रविवार, अप्रैल 01, 2012

कामवासना 4



वह काली छाया अभी भी उस बूढ़े पीपल के आसपास ही टहल रही थी ।
वह शहर से बाहर स्थानीय उजाङ और खुला शमशान था, सो अशरीरी रूहों के आसपास होने का अहसास उसे बारबार हो रहा था ।
पर मनोज इस सबसे बिलकुल बेपरवाह बैठा था ।
दरअसल नितिन ने प्रत्यक्ष अशरीरी भासित रूह को पहली बार ही देखा था, पर वह तन्त्र क्रियाओं से जुङा होने के कारण ऐसे अनुभवों का कुछ हद अभ्यस्त था । लेकिन वह युवक तो उपचार के लिये आया था, फ़िर वह कैसे ये सब महसूस नहीं कर रहा था ?
और उसके ख्याल में इसके दो ही कारण हो सकते थे । उसका भी प्रेतों के सामीप्य का अभ्यस्त होना, या फ़िर नशे में होना, या उसकी निडरता अजानता का कारण वह भी हो सकता था, या फ़िर वह अपने ख्याली गम में इस तरह डूबा था कि उसे माहौल की भयंकरता पता ही नहीं चल रही थी ।
बरबस ही नितिन की निगाह फ़िर एक बार काली छाया पर गयी ।
- मैं सोचता हूँ । फ़िर वह कुछ अजीब से स्वर में बोला - अब हमें घर चलना चाहिये ।
- अरे बैठो दोस्त ! मनोज फ़िर से गहरी सांस भरता हुआ बोला - कैसा घर, कहाँ का घर, सब मायाजाल है, चिङा चिङी के घोंसले । चिङा चिङी..अरे हाँ ..मुझे एक बात बताओ, तुमने औरत को कभी वैसे देखा है, बिना वस्त्रों में । एक खूबसूरत जवान औरत, पदमिनी नायिका, रूपसी, रूप की रानी जैसी एक नग्न औरत ।
- सुनो ! वह हङबङा कर बोला - तुम बहकने लगे हो, हमें अब चलना चाहिये ।
- ठ ठहरो भाई ! तुम गलत समझे । वह उदास हँसी हँसता हुआ बोला - शायद फ़िर तुमने ओशो को नहीं पढ़ा । मैं आंतरिक भावों से नग्नता की बात कर रहा हूँ, और इस तरह कोई नग्न नहीं कर पाता, शायद उसका पति भी नहीं । शायद उसका पति यानी मेरा सगा भाई ।
भाई !
भाई मुझे समझ में नहीं आता कि मैं कसूरवार हूँ या नहीं, याद रखो ।.. वह दार्शनिकता दिखाता हुआ बोला - किसी को नग्न करना आसान नहीं, और वस्त्ररहित नग्नता नग्नता नहीं है ।
- ठीक है मनोज । पदमा अंगङाई लेकर बङी बङी आँखों से सीधी उसकी आँखों में झांकती हुयी बोली - तुमने बिलकुल सही, और सच बोला । ये सच है कि किसी भी लङकी में जैसे ही यौवन पुष्प खिलना शुरू होते हैं, वह सबके आकर्षण का केन्द्र बन जाती है । एक सादा सी लङकी मोहक मोहिनी में रूपांतरित होने लगती है, तुमने कभी इस तरह सोचा ।.. मैं जानती हूँ, तुम मुझे पूरी तरह देखना चाहते हो, छूना चाहते हो, खेलना चाहते हो । क्योंकि ये सब सोचते समय तुम्हारे अन्दर, मैं तुम्हारी भाभी नहीं, सिर्फ़ एक खूबसूरत औरत होती हूँ । उस समय भाभी मर जाती है, सिर्फ़ औरत रह जाती है, बताओ मैंने सच कहा न ?
- गलत । वह कठिन स्वर में बोला - एकदम गलत, ऐसा तो मैंने कभी नहीं सोचा । सच बस इतना ही है कि जब भी इस घर में तुम्हें चलते फ़िरते देखता हूँ, तो मैं तुम्हें पहले पूरा ही देखता हूँ । लेकिन फ़िर न जाने क्यों निगाह इधर हो जाती है । यह देखना क्यों आकर्षित करता है, मैं समझ नहीं पाता ।
- क्या । वह बेहद हैरत से बोली - तुम्हें मुझे पूरी तरह देखने की इच्छा नहीं करते?


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।