जिन्दगी क्या है, इसका रहस्य क्या है, इसका तरीका क्या है,
इसका सही गणित क्या है? ये कुछ ऐसे सवाल थे, जिनका आज भी प्रसून के पास कोई
जबाब नहीं था ।
क्या जिन्दगी एक किताब की तरह है । जिसके हर पन्ने पर
एक नयी कहानी लिखी है, एक नया अध्याय
लिखा है । वह अध्याय, वह कहानी, जो उस
दिन का पन्ना खुद ब खुद खुलने पर ही पढ़ी जा सकती थी । अगर
इंसान कुछ जान सकता है, तो वो बस अपनी जिन्दगी के पिछले
पन्ने ।
पिछले पन्ने ।
रत्ना की जिन्दगी के पिछले पन्ने, जो उसकी दिमाग की मेमोरी में दर्ज हो चुके थे ।
रत्ना की जिन्दगी के पिछले पन्ने, जो उसकी दिमाग की मेमोरी में दर्ज हो चुके थे ।
क्या हुआ था इस दुखी औरत, और उसके बच्चों के साथ?
उसने दूसरे के दिमाग को अपने दिमाग से चित्त द्वारा
देखना शुरू किया ।
वह निरुद्देश्य सा चलता जा रहा था, और उसके आगे आगे, सिनेमा के पर्दे की तरह, एक अदृश्य परदे पर, गुजरा हुआ समय जीवन्त हो रहा था ।
वह समय, जब जीवित रत्ना शालिमपुर में रहती थी ।वह निरुद्देश्य सा चलता जा रहा था, और उसके आगे आगे, सिनेमा के पर्दे की तरह, एक अदृश्य परदे पर, गुजरा हुआ समय जीवन्त हो रहा था ।
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