कुछ
देर तक मदहोश करने वाली मधुर ध्वनिलहरी कमरे में गूंजती रही ।
प्रसून
ने सिगरेट सुलगायी, और अकारण ही मेज पर गोल गोल
उंगली घुमाते हुये मानो वृत सा बनाने लगा । अब तक के इस कार्यक्रम का उद्देश्य
दरअसल अल्ला को सशक्त माध्यम के तौर पर तैयार करना था । हालांकि जेनी ऐसी बातों की
पूर्व अभ्यस्त थी । पर वह फ़िर भी माहौल को हल्का ही रहने देना चाहता था । लेकिन
जब एक चुङैल की मौजूदगी के बाद भी माहौल कतई असामान्य नहीं हुआ । तब उसने मेज के
नीचे फ़िक्स एक इलेक्ट्रिक हीट प्लेट पर मौजूद बर्तन में लोबान मिक्स कुछ सुगन्धित
पदार्थ डाल दिये, और स्विच आन कर दिया ।
कुछ
ही क्षणों में कमरे में अजीब गन्ध वाला धुँआ फ़ैलने लगा ।
- ओके । फ़िर वह अल्ला से मुखातिब होकर बोला - कामिनी जी, अब बताईये । मैं आपके बारे में जानना चाहता हूँ कि आप वहाँ कब से हैं, क्यों है, आदि आदि?
- जो आज्ञा योगीराज । कामिनी बोली - ये बयासी साल पहले की बात है । उस समय मेरी आयु इकत्तीस साल की थी, और मैं अपने पाँच बच्चों और पति के साथ इसी हवेलीनुमा मकान में सुख से रहती थी । काफ़ी बङे इस मकान में मेरे तीन देवर, उनकी पत्नियाँ, बच्चे, और मेरे सास ससुर आदि भी रहते थे । हमारी जिंदगी मजे से कट रही थी ।
मेरे एक देवर का नाम रोशनलाल था । रोशनलाल अक्सर हफ़्ते पन्द्रह दिन बाद सोने चांदी के जेवरात लाता था, और मुझे चुपचाप रखने के लिये दे देता था । ये बात न उसकी पत्नी को मालूम थी, न मेरे पति को, न अन्य किसी को । और इसकी वजह यह थी कि रोशनलाल की पत्नी सु्खदेवी मुँहफ़ट थी । अगर रोशन जेवर उसे देता, तो वह अवश्य पङोस आदि में इसका जिक्र कर देती । एक दो किलो सोने के जेवर उस समय के खाते पीते घर में होना कोई बङी बात नहीं थी । अक्सर कई लोगों के घर होते ही थे ।
पर रोशनलाल का मामला और ही था । वह एक महीने में ही आधा सेर सोना चाँदी जेवरात के रूप में ले आता था, और मेरे पूछने पर कहता कि वह जेवरात गाहने यानी गिरवी रखने का काम करता है । मेरे कमरे में आलमारी के नीचे एक गुप्त स्थान था । जिसमें एक बक्सा फ़िट करके रखा हुआ था । मैं जेवरों को उसी बक्से में डाल देती थी । लेकिन कहते हैं ना कि किसी की हाय कभी न कभी असर दिखा ही जाती है ।
एक रात
जब हम सब लोग सोये हुये थे कि अचानक शोरगुल की आवाज पर मैं चौंककर उठ बैठी । हमारे
घर में डाकू घुस आये थे, और डयौङी में सास ससुर के पास खङे थे
। वे कह रहे थे, तुम्हें पता है कि रोशनलाल को हमने मार डाला
है । शायद तुम लोग न जानते हो, पर रोशन एक डाकू था, और हमारा साथी था ।- ओके । फ़िर वह अल्ला से मुखातिब होकर बोला - कामिनी जी, अब बताईये । मैं आपके बारे में जानना चाहता हूँ कि आप वहाँ कब से हैं, क्यों है, आदि आदि?
- जो आज्ञा योगीराज । कामिनी बोली - ये बयासी साल पहले की बात है । उस समय मेरी आयु इकत्तीस साल की थी, और मैं अपने पाँच बच्चों और पति के साथ इसी हवेलीनुमा मकान में सुख से रहती थी । काफ़ी बङे इस मकान में मेरे तीन देवर, उनकी पत्नियाँ, बच्चे, और मेरे सास ससुर आदि भी रहते थे । हमारी जिंदगी मजे से कट रही थी ।
मेरे एक देवर का नाम रोशनलाल था । रोशनलाल अक्सर हफ़्ते पन्द्रह दिन बाद सोने चांदी के जेवरात लाता था, और मुझे चुपचाप रखने के लिये दे देता था । ये बात न उसकी पत्नी को मालूम थी, न मेरे पति को, न अन्य किसी को । और इसकी वजह यह थी कि रोशनलाल की पत्नी सु्खदेवी मुँहफ़ट थी । अगर रोशन जेवर उसे देता, तो वह अवश्य पङोस आदि में इसका जिक्र कर देती । एक दो किलो सोने के जेवर उस समय के खाते पीते घर में होना कोई बङी बात नहीं थी । अक्सर कई लोगों के घर होते ही थे ।
पर रोशनलाल का मामला और ही था । वह एक महीने में ही आधा सेर सोना चाँदी जेवरात के रूप में ले आता था, और मेरे पूछने पर कहता कि वह जेवरात गाहने यानी गिरवी रखने का काम करता है । मेरे कमरे में आलमारी के नीचे एक गुप्त स्थान था । जिसमें एक बक्सा फ़िट करके रखा हुआ था । मैं जेवरों को उसी बक्से में डाल देती थी । लेकिन कहते हैं ना कि किसी की हाय कभी न कभी असर दिखा ही जाती है ।
अभी कुछ दिनों पहले हमने एक शादी वाले घर में डाका डाला था । जिसकी खबर रोशन के एक मुखबिर से ही मिली थी । लेकिन जब हम डाका डाल रहे थे, तभी एक बुढ़िया ने सरदार के पैर पकङ लिये, और बोली । अगर हम लोगों ने उसे लूट लिया तो उसकी इकलौती नातिनी की शादी कभी नहीं हो पायेगी । जिसका कन्यादान मरने से पहले लेने की उसकी बेहद इच्छा है ।
जब यह सब चल ही रहा था, तो अन्दर से चीखने की जोरदार आवाज आई । अन्दर डकैती डालने गये रोशनलाल ने लङकी के छोटे भाई के गले पर कटार रखते हुये जब सब जेवर निकलवा कर कब्जे में कर लिये, तो उसका छोटा भाई यह कहते हुये, कि मैं अपनी जीजी के गहने तुझे नहीं ले जाने दूँगा, उससे लिपट गया, और वह गलती से रोशनलाल के द्वारा मारा गया ।
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