गुरुवार, जुलाई 22, 2010

प्रेतनी का मायाजाल 3




दस मिनट बाद ही वह पहाङी से नीचे एक वृक्ष के पास आकर खङा हो गया । पर उसने उसके पास आने या उसे पुकारने की कोई कोशिश नहीं की । उल्टे उसने उसका फ़ार्मूला उसी पर आजमाते हुये सिगरेट बीङी में से कुछ मुँह से लगाकर तीन बार माचिस को जलाया ।
अब वह उससे लगभग दो सौ कदम दूर पहाङी के नीचे कुछ हटकर मौजूद था । परन्तु वे दोनों ही इस कशमकश में थे कि एक दूसरे के बारे में कैसे जाना जाय?
तब उसने मानो निरुद्देश्य ही टार्च की रोशनी अपने ऊपर पेङ पर फ़ेंकी, और स्वाभाविक ही प्रसून के मुख से तेज आवाज में निकला - ऐ वहाँ पर कौन है? 
- मैं हूँ भाई । वह तेज आवाज में बोला - मेरा नाम दयाराम है ।
अगले कुछ ही मिनटों में वह उसके पास पत्थर की शिला पर बैठा था, और उसे उस निर्जन और वीराने स्थान में अकेला देखकर बेहद हैरान था । उसकी ये हैरानी और तीव्र जिज्ञासा का हो जाना प्रसून का अत्यधिक नुकसान कर सकती थी । इसलिये प्रसून ने उसे बताया कि वह बायोलोजी का छात्र है, और उसका कार्य कुछ अलग किस्म के जीव जन्तुओं पर शोध करना है, जो प्रायः इस क्षेत्र में अधिक मिलते हैं ।
उसने जानबूझ कर आधी अंग्रेजी और बेहद कठिन शब्दों का प्रयोग किया था ताकि उसकी बात भले ही उसकी समझ में न आये, पर वह उसके यहाँ होने के बारे में अधिक संदेह न करे, और कुछ समझता कुछ न समझता हुआ संतुष्ट जाय ।
वही हुआ ।
लेकिन इसमें प्रसून की चपल बातों से ज्यादा इस वक्त उसकी मानसिक स्थिति सहयोग कर रही थी । जिसके लिये वह इस लगभग भुतहा और डरावने स्थान पर रात के इस समय मौजूद था ।
कुछ देर में संयत हो जाने के बाद उसने उसका नाम पूछा ।
प्रसून ने सहज भाव से बताया ।
- प्रसून जी । वह आसमान की तरफ़ देखता हुआ बोला - आपकी शादी हो चुकी है?
- नहीं । प्रसून ने जंगली क्षेत्र की तरफ़ लगे घने पेङों की तरफ़ देखते हुये कहा - दरअसल कोई लङकी मुझे पसन्द ही नहीं करती । आपकी निगाह में कोई सीधी साधी लङकी हो तो बताना ।
- फ़िर तो तुम खुशकिस्मत ही हो, दोस्त । उसने एक गहरी सांस ली और बोला - इस सृष्टि में औरत से ज्यादा खतरनाक कोई चीज नहीं है? 
कहकर कुछ देर तक वह जैसे किसी गहरी सोच में डूबा रहा, फ़िर उसने चरस से भरी हुयी सिगरेट निकाल कर सुलगायी, और एक दूसरी सिगरेट प्रसून की ओर बढ़ाई ।
लेकिन फ़िर उसके मना करने पर वह सिगरेट के कश लगाता हुआ मानो अतीत में कहीं खो गया, और जैसे उसकी उपस्थिति को भी भूल गया ।
तब प्रसून ने एक सादा सिगरेट सुलगायी, और रिस्टवाच पर दृष्टिपात किया ।
रात के लगभग दस बजने वाले थे ।
चरसी सिगरेट की अजीब सी कसैली महक वातावरण में तेजी से फ़ैल रही थी ।
दयाराम हल्के नशे में मालूम होता था, और इसका सीधा सा अर्थ था कि उसके पास आने से पूर्व ही वह एक-दो सिगरेट और भी पी चुका था ।
और यह उसके लिये बिना प्रयास के ही हुआ फ़ायदे का सौदा था । क्योंकि तब सच्चाई जानने के लिये उसे उसके दिमाग से ज्यादा छेङछाङ नहीं करनी थी । बल्कि उस गम के मारे ने खुद ही रो रोकर उसे अफ़साना ए जिन्दगी सुना देना था ।



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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।