मंगलवार, जुलाई 26, 2011

डायन The Witch 12




डायनी महल से आधा किमी पहले ही उसने टैक्सी छोङ दी, ताकि ड्राइवर को उलझन न हो, और कोई नयी बात न बने । और फ़िर वे दोनों आराम से टहलते हुये डायन के निवास की ओर जाने लगे । इतने आराम से कि डायन निवास पहुँचते पहुँचते उन्हें हल्का अंधेरा सा हो गया ।
जलवा को अंधेरे में उस खौफ़नाक घर में जाते समय बेहद डर लग रहा था । बाहर की अपेक्षा घर में अधिक अंधेरा था । फ़िर नीलेश सीधा डायन के कमरे में पहुँचा ।
और सामने लेटी एक बेहद घिनौनी बुढ़िया को देखकर बोला - ताई, राम राम ।
- ..आऽ ! जलवा के मुँह से डरावनी चीख निकल गयी ।
इस अनोखी रूपाकृति को देखकर वह इतना घबराया कि उसकी पेशाब निकलते निकलते बची ।
-------------

- आओ बच्चो ! बुढ़िया बङे प्यार से धीमे धीमे मरी आवाज में बोली - बैठ जाओ, बङे दिनों बाद, इस बरसों से सूनी पङी हवेली में, मेरे अलावा भी कोई आया है । जानते हो क्यों, क्योंकि लोग कहते हैं कि मैं डायन हूँ..। कहते कहते वह सुबकने लगी - क्या तुम लोगों को मैं किसी तरफ़ से भी डायन लगती हूँ ।
- ये बोल ! जलवा ने बेहद घृणा से मन ही मन में कहा - कि किस एंगल से नहीं लगती । तू तो डायन क्या, डायन की अम्मा नानी दादी चाची सब लगती है । 
नीलेश ने उसकी कसमसाहट समझते हुये उसकी हथेली दबायी । और वह बैठता तो कहाँ बैठता, अतः कमरे में बने आलमारी के गन्दे खानों में ही टेक लेता हुआ टिक गया । नीलेश ने बाजार से खरीदी मोटी और बङी मोमबत्ती से एक मोमबत्ती जलाकर वहाँ चिपका दी । मजबूरी में जलवा ने भी वैसा ही किया । लेकिन वह इस कमरे से क्या, इस मकान से क्या, इस शहर से ही चला जाना चाहता था । इतनी घिनौनी बूढ़ी औरत से उसका आज तक पाला नहीं पङा था ।
- बिलकुल नहीं ! नीलेश सामान्य स्वर में बोला - लोगों के देखने में फ़र्क है, निगाह का अन्तर, जिसे कहते हैं । आप तो एकदम संतोषी माँ लगती हो ।
- मेरा नाम मौलश्री है । बुढ़िया कमजोर आवाज में बोली - तुमने कुछ खा पी लिया मेरे बच्चों ।
- क्या खिलायेगी हरामजादी ! जलवा के मन में घिन हुयी - ये सङी बकरिया, या चमगादङ का खून ।
- ताई ! अचानक नीलेश जलवा की व्यग्रता समझता हुआ बोला - वो हरीश अभी है, या तूने उसे मुक्त कर दिया । शायद जो काम तू वहाँ न कर पायी हो, वो यहाँ कर दिया हो, क्योंकि आज दो दिन और हो गये ।
- अभी कहाँ..अभी तो बहुत काम बाकी है रे ! वह कोहनी के बल टिकती हुयी बोली - अभी बहुत काम बाकी है । मुझ बूढ़ी को क्या क्या नहीं करना पङता, क्या क्या नहीं । सत्तर लोगों को ले जाने की डयूटी है मेरी । अब तक छप्पन ही हुये । अभी चौदह और भी बाकी हैं ।
- फ़िर बङा स्लो काम करती है तू । पचासी की तो तू हो ही गयी, और पचासी में सिर्फ़ छप्पन । तेरे ऊपर वाले कुछ टोकते नहीं क्या?
उसने कोई जबाब नहीं दिया, और ब्लाउज में हाथ डालकर बगल खुजाने लगी । उसके बेहद ढीले ब्लाउज के सिर्फ़ दो बटन लगे थे, और इस तरह खुजाने से उसका दुही जा चुकी बकरी के थन के समान एक निचुङा स्तन बाहर आ गया ।
जलवा को इतनी घिन आयी कि अबकी उसने कोई परवाह न करते हुये साइड में थूक दिया ।


अमेजोन किंडले पर उपलब्ध
available on kindle amazon



कोई टिप्पणी नहीं:

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।