- मैं मर.. जाऊँगी । वह अस्फ़ुट स्वर
में बोली - प्लीज..बचा लो मुझे ।
क्या चाहती है, एक लङकी ऐसे क्षणों में । क्या चाहती है, सदियों से भटकती, प्यासी औरत ऐसे क्षणों में, वह अच्छी तरह से जानता था । और तब उसके यन्त्र शरीर से कोमल भावनाओं वाला प्रेमी उतर गया । और एक पूर्ण खिलाङी पुरुष आवरित हुआ ।
क्या चाहती है, एक लङकी ऐसे क्षणों में । क्या चाहती है, सदियों से भटकती, प्यासी औरत ऐसे क्षणों में, वह अच्छी तरह से जानता था । और तब उसके यन्त्र शरीर से कोमल भावनाओं वाला प्रेमी उतर गया । और एक पूर्ण खिलाङी पुरुष आवरित हुआ ।
उसने जस्सी को किसी खिलौने की भांति उठाकर सीट पर झुकाया और
उसकी जींस नीचे कर दी । एक कठोरता, एक निर्दयता, एक वहशीपना, उसके स्वभाव में भर गया । उसने जस्सी की वियर इस अन्दाज में
उतार फ़ेंकी, मानों कोई बच्चा डौल पर
गुस्सा कर रहा हो । और तब आसमानी झूले की भांति हवा में ऊपर नीचे होती जस्सी ने
उसका कठोर स्पर्श महसूस किया, और वह आनन्द से भर उठी ।
वह किसी क्रोधित हुये बालक के समान उसे खिलौना गुङिया की तरह
तोङ रहा था । बारबार तोङ रहा था, और फ़िर फ़िर जोङ रहा था । एक तेज तपन सा अहसास उसके नारीत्व
को तपा रहा था । और उस तपन से सहमी सी वह बार बार बरखा सी बरस रही थी, सब मर्यादायें तोङ रही थी । पर वह किसी क्रोधित नाग की तरह
फ़ुफ़कारते हुये दंश पर दंश दिये जा रहा था, और कोई रहम करने को तैयार नहीं था ।
एक बार, दो बार, तीन बार ।
तब वह वास्तविक रो पङी, हाथ जोङ गयी । अब नहीं, रहम करो । मैं तुम्हारी दासी हूँ..प्लीज नार्मल हो जाईये ।
लेकिन वास्तव में वह पूर्णतया शान्त, सामान्य, निर्लेप, निर्लिप्त और योगस्थ ही था । जिसे वह मानवी भला कैसे समझ सकती थी । योगपुरुष का अंगीकार, एक साधारण लङकी कैसे कर सकती थी । उसकी क्षमता बहुत सीमित थी । ये अप्सराओं योग स्त्रियों का मामला था । वे ही इसको आत्मसात कर सकती थी ।
तब वह वास्तविक रो पङी, हाथ जोङ गयी । अब नहीं, रहम करो । मैं तुम्हारी दासी हूँ..प्लीज नार्मल हो जाईये ।
लेकिन वास्तव में वह पूर्णतया शान्त, सामान्य, निर्लेप, निर्लिप्त और योगस्थ ही था । जिसे वह मानवी भला कैसे समझ सकती थी । योगपुरुष का अंगीकार, एक साधारण लङकी कैसे कर सकती थी । उसकी क्षमता बहुत सीमित थी । ये अप्सराओं योग स्त्रियों का मामला था । वे ही इसको आत्मसात कर सकती थी ।
वह जान बूझकर अपनी मर्दानगी उस कोमल बाला पर नहीं दिखा रहा था
। बल्कि ये उसके योग शरीर की सहज सामान्य क्रिया थी । जिसे वह दो मिनट के साबुन के
झाग से बने बुलबुले के समान वासना क्षमता रखने वाली मानुषदेही जस्सी भला कैसे सहन
कर पाती ।
तब उसने प्रयत्न करके खुद को सामान्य किया, और जस्सी को प्यार में डूबने की अनुभूति सी होने लगी । उसका
अंग अंग तृप्ति से भर उठा और वह भयभीत बालक के समान उससे चिपक गयी ।
उसने इस अलौकिक प्रेमी को पूरी भावना से एकाकार होकर जकङ लिया, भींच लिया । मानों किसी कीमत पर, और कभी भी जुदा नहीं होना चाहती थी ।
यह जस्सी के लिये एक यादगार मिलन था । पर प्रसून के लिये एक सामान्य शरीरी आचरण ।
यह जस्सी के लिये एक यादगार मिलन था । पर प्रसून के लिये एक सामान्य शरीरी आचरण ।
यह मिलन जस्सी के दिलोदिमाग पर अमिट होकर लिख गया था । पर उसके
लिये ये एक सिगरेट पीने जैसा भर था ।
उसने एक सिगरेट सुलगाई ।
उसने एक सिगरेट सुलगाई ।
उसका ये प्रयास एकदम बेकार रहा था । कोई एक घण्टे तक निढाल
जस्सी उसकी गोद में पङी रही । पर कहीं कोई बाधा नहीं हुयी, कोई क्रिया नहीं हुयी । उसके तुक्के का तीर कहीं अंधेरे में
व्यर्थ जा गिरा था ।
अंधेरा और गहरा उठा था ।
अंधेरा और गहरा उठा था ।
उसने रिस्टवाच में समय देखा, और गाङी स्टार्ट कर घर की तरफ़ मोङ दी ।
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