मंगलवार, जुलाई 26, 2011

डायन The Witch 2



तभी अचानक उसके मोबायल फ़ोन की घन्टी बजी ।
उसने रिसीव करते हुये कहा - यस ।
- सर ! दूसरी तरफ़ से आवाज आयी - हम लोग लाडू धर्मशाला के पास आ गये हैं । अब प्लीज आगे की लोकेशन बतायें ।
उसने बताया, और अपनी कीमती रिस्टवाच पर दृष्टिपात किया ।
फ़िर वह बुदबुदाया - लाडू धर्मशाला.. इसका मतलब गड्डी से भी आधा घन्टा लगना था ।
और अभी शाम के चार बजने जा रहे थे ।
फ़िर वह लगभग टहलता हुआ सा मन्दिर की खिङकी के पास आया, और नीचे दूर दूर तक फ़ैले खेत, और उसके बाद घाटी और पहाङी को निहारने लगा । इस वक्त वह किशोरीपुर के वनखंड स्थित शिवालय में मौजूद था, और पिछले दो दिन से यहाँ था ।
वनखण्डी बाबा के नाम से प्रसिद्ध ये मन्दिर किशोरीपुर से बारह किमी दूर एकदम सुनसान स्थान पर था, और कुछ प्रमुख पर्वों पर ही लोग यहाँ पूजा आदि करने आते थे । जिन लोगों की मन्नत मान्यतायें इस मन्दिर से जुङी थी । वे भी गाहे बगाहे आ जाते थे ।
इस मन्दिर का पुजारी बदरी बाबा नाम का बासठ साल आयु का बाबा था । जो पिछले बीस सालों से इसी मन्दिर में रह रहा था । इसके अतिरिक्त चरस गांजे के शौकीन चरसी गंजेङी बाबा भी इस मन्दिर पर डेरा डाले रहते थे । और कभी कोई कभी कोई के आवागमन के क्रम में नागा, वैष्णव, नाथ, गिरी, अघोरी आदि विभिन्न मत के पन्द्रह बीस साधु हमेशा डेरा डाले ही रहते थे । विभिन्न वेशभू्षाओं में सजे इन खतरनाक बाबाओं को शाम के अंधेरे में चिलम पीता देखकर मजबूत से मजबूत जिगरवाला भी भय से कांप सकता था ।
पर बदरी बाबा एक मामले में बङा सख्त था ।
किसी भी मत का बाबा क्यों न आ जाय । वह मन्दिर के अन्दर बाहर शराब पीने और गोश्त खाने की इजाजत नहीं देता था । हाँ, गाँजे की चिलम और अफ़ीम का नशा करने की खुली छूट थी । क्योंकि खुद बदरी बाबा भी इन नशों का शौकीन था ।
इस समय भी मन्दिर पर बदरी और नीलेश के अलावा ग्यारह अन्य साधु मौजूद थे । जिनमें एक अघोरी और दो नागा भी आये हुये थे । नीलेश इन सबसे अलग मन्दिर के रिहायशी हिस्से की तिमंजिला छत पर मौजूद था । यह स्थान भी उसके गुप्त साधना स्थलों में से एक था, और बदरी प्रसून का तो भगवान के समान आदर करता था ।
- कहाँ होगा इसका अंत? नीलेश फ़िर से सोचने लगा - बङी विचित्र है, ये द्वैत की साधना भी । एक चीज में से हजार चीज निकलती हैं । जब भाई और गुरू ही खोज में हैं, तो वह तो बच्चा है । पुरुष और प्रकृति, और जीव और भगवान..द्वैत को लोगों ने अपनी अपनी तरह से बयान किया है फ़िर भी इसका रहस्य ज्यों का त्यों सा लगता है फ़िर आखिर इसकी जङ कहाँ है?
ऐसे ही विचारों के बीच उसने सिगरेट सुलगायी, और टहलता हुआ सा मंदिर वाले हिस्से की तरफ़ आया । बदरी बाबा चूल्हे पर चाय चढ़ा रहा था ।
तभी उसे दूर मंदिर की टेङी मेङी पगडंडीनुमा सङक पर एक बुलेरो आती दिखायी दी । नीचे बाबा लोग गोरखमत की किसी बात को लेकर झगङा करने के अन्दाज में बहस कर रहे थे ।
कुछ ही मिनटों में बुलेरो मंदिर के प्रांगण में आकर रुक गयी, और उससे चार लोग बाहर निकले । जिनमें दो अधेङ एक वृद्ध और एक युवा था । वे बदरी बाबा से कुछ पूछने लगे ।
तब बदरी बाबा ने मंदिर की सीढ़ियों की तरफ़ इशारा किया ।


अमेजोन किंडले पर उपलब्ध
available on kindle amazon


कोई टिप्पणी नहीं:

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।