गुरुवार, जुलाई 22, 2010

प्रेतनी का मायाजाल 5




फ़गआत या लोखङा प्रेत की वो किस्म होती है । जो किसी अभिशप्त स्थान पर, या इस्तेमाल न किये जाने वाले शमशान स्थल के आसपास ही रहती है ।
अब तक दयाराम की संगत में प्रसून बहुत कुछ जान गया था । कुछ घटना वह अपने दिमाग से अपनी जानकारी के अनुसार सुना अवश्य रहा था । पर कुछ रहस्य इसमें ऐसा भी था । जिसके बारे में दयाराम भी नहीं जानता था ।
दरअसल ना जानकारी में या किसी होनी के वशीभूत हुआ दयाराम एक अभिशप्त बगिया और अभिशप्त स्थान पर रुक गया था, जहाँ प्रेतवासा था । और पचास, साठ या अस्सी साल पहले उस स्थान को शमशान के रूप में प्रयोग किया जाता रहा होगा । और फिर बाद में कुछ ऐसी घटनाएं घटी होंगी, जिससे वो स्थान अभिशप्त या अछूत समझा जाने लगा होगा । इसी वजह से उसके आसपास आबादी नहीं थी, और इसी वजह से वहाँ पशु आदि चराने वाले नहीं थे । क्योंकि जो लोग प्रेतवासा के बारे में जानते होंगे, वह जानबूझ कर आफ़त क्यों मोल लेंगे ।
इस तरह धीरे धीरे मनुष्य के दूर होते चले जाने से, उस स्थान पर प्रेतों का कब्जा पक्का होता चला गया, और दयाराम कुसुम जैसे व्यक्ति अज्ञानता में उसमें फ़ंसने लगे ।
पर उसके दिमाग में और भी बहुत से सवाल थे ।
कुसुम पर प्रेत का आवेश हो जाना कोई बङी बात नहीं थी ।
लेकिन चार साल में उसने, या प्रेत ने, ऐसा क्या किया था । जो दयाराम उसे मारने पर आमादा था । दयाराम को कैसे मालूम पङा कि कुसुम पर प्रेत था । उसने क्या इलाज कराया । और सबसे बङा सवाल दयाराम उसको मारना ही चाहता था, तो घर पर आसानी से मार सकता था ।
वह इस वीराने में क्यों आया?
चार साल तक प्रेतनी का एक आदमी के साथ रहना मामूली बात नहीं थी ।
आखिर प्रेतनी कौन थी और क्या चाहती थी?
अगर प्रेतनी पूरी तरह से कुसुम के शरीर का इस्तेमाल कर रही थी ।
तो कुसुम इस वक्त कहाँ थी, और किस हाल में थी?
ऐसे कई सवाल थे, जिनका उत्तर दयाराम, और सही उत्तर, कुसुम के पास था ।
पर कुसुम इस वक्त कहाँ थी?
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बेहद सुहानी, मगर बेहद रहस्यमय हो उठी रात धीरे धीरे अपना सफ़र तय कर रही थी ।
प्रसून ने कलियारी कुटी की तरफ़ देखा ।
उसने सोचा कि अगर दयाराम न आया होता, तो वह क्या कर रहा होता?
दयाराम अब भी टहल रहा था ।
उसने उत्सुकतावश शिला पर रखी टार्च की रोशनी पेङ पर डाली ।
पेङ नीबू और बेर के मिले जुले आकार वाले फ़लों से लदा पङा था । ये गूदेदार मीठा फ़ल था, जो प्रसून भूख लगने पर अक्सर खा लिया करता था ।
कलियारी कुटी से पांच सौ मीटर दूर ऐसा ही एक अन्य वृक्ष था । जिस पर जामुन के समान लाल और बैंगनी रंग के चित्तेदार फ़ल लगते थे । ये फ़ल भी खाने में स्वादिष्ट थे । पर ये एक चमत्कार की तरह कलियारी गांव और अन्य गांव वालों से बचे हुये थे ।
क्योंकि पहाङी के नीचे का इलाका किसी प्रेत शक्ति ने बांध रखा था, और कलियारी कुटी को किसी तपस्वी की आन लगी हुयी थी । ऐसी हालत में सामान्य मनुष्य यदि इधर आने की कोशिश करता तो उसे डरावने मायावी अनुभव हो सकते थे ।
जैसे अचानक बङे अजगर का दिखाई दे जाना, अचानक किसी हिंसक जन्तु का प्रकट हो जाना, अचानक कोई रहस्यमयी आकृति का दिखाई देना, वर्जित क्षेत्र में कदम रखने वाले को तेज चक्कर आने लगना आदि जैसे कई प्रभाव हो सकते थे ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।