रविवार, अक्तूबर 16, 2011

जस्सी दी ग्रेट 10




आखिर इस जिन्दगी का ही क्या निष्कर्ष है?
शायद कोई नहीं जानता । एक विशाल तूफ़ानी सैलाब की तरह जिन्दगी सबको बहाये ले जा रही है । कल जो अच्छा बुरा हुआ था, उस पर हमारा कोई वश नहीं था । आगे भी जो होगा, उस पर भी कोई वश नहीं होगा । बच्चों की टाय ट्रेन की सीट पर बैठे किसी नादान बच्चे के समान ही इंसान जिन्दगी की इस रेल में गोल गोल घूम रहा है ।
रोज दिन होता है, रोज फ़िर वही रात होती है, रोज वही निश्चित दिनचर्या । कोई मरता है, कोई जीता है, कोई सुखी है, कोई दुखी है । कोई अरमानों की सेज पर मिलन के फ़ूल चुन रहा है, तो
कोई विरहा के कांटों से घायल दिन गिन रहा है । पर जिन्दगी मौत को इस सबसे कोई मतलब नहीं, उसका काम निरन्तर जारी ही रहता है ।
जस्सी की समस्या का भी कोई हल अभी समझ में नहीं आया था । बल्कि अभी समस्या ही समझ में नहीं आयी थी, और कभी कभी तो ये भी लगता था कि उसे दरअसल कोई समस्या ही नहीं थी ।
उसकी सभी मेडिकल रिपोर्ट नार्मल आयी थी, और उनमें वीकनेस जैसा कुछ शो करने वाला भी कोई प्वाइंट नहीं था । तब डाक्टरों ने वैसे ही उसे एनर्जी टानिक टायप कुछ सजेस्ट कर दिया था ।
और वह पहले की तरह आराम से कालेज जाती थी ।
हाँ, बस इतना अवश्य हुआ था कि राजवीर ने अब मनदीप से छुपाना उचित नहीं समझा था, और न सिर्फ़ उसे सब कुछ बता दिया था बल्कि मौके पर दिखा भी दिया था । तब बराङ पहली बार चिंतित सा नजर आया, और गम्भीरता से इस पर सोचने लगा । पर वह बेचारा क्या सोचता, ये तो उसके पल्ले से बाहर की बात थी ।
वह सिर्फ़ महंगे से महंगा इलाज करा सकता था । किसी की ठीकठाक राय पर अमल कर सकता था, या फ़िर शायद वह कुछ भी नहीं कर सकता था, और कुदरत का तमाशा देखने को विवश था, और तमाशा शुरू हो चुका था ।
सुबह के नौ बज चुके थे ।
जस्सी स्कूटर से कालेज जा रही थी । हमेशा की तरह उसके पीछे चिकनवाली उर्फ़ गगन कौर बैठी हुयी थी और आदतन रह रहकर जस्सी के नितम्बों पर हाथ फ़िराती थी । जस्सी को उसकी ऐसी हरकतों की न सिर्फ़ आदत सी पङ चुकी थी, बल्कि ये सब अब उसे अच्छा भी लगता था ।
गगन इस मामले में बहुत बोल्ड थी । जब क्लासरूम में टीचर ब्लैकबोर्ड पर स्टूडेंट की तरफ़ पीठ किये कुछ समझा रहा होता था । वह जस्सी को ऊपर नीचे सहलाती रहती थी ।
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जस्सी । ख्यालों में डूबी गगन बोली - काश यार क्लासरूम की सीट पर कोई ब्वाय हमारे बीच में बैठा होता तो मैं उसको सताती ही रहती और वह बेचारा चूँ नहीं कर पाता ।
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क्यों ! जस्सी भी मजा लेती हुयी बोली - क्यों चूँ नहीं कर पाता । क्या वो टीचर को नहीं बोल सकता था कि तू उसका झन्डा उखाङने पर ही तुली हुयी है ।
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अरे नहीं यार । वह बुरा सा मुँह बनाकर बोली - ये लङके बङे शर्मीले होते हैं । वो बेचारा कैसे बोलता कि मैं उसके साथ क्या कर रही हूँ । देख तू कल्पना कर, तू किसी भीङभाङ वाले शाप काउंटर पर झुकी हुयी खङी है फ़िर पीछे से तुझे कोई सेक्सुअल टच करे, बोल तेरा क्या रियेक्ट होगा ।
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मैं चिल्लाऊँगी, शोर मचाऊँगी, उसको सैंडिल से मारूँगी ।
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ओह शिट यार, ये सब फ़ालतू के ख्यालात है, कोई भी ऐसा नहीं कर पाता । देख मैं बताती हूँ क्या होगा । तू यकायक चौंकेगी, सोचेगी, ये क्या हुआ, और फ़िर तेरा माउथ आटोमैटिक लाक्ड हो जायेगा । तू सरप्राइज्ड फ़ील करेगी, एक्साइटिड फ़ील करेगी ।
अब एक परसेंट को मान ले, तू चिल्लायेगी, उसको सैंडिल से मारेगी मगर जमा पब्लिक को क्या बोलेगी कि उसने तुझे सेक्सुअली टच किया । कहाँ किया, कैसे किया, बता सकेगी ।
जस्सी भौंचक्का रह गयी ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।