सोमवार, अगस्त 22, 2011

अंगिया वेताल 10



दो घण्टे बीत गये ।
रूपा निढाल सी एक तरफ़ बैठी थी ।
चोखा अलग जमीन पर बैठा था । वह किसी खूँखार शेरनी की तरह रति स्थान पर टपके रक्त को देख रही थी । उसकी आँखों में घृणा का सागर उमङ रहा था ।
फ़िर अचानक वह उठी । इसके साथ ही किसी यन्त्र सा चोखा भी खङा हो गया । वह रक्त के पास पहुँची, और उसे उँगली से लगाया । फ़िर उसने चोखा का तिलक किया, और अपने माथे पर गोल बिन्दी लगायी ।
- अब । वह खतरनाक स्वर में बोली - जाओ । फ़िर वह चीखी - जाओ तुम, मैंने कहा जाओऽ..
चोखा के बदन से परछाई नुमा साया निकलकर पेङ पर चला गया । चोखा फ़िर लङखङाया, और गिरता गिरता संभल गया । बल्कि वह गिरने ही वाला था । जब रूपा ने उसे संभाला ।
- तूने..। फ़िर यकायक वह घोर नफ़रत से बोली - मेरा कौमार्य भंग किया बोल.. तूने वो अमानत जो..पति की थी, उसे नष्ट किया । बोल..पापी..बोल..अब बोलता क्यों नहीं ।
चोखा को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कह रही है, और क्यों कह रही है । उसे तेज चक्कर सा आ रहा था, और वह मुश्किल से खङा हो पा रहा था ।
रूपा ने किसी महाराष्ट्रियन औरत की भांति साङी समेटी, उसने साङी का पल्लू कसकर खोंसा ।
फ़िर वह किसी लङाके की भांति चोखा की तरफ़ बढ़ी, और जबरदस्त घूँसा उसके जबङे पर मारा । चोखा को काली रात में दिन सा नजर आने लगा । घूँसा उसे किसी भारी घन की चोट के समान महसूस हुआ । उसका जबङा हिल गया, और खून निकलने लगा । फ़िर रूपा ने किसी दक्ष लङाके की तरह उसे लात घूँसों पर रख लिया । चोखा पलटवार तो दूर अपना बचाव भी न कर सका, और अन्त में पस्त होकर चिता के पास गिर पङा । उसकी नाक से भल भल कर खून निकल रहा था ।
तब घायल शेरनी सी रूपा ने अपनी झूलती लटों को अपने सुन्दर मुखङे पर पीछे फ़ेंका, और गहरी गहरी सांसें लेने लगी । उसका सीना तेजी से ऊपर नीचे हो रहा था ।
- धन्यवाद चंडूलिका । उसके कानों में सुनाई दिया - धन्यवाद ।
- ऐ । अचानक वह गुर्राई - धन्यवाद नहीं वेताल, हमें शरीर बार बार नहीं मिलते । वो भी ऐसे काम प्रवाहित माहौल में, जलती चिता, दो माध्यम जिस्म, जवान कन्या और कद्दावर मनुष्य । मैं हमेशा इसकी भूखी रहती हूँ ।
- पर । उसके कानों में भयभीत स्वर सुनाई दिया - ये माध्यम मर जायेगी देवी, और मैं इससे प्यार करता हूँ ।
- मर जाने दे । वह नफ़रत से बोली - मैं चाहती हूँ कि सभी मर जायें । इस समाज की मूर्ख बन्दिशों के चलते ही हम प्रेतनियाँ अतृप्त मरी हैं । तू भी इन्हीं मनुष्यों का ही तो शिकार हुआ । मनुष्य, हाँ मनुष्य, जो कभी हम भी थे ।
कहते कहते अचानक वह फ़ूट फ़ूटकर रोने लगी ।
फ़िर तेज स्वर में अट्टाहास करने लगी ।
यकायक उसने भरपूर थप्पङ चोखा के गाल पर मारा, और उसी पल चोखा उस पर झपट पङा । चिता पूरी तरह जल चुकी थी ।
अब उसमें अंगार ना के बराबर थे, बस उसकी राख ही गर्म थी ।


अमेजन किंडले पर उपलब्ध उपन्यास

available on kindle amazon

कोई टिप्पणी नहीं:

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।