रविवार, अक्तूबर 16, 2011

जस्सी दी ग्रेट 16


उसने बैचेनी से पहलू बदलाऔर बोली - एक्सक्यूज मी, प्रसून जी ! मैं आपको डिस्टर्ब तो नहीं कर रही, ऐसा हो तो मैं फ़िर चली जाऊँ । एक्चुअली मुझे जस्सी के बारे में बङी फ़िक्र है । उसकी कुछ जिज्ञासा सी थी..प्लीज डोंट माइण्ड ।
वह मानों सोते से जागा, और तुरन्त उसकी तरफ़ आकर्षित हुआ । वास्तव में यह उसकी असभ्यता ही थी कि एक महिला उसके पास बैठी थी, और वह उसे उपेक्षित कर रहा था ।
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नो नो । वह अफ़सोस सा करता हुआ बोला - इनफ़ेक्ट गलती मेरी ही थी । असल में जो मैं देख रहा था, वह बीच में था । इसलिये मैं आपको कंपनी नहीं दे पा रहा था । पर चलो, अब वह कम्पलीट हो गया..हाँ आप बोलिये ना ।
करमकौर की बाँछे खिल गयी । इसी पल का तो उसे इन्तजार था, और समय उसके पास बिलकुल नहीं था । कभी भी राजवीर आ सकती थी, जस्सी गगन आ सकती थी, और कोई और भी आ सकता था । समय कभी रुकता नहीं, किसी का इन्तजार नहीं करता । और तब समय का लाभ न उठाने वाले बेवकूफ़ ही होते हैं, और वह बेवकूफ़ नहीं होना चाहती थी, कभी नहीं ।
उसने अन्दर ही अन्दर चुपके से अपने गोद के बच्चे को चुटकी भरी । जिससे पीङित हुआ सा वह रोने लगा । तब वह उसे चुप कराने लगी, और फ़िर उसने वही किया, जिसके लिये उसने यह किया ।
प्रसून को अनदेखा सा करते हुये उसने अपना विशाल स्तन खोला, और बच्चे को हिलाते डुलाते हुये वह अपने नग्न स्तन की झलक देर तक उसे दिखाती रही, और फ़िर बच्चे को स्तनपान कराने लगी ।
संभवत हर स्त्री को ऐसा ही लगता है कि उसकी कामुक भाव-भंगिमा उस पुरुष के सामने पहली ही बार घटित हो रही है, जिसकी वह अभिसारी नायिका बनने हेतु बेताब है, और वह अपनी ऐसी कामअदा से उसे घायल करके ही छोङेगी । तब पुरुष को उसका प्रणय प्रस्ताव मजबूरन स्वीकार करना ही होगा । उसकी ऐसी चेष्टा ने प्रसून को उन तमाम योग स्त्रियों की याद दिला दी, जो पहले कभी उसके अनुभव में आयी थीं
वह अच्छी तरह जानता था । यदि उसने देखा नहीं, उसे अनदेखा करता रहा, तो वह बराबर प्रयास करती रहेगी, और व्यर्थ का समय खराब करेगी । औरत की नस नस से वाकिफ़ उस सबल योगी ने आश्चर्य और प्रशंसा के मिश्रित भावों से तब तक उसके स्तन से निगाह नहीं हटाई, जब तक उसने प्रसून को निगाह मिलाकर ऐसा करते देख नहीं लिया ।
तब उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव आये, और नारीत्व सौन्दर्य का गरिमा बोध भी ।
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काफ़ी सुन्दर हैं आप । वह मधुर स्वर में उसे और भी संतुष्ट करता हुआ बोला - ईश्वर ने आपको फ़ुरसत से बनाया है, और सब कुछ भरपूर रूप से दिया है ।
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थैंक्स । वह शर्माकर बोली - पर हीरे की परख सिर्फ़ जौहरी ही जानता है । वही उसकी सही कीमत भी समझता है । आई थिंक, औरत को हरेक कोई नहीं समझ सकता । वह काँच के समान नाजुक होती है..यू नो ।
वास्तव में करमकौर का अपने आप से नियन्त्रण हट गया था । उसे अपने भीतर अजीब सा भीगापन महसूस हो रहा था, फ़िर वह पिघलती हुयी सी बहने लगी ।
क्या पुरुष था..अनोखा और कल्पना से परे । अभी उसने छुआ भी न था, और वह पहाङी दरार से फ़ूटते झरने की तरह बह उठी थी । ओह गाड, कोई योगपुरुष ऐसा भी हो सकता है । यदि कोई उसे मुँहजवानी बताता, तो उसे कभी विश्वास ही नहीं होता, पर स्वयँ के अनुभव को भला वह कैसे नकार सकती थी । अब उसे यह बहाना भी नहीं सूझ रहा था कि वह प्रसून से क्या और कैसे बात करे ।
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मैंने वो । तब अनुभवी योगी स्वयँ ही उसकी मनोदशा जानकर बोला - वो ..राजवीर जी द्वारा शूट किये जस्सी के वीडियो क्लिप देखे । बट मुझे ताज्जुब इस बात का है कि अकार्डिंग टू राजबीर जी सेम ऐसा ही अनुभव आपको भी हुआ, ये बङी ही अजीब बात है । और वह, यानी जस्सी इसको आधा अधूरा ही बता पाती है । जबकि आप पूरा और ज्यों का त्यों बताती हैं । वैसे वह सब मैं सुन चुका हूँ । पर प्लीज आप कुछ और न समझें, तो मुझे फ़िर से एक बार बतायें ।
करमकौर के मानों सब अरमानों पर पानी फ़िर गया । वह अभी सिर्फ़ और सिर्फ़ वही सब चाहती थी, जो गगन बता रही थी । पर एकदम ऐसा वह कह भी कैसे सकती थी । तब उसने भी गगन की तरह नमक मिर्च लगाकर उस मैटर का पूरा पूरा फ़ायदा उठाने का निश्चय किया ।
उसने एक निगाह आसपास डाली । अभी कोई नहीं था । वासना वैसे भी मनुष्य को अंधा ही कर देती है तब यदि कोई होता भी है, तो भी नजर नहीं आता । उसे ख्याल आया कि उस चक्रवात में वह एकदम नंगी भाग रही थी, और मूसलाधार पानी बरस रहा था । यहाँ वह स्वयँ खुल जाना चाहती थी । उसके प्यार की बारिश में नहाना चाहती थी, और खुद को वैसा ही आजाद महसूस करना चाहती थी । एक पूर्ण पुरुष को पाने के लिये औरत का भावनात्मक और देहात्मक पूर्ण नग्न होना आवश्यक ही है, तभी वह रीझता है ।
उसने अपने बच्चे को घुमाया और दूसरा स्तन भी खोल लिया । अब उसके दोनों उरोज उसके सामने थे, और वह ऐसा प्रदर्शित कर रही थी कि जैसे इस तरफ़ उसका ध्यान ही नहीं है । जबकि उसे नहीं पता था कि गगन और जस्सी भी उसे उसी तरह छिपकर देख रहीं है । जैसे वह उनको सुन रही थी ।
पर प्रसून एकदम शान्त था, और उसके बोलने की प्रतीक्षा कर रहा था ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।