रविवार, अक्तूबर 16, 2011

जस्सी दी ग्रेट 20




- मैं मर.. जाऊँगी । वह अस्फ़ुट स्वर में बोली - प्लीज..बचा लो मुझे ।
क्या चाहती है, एक लङकी ऐसे क्षणों में । क्या चाहती है, सदियों से भटकती, प्यासी औरत ऐसे क्षणों में, वह अच्छी तरह से जानता था । और तब उसके यन्त्र शरीर से कोमल भावनाओं वाला प्रेमी उतर गया । और एक पूर्ण खिलाङी पुरुष आवरित हुआ ।
उसने जस्सी को किसी खिलौने की भांति उठाकर सीट पर झुकाया और उसकी जींस नीचे कर दी । एक कठोरता, एक निर्दयता, एक वहशीपना, उसके स्वभाव में भर गया । उसने जस्सी की वियर इस अन्दाज में उतार फ़ेंकी, मानों कोई बच्चा डौल पर गुस्सा कर रहा हो । और तब आसमानी झूले की भांति हवा में ऊपर नीचे होती जस्सी ने उसका कठोर स्पर्श महसूस किया, और वह आनन्द से भर उठी ।
वह किसी क्रोधित हुये बालक के समान उसे खिलौना गुङिया की तरह तोङ रहा था । बारबार तोङ रहा था, और फ़िर फ़िर जोङ रहा था । एक तेज तपन सा अहसास उसके नारीत्व को तपा रहा था । और उस तपन से सहमी सी वह बार बार बरखा सी बरस रही थी, सब मर्यादायें तोङ रही थी । पर वह किसी क्रोधित नाग की तरह फ़ुफ़कारते हुये दंश पर दंश दिये जा रहा था, और कोई रहम करने को तैयार नहीं था ।
एक बार, दो बार, तीन बार ।
तब वह वास्तविक रो पङी, हाथ जोङ गयी । अब नहीं, रहम करो । मैं तुम्हारी दासी हूँ..प्लीज नार्मल हो जाईये ।
लेकिन वास्तव में वह पूर्णतया शान्त, सामान्य, निर्लेप, निर्लिप्त और योगस्थ ही था । जिसे वह मानवी भला कैसे समझ सकती थी । योगपुरुष का अंगीकार, एक साधारण लङकी कैसे कर सकती थी । उसकी क्षमता बहुत सीमित थी । ये अप्सराओं योग स्त्रियों का मामला था । वे ही इसको आत्मसात कर सकती थी ।
वह जान बूझकर अपनी मर्दानगी उस कोमल बाला पर नहीं दिखा रहा था । बल्कि ये उसके योग शरीर की सहज सामान्य क्रिया थी । जिसे वह दो मिनट के साबुन के झाग से बने बुलबुले के समान वासना क्षमता रखने वाली मानुषदेही जस्सी भला कैसे सहन कर पाती ।
तब उसने प्रयत्न करके खुद को सामान्य किया, और जस्सी को प्यार में डूबने की अनुभूति सी होने लगी । उसका अंग अंग तृप्ति से भर उठा और वह भयभीत बालक के समान उससे चिपक गयी ।
उसने इस अलौकिक प्रेमी को पूरी भावना से एकाकार होकर जकङ लिया, भींच लिया । मानों किसी कीमत पर, और कभी भी जुदा नहीं होना चाहती थी ।
यह जस्सी के लिये एक यादगार मिलन था । पर प्रसून के लिये एक सामान्य शरीरी आचरण ।
यह मिलन जस्सी के दिलोदिमाग पर अमिट होकर लिख गया था । पर उसके लिये ये एक सिगरेट पीने जैसा भर था ।
उसने एक सिगरेट सुलगाई ।
उसका ये प्रयास एकदम बेकार रहा था । कोई एक घण्टे तक निढाल जस्सी उसकी गोद में पङी रही । पर कहीं कोई बाधा नहीं हुयी, कोई क्रिया नहीं हुयी । उसके तुक्के का तीर कहीं अंधेरे में व्यर्थ जा गिरा था ।
अंधेरा और गहरा उठा था ।
उसने रिस्टवाच में समय देखा, और गाङी स्टार्ट कर घर की तरफ़ मोङ दी ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।