रविवार, अप्रैल 01, 2012

कामवासना 25



एक अजीब सी बैचेन टेंशन महसूस करते हुये, उसने सिगरेट को मुँह से लगाकर कश लेना ही चाहा था कि अचानक वह चौंक गया ।
पदमा ऊपर आ रही थी, जीने पर उसके पैरों की आहट तो नहीं थी, लेकिन उसके पैरों में बजती पायल की मधुर छनछन वह आराम से सुन रहा था ।
उसका दिल अजीब से भय से तेजी से धकधक करने लगा, क्या माजरा था ?
और अगले कुछ ही पलों में उसके छक्के ही छूट गये ।
वह अकेली ही ऊपर आयी थी, और बङी शालीनता सलीके से उसके सामने दूसरी बैंच पर बैठ गयी ।
बङी अजीब और खास औरत थी, क्या खाम खां ही मरवायेगी उसे ।
रात के बारह बजे, यूँ उसके पास आने का, दूसरा कोई परिणाम हो ही नहीं सकता था ।
- वास्तव में जवानी ऐसी ही होती है । वह मादक अंगङाई लेकर बोली - रातों को नींद न आये, करवटें बदलो, आप ही आप उलट पुलट बिस्तर सिकोङ डालो ।..तुम्हारे साथ भी ऐसा होता होगा..न । अकेले में नग्न लेटना, नग्न घूमना, होता है न ।
वह जवानी के लक्षण बता रही थी, और उसे अपनी जिन्दगानी ही खतरे में महसूस हो रही थी ।
ये औरत वास्तव में खतरनाक थी ।
उसका पति देवर कोई आ जाये, फ़िर क्या होगा, कोई भी सोच सकता है ।
- लेकिन..। वह फ़िर से सामान्य स्वर में बोली - ऐसा सबके साथ हो, ऐसा भी नहीं । वो दोनों भाई, किसी थके घोङे के समान, घोङे बेचकर सो रहे हैं । प्रेमियों की निशा नशीली हो उठी है । रजनी खुल कर बाँहें फ़ैलाये खङी है । चाँदनी चाँद को निहार रही है । सब कुछ कैसा मदहोश करने वाला, नशीला नशीला है..है न ।
अब क्या समझता वह इसको, सौभाग्य या दुर्भाग्य ? शायद दोनों ।
प्रयोग परीक्षण के लिये जैसे समय, जिस माहौल, और जिस प्रयोग वस्तु की आवश्यकता थी । वह खुद उसके पास चलकर आयी थी, और उसका रुख भी पूर्ण सकारात्मक था ।
क्या था इस रहस्यमय औरत के मन में ? वह कैसे जान पाता ।
-..सेक्स । वह धीमे मगर झंकृत कम्पित स्वर में बोली सिर्फ़ सेक्स, हाँ नितिन..बस तुम गौर से देखो, तो इस सृष्टि में काम..ही नजर आयेगा । हर स्त्री पुरुष के मन, दिलोदिमाग में हर क्षण बस कामतरंगें ही दौङती रहती हैं ।
वो देखो, उसने दूर क्षितिज की ओर नाजुक उंगली से इशारा किया, ये जमीन आसमान से मिलने को सदैव आतुर रहती है, हमेशा अतृप्त । क्योंकि ये कभी उससे पूर्णतयाः मिल नहीं पाती । इसका पूर्ण सम्भोग कभी हो नहीं पाता । जबकि यहाँ से ऐसा लग रहा है कि ये दोनों हमेशा कामरत हैं । लेकिन इसकी निकटतम सच्चाई यही है कि इन दोनों में उतनी ही दूरी है, जितनी दूरी इनमें है । यहाँ से एक दूसरे में समाये आलिंगनबद्ध नजर आते हैं । पर ज्यों ज्यों पास जाओ, इनका फ़ासला पता लगता है । लेकिन वहाँ से आगे, फ़िर देखने पर यही लगता है, कि वह आगे पूर्ण सम्भोगरत है । किसी मृग मरीचिका जैसा, दिखता कुछ और, सच्चाई कुछ और, है न ।
अचानक उसने मैक्सी को इस तरह हिलाया, जैसे कोई कीङा उसके अन्दर घुस गया हो । फ़िर मैक्सी को एडजस्ट किया, और शालीनता से ऐसे बैठ गयी, जैसे बेहद संस्कारी और सुशील औरत हो, और वह बेवश था ।
मजबूर सा इसको देखने सुनने के सिवाय, वह शायद कुछ नहीं कर सकता था ।


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6 टिप्‍पणियां:

Rakesh kumar yadav ने कहा…

kya kamal ki kahani likhi hai rajeev ji apne par khatm maine ki padhkar.
supar kamvashana story. dhanyavad.

rahi ने कहा…

Ek naye tathya ke sath prastut Parlaukik jagat ki jankari ke sath ye apki kahani bahut kuchh rahasyon ko bataa gayi.Kuchh logon ko Manav Jeevan kosamajhane me sahayata milegi. Bahut-Bahut Dhanyvad.
Dr S K Keshari

बेनामी ने कहा…

क्या कमाल की कहानी लिखी है । इस कहानी के लेखक ने। कहानी ने कहाँ से कहाँ तक का सफर तय किया किसी सपने की तरह ।और अंत में पर्दा गिरते ही सब दृश्य ओझल ।

बेनामी ने कहा…

क्या कमाल की कहानी लिखी है । इस कहानी के लेखक ने। कहानी ने कहाँ से कहाँ तक का सफर तय किया किसी सपने की तरह ।और अंत में पर्दा गिरते ही सब दृश्य ओझल ।

बेनामी ने कहा…

बेहद रोमांचक ,रहसयम ,उत्तेजेक और कामरस से भरपूर कथा जोकि अंतिम समय तक पाठको को बांधे रखती है

बेनामी ने कहा…

बेहद रोमांचक ,रहसयम ,उत्तेजेक और कामरस से भरपूर कथा जोकि अंतिम समय तक पाठको को बांधे रखती है

मेरे बारे में

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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।