सोमवार, सितंबर 19, 2011

तांत्रिक का बदला 3


तभी उसे सीढ़ियों पर किसी के आने की आहट हुयी ।
कुछ ही क्षणों में चाऊँ बाबा किसी अनजाने आदमी के साथ ऊपर आया ।
उसके हाथ में चाय से भरे दो गिलास थे । वे दोनों वहीं पङी बेंच पर बैठ गये ।
चाऊँ ने उसका हाथ थाम कर बुखार देखा, और आश्चर्य से चीखते चीखते बचा ।
प्रसून का बदन किसी तपती भट्टी के समान दहक रहा था ।
उसने प्रसून के चेहरे की तरफ़ गौर से देखा, पर वह एकदम शान्त था ।
बस पिछले कुछ दिनों से उदासी स्थायी रूप से उसके चेहरे पर छाई हुयी थी ।
- आप कुछ औषधि क्यों नहीं लेते? चाऊँ बेहद सहानुभूति से बोला ।
प्रसून ने कोई उत्तर नहीं दिया ।
उसका चेहरा एकदम भावशून्य था ।
वह यमुना पार के शमशान में जलती हुयी चिता को देखने लगा ।
चाऊँ ने साथ आये आदमी का उससे परिचय कराया, और रात के खाने के लिये उससे पूछा । जिसके लिये उसने साफ़ मना कर दिया ।
तब चाऊँ नीचे चला गया ।
प्रसून धीरे धीरे चाय सिप करने लगा ।
बाबा लोगों की इस खास तीखी चाय ने उसे राहत सी दी ।
दूसरे आदमी का नाम महावीर था ।
और वह इस जलती चिता के पार बसे शालिमपुर गाँव का ही रहने वाला था ।
चाऊँ से यह जानकर कि प्रसून एक पहुँचा हुआ योगी है । उच्चस्तर का तान्त्रिक मान्त्रिक है । उसे प्रसून से मिलने की जबरदस्त इच्छा हुयी, और वह ऊपर चला आया ।
पर प्रसून को देखकर उसे बङी हैरत हुयी ।
वह किसी बङी दाढ़ी, लम्बे केश, और महात्मा जैसी साधुई वेशभूषा की कल्पना करता हुआ ऊपर आया था, और चाऊँ के मुँह से उसकी बढ़ाई सुनकर श्रद्धा से उसके पैरों में लौट जाने की इच्छा रखता था ।
पर सामने जींस और ढीली ढाली शर्ट पहने इस फ़िल्मी हीरो को देखकर उसकी सारी श्रद्धा कपूर के धुँये की भांति उङ गयी, और जैसे तैसे वह मुश्किल से नमस्कार ही कर सका ।
महावीर धीरे धीरे चाय के घूँट भरता हुआ प्रसून को देख रहा था ।
और प्रसून रह रहकर उस जलती चिता को देख रहा था ।
क्या गति हुयी होगी इस मरने वाले की । जीवन की परीक्षा में यह पास हुआ होगा, या फ़ेल । यमदूतों से पिट रहा होगा, या बाइज्जत गया होगा, या सीधा ही चौरासी लाख योनियों में फ़ेंक दिया गया होगा ।
- वह सुरेश था । अचानक महावीर की आवाज सुनकर उसकी तन्द्रा भंग हुयी ।
महावीर ने उसकी निगाह का लक्ष्य समझ लिया था ।
अतः उसके पीछे पीछे उसने भी जलती चिता को देखा, और बोला - मेरा खास परिचय वाला था । पर किसी विशेष कारणवश मैं.. । उसने चिता की तरफ़ उँगली की - इस अंतिम संस्कार में नहीं गया । कल तक अच्छा खासा था, जवान था, पठ्ठा था । चलता था, तो धरती हिलाता था । और बङा अच्छा इंसान था, आज खत्म हो गया । कहते हैं ना, मौत और ग्राहक के आने का कोई समय नहीं होता । अपने पीछे दो बच्चों और जवान बीबी को छोङ गया है ।
- कैसे मरे? प्रसून भावहीन स्वर में निगाह हटाये बिना ही बोला ।
- अब कहें, तो बङा ताज्जुब सा ही है । बस दोपहर को बैठे बैठे अचानक सीने में दर्द उठा । घबराहट सी महसूस हुयी । एक छोटी सी उल्टी भी हुयी, जिसमें थोङा सा खून भी आया । लोग तेजी से डाक्टर के पास शहर ले जाने को हुये । मगर तब तक पंछी पिजरा खाली करके उङ गया । पता तो तभी लग गया था, अब इसमें कुछ नहीं रहा । मगर फ़िर भी गाङी में डालकर डाक्टर के पास ले गये । डाक्टर ने छूते ही बता दिया, मर गया है, ले जाओ ।
वापस घर ले आये, घर से वहाँ ले आये.. । कहते कहते महावीर ने चिता की तरफ़ उँगली उठाई - वहाँ, जहाँ से अब कहीं नहीं ले जाना । देखिये ना कितने आश्चर्य की बात है । आज सुबह तक ऐसा कुछ भी किसी को नहीं मालूम था । सुबह मैं इसको चलते हुये देख रहा था, और अब जलते हुये देख रहा हूँ । इसी को कहते हैं ना, खबर नहीं पल की, तू बात करे कल की ।


अमेजोन किंडले पर उपलब्ध

available on kindle amazon


कोई टिप्पणी नहीं:

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।