इस जीव
सृष्टि में प्रत्येक जीवन अनेकानेक जटिल और रहस्यमय तन्तुओं के ताने बाने से बुना
होता है । ये इतना अधिक रहस्यमय होता है कि इस जीवन को धारण करने वाला जीव स्वयं
ही खुद को और खुद के साथ निरन्तर होने वाले क्या, क्यों,
कैसे, कब को कभी नहीं जान पाता ।
आमतौर
पर मनुष्य एक (बेहद सीमित) मोटी और मर्यादित तरीके से लिखी गयी पटकथा के पात्र के
समान जिन्दगी के इस रंगमंच पर अपनी भूमिका का निर्वाह करता है और समय पूरा होने पर
फ़िर से नये जीवन, नयी यात्रा पर निकल जाता है ।
लेकिन
भवसागर की इस अथाह, असीम, अपार भीङ में कुछ
गिने चुने लोग ऐसे भी होते हैं । जो इस तय मर्यादा में बंधना पसन्द नहीं करते और
क्या, क्यों, कैसे, कब को उधेङना शुरू कर देते हैं और तब वे धीरे धीरे अपनी लगन और काबलियत के
अनुसार रहस्य की परतों को भेदने लगते हैं ।
आदिसृष्टि
से ही विद्वजनों की खोज के आधार पर यह सिद्ध हुआ है कि सृष्टि न सिर्फ़ विलक्षण है
बल्कि यहाँ का हर प्राणी एक दूसरे का पूरक है और निश्चय ही एक दूसरे से सम्बद्ध है
। क्योंकि, दरअसल यह विराट सृष्टि सिर्फ़ ‘एक सूत्रीय’ है
। यानी छोटे से छोटा तुच्छ जीव और बङी से बङी महाशक्ति सिर्फ़ एक ही ‘चेतन-डोरी’ से
बंधे हैं । न सिर्फ़ बंधे हैं बल्कि ‘एक ही नियन्ता’ से नियन्त्रित हैं ।
हमें
यह अजीब सा लग सकता है, पर सृष्टि कानून के तहत अजीबोगरीब घटनायें और
सतगुण में तमगुण का जबरन समावेश ही सृष्टि को चलाये रखने का आधार है ।
सरल
भाषा में अपने अस्तित्व को बचाये रखना ।
अलौकिक
दुनियाँ में विचरने वाले, तीन आसमानों की ऊँचाई तक के सफ़ल योगी प्रसून
के जीवन की यौगिक घटनाओं, और स्वतः स्फ़ूर्त प्रकृतिजन्य
अनुभवों को पाठकों ने हमेशा बेहद पसन्द किया, और उनकी
अधिकाधिक मांग रही कि तन्त्र, मन्त्र तथा अलौकिक जगत की
गतिविधियाँ उन्हें अधिकाधिक पढ़ने को मिलें । जो उन्हें जीवन के रहस्यों को समझने,
सीखने, जानने का मौका देती हैं ।
प्रस्तुत
उपन्यास ‘महातांत्रिक’ ऐसी ही जानकारियों से युक्त एक दिलचस्प कथानक है । जो आपको
तन्त्र, मन्त्र और अन्य अलौकिक प्रसंगों की जानकारी
देता है ।
यह
उपन्यास आपको कैसा लगा, और आप किस तरह की जानकारी चाहते हैं ।
इस पर
अपने निष्पक्ष विचारों से अवश्य अवगत करायें ।
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राजीव
श्रेष्ठ
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