गुरुवार, अप्रैल 21, 2011

चुङैल 7




जवानी के इस खेल में हमें ऐसा आनन्द आया कि हम रोज रोज ही अंजाम की परवाह किये बिना संभोग करने लगे, और परिणाम स्वरूप मुझे एक महीने का गर्भ ठहर गया ।
अभी मैं ठीक से इस बारे में जान ही पायी थी कि खुशकिस्मती से अगले ही महीने मेरी शादी हो गयी, और मैं ससुराल आ गयी । मेरे पेट में एक माह का गर्भ था । ठीक आठ महीने दस दिन बाद मैंने बांके के बच्चे को जन्म दिया । जिसका नाम गिरीश रखा गया । पर अब वह मेरे पति का बच्चा था, और असली सच सिर्फ़ मुझे ही पता था ।
विधवा होने के बाद जब मैं फ़िर से मायके रहने लगी, तो आते जाते बांके से मेरी नजरें चार हो ही जाती थी । मैंने महसूस किया कि बांके अब भी लालायित होकर मेरी तरफ़ देखता है । पर हिम्मत नहीं कर पाता । तब मेरे दिल में दबी हुयी पुरानी चिंगारी भङक उठी, और मैं उसकी तरफ़ देखकर मुस्करा दी । इसके बाद स्पष्ट इशारा करने हेतु उसे कुंएं से बाल्टी भरते समय मैंने कुंएं में झांकने का बहाना करते हुये अपने स्तन उसकी पीठ से सटा दिये । यह इशारा काफ़ी था ।
दूसरे दिन दोपहर में जब मैं पेङ के सहारे खङी थी । बांके ने पीछे से आकर ब्लाउज के ऊपर से मेरे स्तन पर हाथ रख दिये, और हम दोनों अरहर के खेत में चले गये । वासना के अन्धों को कुछ दिखाई नहीं देता । यही बात हमारे ऊपर लागू हुयी । लेकिन दूसरे हमें देख रहे हो सकते हैं ।
मोती नाम का एक गाँव का लङका हमें देख रहा था । अभी हम वासना के झूले में झूल ही रहे थे कि हमें आसपास लोगों का कोलाहल सुनाई दिया, और देखते ही देखते कई लोग अरहर के खेत में घुस आये । उन्होंने बांके के बाल पकङकर उसे खींच लिया, और जूते मारते हुये गाँव की तरफ़ ले जाने लगे । इत्तफ़ाकन उन लोगों में मेरा भाई भी था । वह मुझे लगभग घसीटता हुआ गाँव की तरफ़ ले जाने लगा । गाँव के लोगों को इस अनाचार पर इतना क्रोध था कि मानो वे हम दोनों को मार ही डालेंगे ।
खैर प्रसून जी, इंसान की गलती कितनी ही बङी क्यों न हो, फ़िर भी उसे कोई एकदम नहीं मार देता । शाम को बङे बूढ़ों ने सोच विचार कर पंचायत रखने का फ़ैसला किया । ये पंचायत दस दिन बाद की रखी गयी थी ।
यदि बांके कुँवारा होता, तो मैं जानती थी कि पंचायत के फ़ैसले से उसे मुझ विधवा के साथ शादी करनी ही पङती । पर वह न सिर्फ़ शादीशुदा था । बल्कि उसके चार बच्चे भी थे । तब पंचायत क्या फ़ैसला करेगी, ये सोचकर मेरा दिल काँप जाता था । मैंने घर से निकलना बन्द कर दिया था । अतः मुझे बांके के बारे में कोई खबर नहीं थी ।
पंचायत का दिन करीब आ रहा था । उससे ठीक एक दिन पहले बांके ने गाँव के बगीचे में पेङ से फ़ाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली । यह खबर जैसे ही मेरे पास आयी, मेरा दिल काँप कर रह गया । अब मैं इस मामले में अकेली थी । पंचायत क्या फ़ैसला करेगी? हो सकता है मुझे चरित्रहीनता के आधार पर गाँव से निकाल दिया जाय । उस हालत में अब मैं कहाँ जाऊँगी । हालांकि मैं अच्छी खासी सेठानी थी । पर एक नितान्त अकेली औरत सिर्फ़ धन के सहारे जीवन नहीं बिता सकती । इसलिये मेरे दिल में भी बारबार यही विचार आ रहा था कि मुझे भी फ़ाँसी लगाकर आत्महत्या कर लेनी चाहिये । पर जेवरातों से भरा बक्सा मुझे कोई भी ऐसा कदम उठाने से रोक रहा था ।..
कहते कहते अचानक अल्ला रुक गयी ।
और झूलती हुयी सी बेहोश होकर चेयर पर लुङक गयी ।
टीकम सिंह घबरा गया ।
जेनी ने कुछ उलझन के साथ प्रसून की तरफ़ देखा ।
उसके मुँह से निकला - सारी, आरेंज जूस ।



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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।