शुक्रवार, अप्रैल 22, 2011

चुङैल 1



प्रसून दी ग्रेट !
बेहद हैरत से उस शख्स को देख रहा था, और आज बङे अच्छे मूड में था ।
हैरत से इसलिये कि उसके तांत्रिक मांत्रिक होने की जिस बात को अब तक स्वयं उसके परिवार वाले कभी नहीं जान पाये थे । उस बात को दूरदराज रहने वाले लोग कैसे जान लेते थे । और न सिर्फ़ जान लेते थे । बल्कि कोई प्वाइंट निकाल कर अपनी प्रेतबाधा आदि समस्या दूर करवाने में सफ़ल भी हो जाते थे । तमाम अन्य लोगों की तरह उसके घरवाले भी उसे कीट विज्ञान के एक शोधार्थी के तौर पर ही जानते थे ।
अब तक अविवाहित रहने के बहाने बनाता हुआ, और जीवन में विवाह और स्त्री से सदा दूर रहने का व्रत ले चुके, प्रसून को कभी कभी, स्वयं अपने आप ही, अपना अस्तित्व, अपने लिये ही रहस्यमय लगता था । उसने अपनी समस्त जिंदगी तन्त्र और योग साधना के लिये अर्पण कर दी थी । अब इसमें आगे क्या और कैसा होना था, ये उसके गुरू और भगवान पर निर्भर था । द्वैत का ये निपुण साधक कितनी विद्याओं का ज्ञाता था । शायद ये स्वयं उसको भी पता नहीं था, और कोई कार्य पङने पर ही उसे समझ आता था कि ये उसकी यौगिक सामर्थ्य में है, या नहीं ।
अभी शाम के चार बज चुके थे ।
जब उसने अपनी व्यक्तिगत कोठी के सामने सङक पर खङी स्कोडा का डोर खोला ही था कि उसके कानों में आवाज आई - माई बाप..
प्रसून ने मुङकर देखा, और लगभग देहाती से दिखने वाले उस इंसान से बोला - हू..मी?
फ़िर उसे जैसे अपनी गलती का अहसास हुआ ।
और उसने तुरन्त हिन्दी में कहा - कौन मैं..मुझे?
फ़िर जैसे और भी निश्चय करने के लिये उसने अपनी ही उंगली से अपने सीने को ठोंका ।
- हाँ, माई बाप..। वह आदमी हाथ जोङकर बोला ।
प्रसून ने हैरत के भाव लाकर अपने आसपास देखा, और बोला - बाप तो समझ आया, लेकिन माई कहाँ है?
देहाती ही ही करके हंसा, और हाथ जोङकर खङा हो गया ।
उसका मतलब समझ कर प्रसून वापस कोठी की तरफ़ मुङा, और उसे पीछे आने का इशारा किया । आगे के संभावित मैटर को पहले ही भांपकर वह कोठी के उस स्पेशल रूम में गया । जो उसकी साधना से रिलेटिव था । एक बेहद बङी गोल मेज के चारो तरफ़ बिछी कुर्सियों पर दोनों बैठ गये । इस कमरे में हमेशा बेहद हल्की रोशनी रहती थी, और लगभग अंधेरे से उस विशाल कक्ष में बेहद कम रोशनी वाले गहरे गुलाबी और बैंगनी रंग के बल्ब एक अजीब सा रहस्यमय माहौल पैदा करते थे ।
प्रसून ने एक सिगरेट सुलगायी, और बेहद मीठे स्वर में बोला - कहिये?
वह आदमी चालीस किलोमीटर दूर एक शहर के पास बसे एक कस्बे से आया था ।
और उसका नाम टीकम सिंह था ।
उसकी पत्नी पिछले तीन सालों से लगातार बीमार थी, और खाट पर ही पङी रहती थी । टीकम सिंह ने अपनी हैसियत के अनुसार काफ़ी पैसा उसके इलाज पर खर्च कर दिया था । पर कोई लाभ नहीं हुआ था । बीच बीच में लोगों ने भूतबाधा या ग्रह नक्षत्र विपरीत होने की भी सलाह दी । तब टीकम सिंह ने उसका भी इलाज कराया । पर नतीजा वही ढाक के तीन पात रहा । लेकिन अब टीकम सिंह को ये पक्का विश्वास हो गया था कि उसकी पत्नी प्रेतबाधा से ही प्रभावित है ।
और इसकी दो खास वजह भी थीं ।
दरअसल उसके मकान के दोनों साइड जो पङोसी थे । वे वास्तव में भूत ही थे ।
उसके मकान के एक साइड में एक वर्षों पुराना हवेलीनुमा खंडहर मकान था । जिसमें पिछले अस्सी वर्षों से कोई नहीं रहता था, और उसके वारिसान का भी कोई पता ठिकाना नहीं था । टीकम सिंह इस मकान का इस्तेमाल अपने लिये भैंस बांधने और उपले थापने के लिये करता था ।
जबकि उसके मकान के दूसरे साइड में एक बेहद पुराना कब्रिस्तान था । लेकिन अब उसमें मुर्दों को दफ़नाया नहीं जाता था । इन दोनों वीरान पङोसियों के साथ ये दिलदार इंसान वर्षों से अकेला रह रहा था, और उसने कभी कोई दिक्कत महसूस न की थी ।
लेकिन पिछले तीन साल से उसकी पत्नी जो बीमार पङी, तो फ़िर उठ ही न सकी ।
- और इस बात से । प्रसून बोला - आप कूदकर इस नतीजे पर पहुँच गये कि आपकी पत्नी किसी भूत प्रेत के चंगुल में है । अगर कोई बीमारी ठीक ना हो, तो इसका मतलब उसको भूत लग चुके हैं ।
स्वाभाविक ही किसी आम देहाती इंसान की तरह टीकम सिंह प्रसून की पर्सनालिटी उसके घर वैभव आदि से इस कदर झेंप रहा था कि अपनी बात कहने के लिये उचित शब्दों का चुनाव नहीं कर पा रहा था ।
- ना माई बाप । टीकम सिंह हिम्मत करके बोला - ऐसा होता, तो उस मकान में जिसमें रहने की कोई हिम्मत नहीं कर पाता, मैं वर्षों से कैसे रहता । सही बात तो ये है कि मुझे पहले ही पता था कि मेरे दोनों तरफ़ भूतवासा है, और मैंने उसे महसूस भी किया था । पर मैंने सोचा कि ये भूत भी कभी इंसान थे । जब हमें उनसे कोई मतलब नहीं, तो उन्हें भी कोई मतलब नहीं होगा । शायद हम भी मरकर भूत ही बनें । फ़िर भूतों से डरना कैसा ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।