- बाबा । कुछ देर बाद अचानक वह होश में आते हुये बोली - वह जोगी महात्मा कहाँ रहते हैं । मैं उनके पास जाकर अपना आंचल फ़ैला दूँगी
। दया की भीख माँगूगी । उनके चरणों में सिर रख दूँगी । अपनी बहू के जीवन का सुख
माँगूगी । आप मुझे उनका पता दीजिये । वे मुझ अभागन पर अवश्य रहम करेंगे ।
बंगाली साधु के चेहरे पर घनी पीङा के भाव उभरे ।
बंगाली साधु के चेहरे पर घनी पीङा के भाव उभरे ।
वह इस
मामूली ज्ञान वाली घरेलू औरत को क्या और कैसे समझाता ।
घोङा
घास से कभी यारी नहीं कर सकता ।
अगर वह
तामसिक स्वभाव का न होता, तो ऐसी वायु को पोषण ही क्यों देता ।
बूढा
मरे या जवान, मुझे हत्या से काम, ही जिसका सिद्धांत होता है ।
उस
निर्दयी से क्या दया की उम्मीद रखी जाय ।
फ़िर
भी तारा की जिद देखकर उसने जोगी का स्थान उसको बता दिया ।
शायद
उसका सोचना सही ही हो ।
शायद
जोगी को दया आ ही जाय ।
शायद !
-------------------
पर
शायद शब्द ही बङा अजीब है ।
इसमें
हाँ और ना दोनों ही छिपी हैं ।
- हुँऽऽ । डरावना दिनकर जोगी एक उपेक्षित सी निगाह दोनों सास बहू पर डालता हुआ बोला - पर इस बात से मेरा क्या सम्बन्ध है देवी । भूत, प्रेत, पिशाच, डायन, चुङैल ये सब मेरे लिये काम करते हैं । मेरी प्रजा हैं, मेरे बालक हैं । तब मैं इनको पोषण देता हूँ, तो इसमें क्या गलत है । उन्हें पालना, उनकी सुरक्षा करना, मेरा फ़र्ज है । तेरी बहू मेरे किसी पिशाच का शिकार हो गयी, तो उससे भी मेरा क्या सम्बन्ध है ।
ये...कहते कहते वह रुका । उसने मंजरी पर फ़िर से निगाह डाली - जरूर किसी दूषित स्थान पर असमय गयी होगी । तब यह प्रेत आवेश के नियम में आ गयी । तेरी सीता से गलती हुयी, जो वह लक्ष्मण रेखा से बाहर आ गयी । उसने इसको शिकार बना लिया । सृष्टि के नियमानुसार देहरहित जीव वृतियाँ ऐसे ही पोषण पाती हैं । उनकी भूख ऐसे ही तृप्त होती है ।..हाँ मेरा कोई गण नियम के विरुद्ध तेरे घर में गया होता । तेरी बहू पर छाया देता, तो उस नीच को अभी तेरे सामने ही जला देता । पर अभी तू बता, मैं क्या करूँ, क्या करूँ मैं ।
मंजरी सहमी सहमी सी छिपी निगाहों से उसे ही देख रही थी ।
- हुँऽऽ । डरावना दिनकर जोगी एक उपेक्षित सी निगाह दोनों सास बहू पर डालता हुआ बोला - पर इस बात से मेरा क्या सम्बन्ध है देवी । भूत, प्रेत, पिशाच, डायन, चुङैल ये सब मेरे लिये काम करते हैं । मेरी प्रजा हैं, मेरे बालक हैं । तब मैं इनको पोषण देता हूँ, तो इसमें क्या गलत है । उन्हें पालना, उनकी सुरक्षा करना, मेरा फ़र्ज है । तेरी बहू मेरे किसी पिशाच का शिकार हो गयी, तो उससे भी मेरा क्या सम्बन्ध है ।
ये...कहते कहते वह रुका । उसने मंजरी पर फ़िर से निगाह डाली - जरूर किसी दूषित स्थान पर असमय गयी होगी । तब यह प्रेत आवेश के नियम में आ गयी । तेरी सीता से गलती हुयी, जो वह लक्ष्मण रेखा से बाहर आ गयी । उसने इसको शिकार बना लिया । सृष्टि के नियमानुसार देहरहित जीव वृतियाँ ऐसे ही पोषण पाती हैं । उनकी भूख ऐसे ही तृप्त होती है ।..हाँ मेरा कोई गण नियम के विरुद्ध तेरे घर में गया होता । तेरी बहू पर छाया देता, तो उस नीच को अभी तेरे सामने ही जला देता । पर अभी तू बता, मैं क्या करूँ, क्या करूँ मैं ।
मंजरी सहमी सहमी सी छिपी निगाहों से उसे ही देख रही थी ।
काले
तांबई रंग सा चमकता, वह विशालकाय पहाङ जैसा था, और गोगा कपूर जैसी मुखाकृति का था । उस वीरान जंगल में उसकी उपस्थित
आदमखोर शेर के समान थी ।
उसको
देखकर अजीब सा भय होने लगता था ।
- महाराज । भयभीत हुयी तारा ने अपना आंचल फ़ैलाकर उसके पैरों में डाल दिया - मेरी बहू के मुख पर एक करुणा दृष्टि डालिये । इसके जीवन की अभी शुरूआत हुयी है । यह बहुत अच्छे स्वभाव की है । इससे जो भी गलती हुयी, उसके लिये मैं इसकी तरफ़ से क्षमा मांगती हूँ ।..पिशाच जो भी भोग मांगेगा, वह मैं उसको दूँगी । बाबा आज एक अभागन माँ, अपने पुत्र और पुत्रवधू के जीवन की आपसे भीख मांगती है, हाथ जोङकर मांगती हैं ।
जोगी विचलित सा हो गया ।
- महाराज । भयभीत हुयी तारा ने अपना आंचल फ़ैलाकर उसके पैरों में डाल दिया - मेरी बहू के मुख पर एक करुणा दृष्टि डालिये । इसके जीवन की अभी शुरूआत हुयी है । यह बहुत अच्छे स्वभाव की है । इससे जो भी गलती हुयी, उसके लिये मैं इसकी तरफ़ से क्षमा मांगती हूँ ।..पिशाच जो भी भोग मांगेगा, वह मैं उसको दूँगी । बाबा आज एक अभागन माँ, अपने पुत्र और पुत्रवधू के जीवन की आपसे भीख मांगती है, हाथ जोङकर मांगती हैं ।
जोगी विचलित सा हो गया ।
उसके
खुरदरे सख्त चेहरे पर आङी तिरछी रेखायें बनने लगी ।
वह
गहरी सोच में पङ गया ।
पिशाच
को रोकने का आदेश देने से गणों में असन्तोष व्याप्त हो सकता था ।
वे उस
पर जो विश्वास करते हुये सन्तुष्ट रहते हैं । उनमें अन्दर ही
अन्दर बगावत फ़ैल सकती है । दूसरे उसके एकक्षत्र कामयाब राज्य का जो दबदबा कायम है
। उसमें असफ़लता की एक कहानी जुङ जाने वाली थी ।
फ़िर तो प्रेतबाधा से पीङित हर कोई दीन दुखी रोता हुआ इधर
ही आने वाला था - महाराज उसे
बचाया, तो मुझे भी बचाओ ।अमेजोन किंडले पर उपलब्ध
available on kindle amazon
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें