दो घण्टे बीत गये ।
रूपा निढाल सी एक तरफ़ बैठी थी ।
रूपा निढाल सी एक तरफ़ बैठी थी ।
चोखा अलग जमीन पर
बैठा था । वह किसी खूँखार शेरनी की तरह रति स्थान पर टपके रक्त को देख रही थी ।
उसकी आँखों में घृणा का सागर उमङ रहा था ।
फ़िर अचानक वह उठी । इसके साथ ही किसी यन्त्र सा चोखा भी खङा हो गया । वह रक्त के पास पहुँची, और उसे उँगली से लगाया । फ़िर उसने चोखा का तिलक किया, और अपने माथे पर गोल बिन्दी लगायी ।
- अब । वह खतरनाक स्वर में बोली - जाओ । फ़िर वह चीखी - जाओ तुम, मैंने कहा जाओऽ..।
चोखा के बदन से परछाई नुमा साया निकलकर पेङ पर चला गया । चोखा फ़िर लङखङाया, और गिरता गिरता संभल गया । बल्कि वह गिरने ही वाला था । जब रूपा ने उसे संभाला ।
- तूने..। फ़िर यकायक वह घोर नफ़रत से बोली - मेरा कौमार्य भंग किया बोल.. तूने वो अमानत जो..पति की थी, उसे नष्ट किया । बोल..पापी..बोल..अब बोलता क्यों नहीं ।
चोखा को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कह रही है, और क्यों कह रही है । उसे तेज चक्कर सा आ रहा था, और वह मुश्किल से खङा हो पा रहा था ।
रूपा ने किसी महाराष्ट्रियन औरत की भांति साङी समेटी, उसने साङी का पल्लू कसकर खोंसा ।
फ़िर वह किसी लङाके की भांति चोखा की तरफ़ बढ़ी, और जबरदस्त घूँसा उसके जबङे पर मारा । चोखा को काली रात में दिन सा नजर आने लगा । घूँसा उसे किसी भारी घन की चोट के समान महसूस हुआ । उसका जबङा हिल गया, और खून निकलने लगा । फ़िर रूपा ने किसी दक्ष लङाके की तरह उसे लात घूँसों पर रख लिया । चोखा पलटवार तो दूर अपना बचाव भी न कर सका, और अन्त में पस्त होकर चिता के पास गिर पङा । उसकी नाक से भल भल कर खून निकल रहा था ।
तब घायल शेरनी सी रूपा ने अपनी झूलती लटों को अपने सुन्दर मुखङे पर पीछे फ़ेंका, और गहरी गहरी सांसें लेने लगी । उसका सीना तेजी से ऊपर नीचे हो रहा था ।
- धन्यवाद चंडूलिका । उसके कानों में सुनाई दिया - धन्यवाद ।
- ऐ । अचानक वह गुर्राई - धन्यवाद नहीं वेताल, हमें शरीर बार बार नहीं मिलते । वो भी ऐसे काम प्रवाहित माहौल में, जलती चिता, दो माध्यम जिस्म, जवान कन्या और कद्दावर मनुष्य । मैं हमेशा इसकी भूखी रहती हूँ ।
- पर । उसके कानों में भयभीत स्वर सुनाई दिया - ये माध्यम मर जायेगी देवी, और मैं इससे प्यार करता हूँ ।
- मर जाने दे । वह नफ़रत से बोली - मैं चाहती हूँ कि सभी मर जायें । इस समाज की मूर्ख बन्दिशों के चलते ही हम प्रेतनियाँ अतृप्त मरी हैं । तू भी इन्हीं मनुष्यों का ही तो शिकार हुआ । मनुष्य, हाँ मनुष्य, जो कभी हम भी थे ।
कहते कहते अचानक वह फ़ूट फ़ूटकर रोने लगी ।
फ़िर अचानक वह उठी । इसके साथ ही किसी यन्त्र सा चोखा भी खङा हो गया । वह रक्त के पास पहुँची, और उसे उँगली से लगाया । फ़िर उसने चोखा का तिलक किया, और अपने माथे पर गोल बिन्दी लगायी ।
- अब । वह खतरनाक स्वर में बोली - जाओ । फ़िर वह चीखी - जाओ तुम, मैंने कहा जाओऽ..।
चोखा के बदन से परछाई नुमा साया निकलकर पेङ पर चला गया । चोखा फ़िर लङखङाया, और गिरता गिरता संभल गया । बल्कि वह गिरने ही वाला था । जब रूपा ने उसे संभाला ।
- तूने..। फ़िर यकायक वह घोर नफ़रत से बोली - मेरा कौमार्य भंग किया बोल.. तूने वो अमानत जो..पति की थी, उसे नष्ट किया । बोल..पापी..बोल..अब बोलता क्यों नहीं ।
चोखा को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कह रही है, और क्यों कह रही है । उसे तेज चक्कर सा आ रहा था, और वह मुश्किल से खङा हो पा रहा था ।
रूपा ने किसी महाराष्ट्रियन औरत की भांति साङी समेटी, उसने साङी का पल्लू कसकर खोंसा ।
फ़िर वह किसी लङाके की भांति चोखा की तरफ़ बढ़ी, और जबरदस्त घूँसा उसके जबङे पर मारा । चोखा को काली रात में दिन सा नजर आने लगा । घूँसा उसे किसी भारी घन की चोट के समान महसूस हुआ । उसका जबङा हिल गया, और खून निकलने लगा । फ़िर रूपा ने किसी दक्ष लङाके की तरह उसे लात घूँसों पर रख लिया । चोखा पलटवार तो दूर अपना बचाव भी न कर सका, और अन्त में पस्त होकर चिता के पास गिर पङा । उसकी नाक से भल भल कर खून निकल रहा था ।
तब घायल शेरनी सी रूपा ने अपनी झूलती लटों को अपने सुन्दर मुखङे पर पीछे फ़ेंका, और गहरी गहरी सांसें लेने लगी । उसका सीना तेजी से ऊपर नीचे हो रहा था ।
- धन्यवाद चंडूलिका । उसके कानों में सुनाई दिया - धन्यवाद ।
- ऐ । अचानक वह गुर्राई - धन्यवाद नहीं वेताल, हमें शरीर बार बार नहीं मिलते । वो भी ऐसे काम प्रवाहित माहौल में, जलती चिता, दो माध्यम जिस्म, जवान कन्या और कद्दावर मनुष्य । मैं हमेशा इसकी भूखी रहती हूँ ।
- पर । उसके कानों में भयभीत स्वर सुनाई दिया - ये माध्यम मर जायेगी देवी, और मैं इससे प्यार करता हूँ ।
- मर जाने दे । वह नफ़रत से बोली - मैं चाहती हूँ कि सभी मर जायें । इस समाज की मूर्ख बन्दिशों के चलते ही हम प्रेतनियाँ अतृप्त मरी हैं । तू भी इन्हीं मनुष्यों का ही तो शिकार हुआ । मनुष्य, हाँ मनुष्य, जो कभी हम भी थे ।
कहते कहते अचानक वह फ़ूट फ़ूटकर रोने लगी ।
फ़िर तेज स्वर में अट्टाहास
करने लगी ।
यकायक उसने भरपूर
थप्पङ चोखा के गाल पर मारा,
और उसी पल चोखा उस पर झपट पङा । चिता पूरी तरह जल चुकी थी ।
अब
उसमें अंगार ना के बराबर थे, बस उसकी राख ही गर्म थी ।अमेजन किंडले पर उपलब्ध उपन्यास
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