीं जंगली जीवों जैसी प्रतीत होती थी । हरीश ने इससे पहले ऐसी अदभुत चीज कभी नहीं देखी थी, वह बेख्याली में सम्मोहित सा उधर ही जाने लगा, जैसे किसी अदृश्य डोर से बंधा हो ।
यह मौत का बुलावा था, अंतिम आमंत्रण ।
उसे नहीं पता था कि गजानन बाबा चुपचाप उसके पीछे दूरी बनाकर चल रहा था ।
बाहर हल्की हल्की सर्दी सी थी । यूँ भी खुले में गर्मियों में भी ठंड मालूम होती है । नीलेश ने अपने बदन पर जैकेट डाल ली, और उसकी जेबों में हाथ डाले हुये वह पहाङियों की तरफ़ जाने लगा । डायन कहाँ हैं, क्या कर रही है? अब इससे उसे कोई मतलब नहीं था ।
दरअसल उसने आज रात जागते ही गुजारने का तय कर लिया था, और वह इन आगंतुकों पर बराबर नजर रखे हुये था । उसे अच्छी तरह मालूम था कि डायन का कहा मिथ्या नहीं था, और वह इस मौत का लाइव टेलीकास्ट देखना चाहता था, जो बकौल चंडूलिका साक्षी अलफ़ थी, और टल भी सकती थी । हालांकि डायन ने अपने सभी पत्ते नहीं खोले थे, पर वह बेचारी नहीं जानती थी कि नीलेश महान योगियों के शक्तिपुंज से एक चेन द्वारा जुङा हुआ है, और बहुत कुछ जान गया है ।
जैसे ही हरीश उन जानवरों के समीप पहुँचा । उनका कुछ कुछ आकार उसे समझ आने लगा ।
वे चीते के बच्चे समान कोई जानवर थे, और आपस में लङते हुये से मालूम हो रहे थे । उससे कुछ ही अलग चलते हुये गजानन बाबा ने किसी अदृश्य प्रेरणा से हाथ में पत्थर का टुकङा उठा लिया था, और उन जंगली जानवरों को लक्ष्य कर मारने वाला था । उसका इरादा हरीश को बचाने का था ।
चंडूलिका साक्षी इस डैथ ग्राउंड से कुछ ही अलग एकदम शान्त खङी थी । पर उसकी आँखों में एक प्यासी खूनी चमक तैर रही थी । चार भयंकर यमदूत पहाङियों पर आ चुके थे, और अंतिम क्षणों के लिये तैयार थे, जिसमें बस अब कुछ ही देर थी ।
गजानन बाबा के हाथ से फ़ेंका गया पत्थर सनसनाता हुआ एक बिल्लोरी जानवर की ओर लपका । बस इसी का डायन को इंतजार था । पत्थर लगते ही जानवर मानो अपमान से तिलमिलाया । उसने बैचेनी से अपने शरीर को इधर उधर घुमाया । ठीक उसी क्षण चंडूलिका ने अपनी उंगली जानवर की ओर सीधी कर दी । वह पारदर्शी आकृति वाला जानवर सशरीर हरीश के जिस्म में समाकर एकाकार हो गया ।
हरीश एकदम से लङखङाया, और फ़िर झटके से सीधा हुआ ।
अब उसकी आँखों में वही बिल्लोरी जानवर जैसी तेज चमक नजर आ रही थी ।
गजानन बाबा के छक्के छूट गये ।
वह वापस ‘बचाओ बचाओ’ चिल्लाता हुआ मंदिर की तरफ़ भागा ।
- अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः, अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व । चंडूलिका की गम्भीर महीन आवाज गूँजी - यह देह तो मरणशील है, लेकिन इस शरीर में बैठने वाला आत्मा अमर है । इस आत्मा का न तो अन्त है, और न ही इसका दूसरा कोई मेल है । इसलिये मौत से मत भाग गजानन, और उससे युद्ध कर । मौत से भागकर, तू कहाँ जायेगा, मौत तेरे सिर पर नाच रही है । तेरा अन्त आ गया है ।
तभी यकायक दूसरा बिल्लोरी जानवर उछल कर लपका ।
और दूसरे ही क्षण वह गजानन बाबा के शरीर में समा गया ।
बाबा ने भागना बन्द कर दिया, और सधे सख्त कदमों से पलट कर हरीश की ओर बढ़ा ।
- भाग..हरीश.. ! अचानक सचेत होकर नीलेश चिल्लाया - भाग, जितना तेज भाग सके, यहाँ से दूर भाग ।
मगर हरीश ने जैसे सुना तक नहीं, और वह किसी मल्ल योद्धा की भांति गजानन बाबा से भिङ गया, और दोनों एक दूसरे का गला दबाने लगे । यहाँ तक कि दोनों की जीभें बाहर निकल आयीं । मगर गले पर उनकी पकङ कम नहीं हुयी ।
तभी नीलेश को डायन की आवाज फ़िर सुनाई दी - अँधेरा, कायम रहेगा ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।