सोमवार, सितंबर 19, 2011

तांत्रिक का बदला 10



- कितना समय हो गया? फ़िर वह भावहीन स्वर में बोला ।
- पाँच महीने..से कुछ ज्यादा ।
- और तुम्हारे पति? वो फ़िर से चिता को देखता हुआ बोला - वो कहाँ हैं?
अबकी वह फ़फ़क फफक कर आँसू रहित रोने लगी ।
प्रसून ने उसे रोने दिया ।
उसका खाली हो जाना जरूरी था, वह बहुत देर तक रोती रही ।
बच्चे उसे रोता हुआ देखकर उसके ही पास आ गये थे, और प्रसून को ही सहमे सहमे से देख रहे थे । प्रसून की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे ।
कुछ देर बाद वह चुप हो गयी ।
प्रसून को इसी का इंतजार था ।  
उसने रत्ना से ‘सुनो बहन’ कहा ।
रत्ना ने उसकी तरफ़ देखा ।
प्रसून ने अपनी झील सी गहरी शान्त आँखें उसकी आँखों में डाल दी ।
यकायक रत्ना शून्य होती चली गयी ।
शून्य, सिर्फ़ शून्य, शून्य ही शून्य ।
अब उसकी जिन्दगी का पूरा ब्यौरा प्रसून के दिमाग में कापी हो चुका था ।
वह दुखी जीवात्मा, जैसे कुछ भी बता पाने में असमर्थ थी, और प्रसून को उस तरह उससे जानने की जिज्ञासा भी नहीं थी ।  
फ़िर कुछ ही देर में वह सामान्य हो गयी ।
उसे एकाएक ऐसा लगा था, जैसे मानों वह गहरी नींद में सो गयी थी ।
शायद इस नयी और अदभुत प्रेतक जिन्दगी में, और शायद इस जिन्दगी से पहले भी, उसे ऐसी भरपूर नींद कभी नहीं आयी थी, और अब वह अपने आपको एकदम तरोताजा महसूस कर रही थी ।
- कहाँ रहती हो आप । वह स्नेह से बोला - और खाना?
अब वह लगभग सामान्य थी ।
प्रसून के ‘कहाँ रहती हो’ कहते ही उसकी निगाह खोहनुमा एक ढाय पर गयी ।
और ‘खाना’ कहते ही उसने स्वतः ही चिता की तरफ़ देखा ।
प्रसून उसके दोनों ही मतलब समझ गया, और यहाँ रहने का कारण भी समझ गया ।
- लेकिन । वह फ़िर से बोला - बच्चे, बच्चे क्या खाते हैं?
यकायक उसके चेहरे पर जैसे अथाह दुख सा लहराया ।
स्वतः ही उसकी निगाह त्याज्य मानव मल पर गयी ।
प्रसून बेबसी से उँगलिया चटकाने लगा ।
उसके चेहरे पर गहरी पीङा सी जाग्रत हुयी ।
सीधा सा मतलब था कि उन्होंने बहुत दिनों से अच्छा कुछ भी नहीं खाया था ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।