रविवार, अक्तूबर 16, 2011

जस्सी दी ग्रेट 9




- ओये बेबे ! सच को तो मैं साफ़ साफ़ देख रहा हूँ । बाबा परमीत सिंह उनके बदन का दृष्टिक रसपान करता हुआ बोला - तेरे घर में बङी तगङी बलाय घुसी हुयी है । चार बङे बङे जिन्नात तो मेरे कू साफ़ साफ़ दिख रहे हैं । बस हत्थ आने की देर है, फ़िर देखना इस बाबे दा हुनर ।
परमीत सिंह चौहान एक हरामी बाबा था और साधुओं के नाम पर कलंक था, दाग था । वास्तव में वह अपनी हरामगीरी के चलते ही साधु बना था तथा उसने बाबाओं की संगति में दो चार जन्तर मन्तर सीख लिये थे । जिन्हें पढ़कर वो किसी के लिये ताबीज बना देता था, या किसी को गण्डा बँधवा देता था ।
साधुओं की संगति में ही वह वास्तविकता रहित नकली पूजा पाठ करना सीख गया था, और तांत्रिक गद्दी लगाने के थोथे आडम्बर सीख गया था । जिनसे न तो किसी को कुछ फ़ायदा होना था, और न ही कोई नुकसान ।
यह कुछ कुछ मनोवैज्ञानिक रूप से भ्रमित उन लोगों के लिये डिस्टल वाटर के डाक्टरी इंजेक्शन जैसा था, जिसे डाक्टर कोई भी बीमारी न होने पर सिर्फ़ इसलिये लगाते थे कि उस मरीज को सीरियसली लगता है कि वो बीमार है, और पानी के इसी रंगीन इंजेक्शन के वह खासे पैसे वसूल करते थे, और मरीज भी इसी मनोवैज्ञानिक प्रभाव से ठीक होने लगते थे ।
यही हाल बाबा परमीत सिंह का था । उसका सिर्फ़ दिखावे का भेस था, जो अक्सर ही ज्यादातर पंजाब के नकली बाबाओं की खासियत थी । वो कोई प्रेतबाधा ठीक करना नहीं जानता था, और न ही उसे इन बातों की कोई समझ थी । पर इस बाबागीरी में उसे हर तरफ़ मौज मलाई मिली थी, सो चैन की छानता हुआ वह इसी में रम गया था । अक्सर कोई न कोई अक्ल का अंधा उससे टकरा ही जाता था, और फ़िर उसकी बल्ले बल्ले ही हो जाती थी ।
विधवा हो जाने के बाद कुछ दिनों तक इधर उधर टाइम पास करती करमकौर को किसी औरत के माध्यम से परमीत सिंह का पता चला था, और तब वह उससे मिली थी । अपनी विधवा स्थितियों में वह काफ़ी मानसिक टेंसन में आ गयी थी, और शान्ति के लिये, अपने आगे के अच्छे दिनों की जानकारी के लिये, वह बाबाओं के पास घूमती फ़िरी थी, और तब से वह परमीत सिंह से परिचित थी ।
परमीत सिंह ने उसकी झाङ फ़ूँक शान्ति के नाम पर पूरा ऊपर से नीचे तक टटोल लिया था । यहाँ तक कि वह बहकने लगी थी, और खुद उसका दिल होने लगा था कि बाबा को स्वयँ बोल दे, मन्तर बाद में चलाना, पहले उसकी बचैनी दूर कर दे, और अभी कल से सतीश से जिस्मानी परिचय होने के बाद से तो उसकी भावनायें ही कुछ अलग सी हो गयी थीं । जिन्दगी का जितना मजा लूट सकते हो लूटो, क्योंकि कल का कोई भरोसा नहीं है, और स्वर्ग नरक किसने देखा है ।
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क्या? वे दोनों सचमुच उछलकर बोली - क्या बाबाजी, चार चार जिन्नात, हाय रब्ब, ये क्या मुसीबत है । बाबाजी आप कुछ करो ना, हमें इस मुसीबत से निकालने के लिये ।
परमीत सिंह की बिल्लौरी आँखों में एक भूखी चमक सी उभरी ।

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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।