रविवार, दिसंबर 18, 2011

महातांत्रिक और मृत्युदीप 6



- बाबा । कुछ देर बाद अचानक वह होश में आते हुये बोली - वह जोगी महात्मा कहाँ रहते हैं । मैं उनके पास जाकर अपना आंचल फ़ैला दूँगी । दया की भीख माँगूगी । उनके चरणों में सिर रख दूँगी । अपनी बहू के जीवन का सुख माँगूगी । आप मुझे उनका पता दीजिये । वे मुझ अभागन पर अवश्य रहम करेंगे ।
बंगाली साधु के चेहरे पर घनी पीङा के भाव उभरे ।
वह इस मामूली ज्ञान वाली घरेलू औरत को क्या और कैसे समझाता ।
घोङा घास से कभी यारी नहीं कर सकता ।
अगर वह तामसिक स्वभाव का न होता, तो ऐसी वायु को पोषण ही क्यों देता ।
बूढा मरे या जवान, मुझे हत्या से काम, ही जिसका सिद्धांत होता है ।
उस निर्दयी से क्या दया की उम्मीद रखी जाय ।
फ़िर भी तारा की जिद देखकर उसने जोगी का स्थान उसको बता दिया ।
शायद उसका सोचना सही ही हो ।
शायद जोगी को दया आ ही जाय ।
शायद !
-------------------

पर शायद शब्द ही बङा अजीब है ।
इसमें हाँ और ना दोनों ही छिपी हैं ।
- हुँऽऽ । डरावना दिनकर जोगी एक उपेक्षित सी निगाह दोनों सास बहू पर डालता हुआ बोला - पर इस बात से मेरा क्या सम्बन्ध है देवी । भूत, प्रेत, पिशाच, डायन, चुङैल ये सब मेरे लिये काम करते हैं । मेरी प्रजा हैं, मेरे बालक हैं । तब मैं इनको पोषण देता हूँ, तो इसमें क्या गलत है । उन्हें पालना, उनकी सुरक्षा करना, मेरा फ़र्ज है । तेरी बहू मेरे किसी पिशाच का शिकार हो गयी, तो उससे भी मेरा क्या सम्बन्ध है ।
ये...कहते कहते वह रुका । उसने मंजरी पर फ़िर से निगाह डाली - जरूर किसी दूषित स्थान पर असमय गयी होगी । तब यह प्रेत आवेश के नियम में आ गयी । तेरी सीता से गलती हुयी, जो वह लक्ष्मण रेखा से बाहर आ गयी । उसने इसको शिकार बना लिया । सृष्टि के नियमानुसार देहरहित जीव वृतियाँ ऐसे ही पोषण पाती हैं । उनकी भूख ऐसे ही तृप्त होती है ।..हाँ मेरा कोई गण नियम के विरुद्ध तेरे घर में गया होता । तेरी बहू पर छाया देता, तो उस नीच को अभी तेरे सामने ही जला देता । पर अभी तू बता, मैं क्या करूँ, क्या करूँ मैं ।
मंजरी सहमी सहमी सी छिपी निगाहों से उसे ही देख रही थी ।
काले तांबई रंग सा चमकता, वह विशालकाय पहाङ जैसा था, और गोगा कपूर जैसी मुखाकृति का था । उस वीरान जंगल में उसकी उपस्थित आदमखोर शेर के समान थी ।
उसको देखकर अजीब सा भय होने लगता था ।
- महाराज । भयभीत हुयी तारा ने अपना आंचल फ़ैलाकर उसके पैरों में डाल दिया - मेरी बहू के मुख पर एक करुणा दृष्टि डालिये । इसके जीवन की अभी शुरूआत हुयी है । यह बहुत अच्छे स्वभाव की है । इससे जो भी गलती हुयी, उसके लिये मैं इसकी तरफ़ से क्षमा मांगती हूँ ।..पिशाच जो भी भोग मांगेगा, वह मैं उसको दूँगी । बाबा आज एक अभागन माँ, अपने पुत्र और पुत्रवधू के जीवन की आपसे भीख मांगती है, हाथ जोङकर मांगती हैं ।
जोगी विचलित सा हो गया ।
उसके खुरदरे सख्त चेहरे पर आङी तिरछी रेखायें बनने लगी ।
वह गहरी सोच में पङ गया ।
पिशाच को रोकने का आदेश देने से गणों में असन्तोष व्याप्त हो सकता था ।
वे उस पर जो विश्वास करते हुये सन्तुष्ट रहते हैं । उनमें अन्दर ही अन्दर बगावत फ़ैल सकती है । दूसरे उसके एकक्षत्र कामयाब राज्य का जो दबदबा कायम है । उसमें असफ़लता की एक कहानी जुङ जाने वाली थी ।
फ़िर तो प्रेतबाधा से पीङित हर कोई दीन दुखी रोता हुआ इधर ही आने वाला था - महाराज उसे बचाया, तो मुझे भी बचाओ ।


अमेजोन किंडले पर उपलब्ध

available on kindle amazon


कोई टिप्पणी नहीं:

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।