रविवार, दिसंबर 18, 2011

महातांत्रिक और मृत्युदीप 2




- सीते‍ऽ ! काले पहाङ सा विशाल दैत्य रावण बोला - तूने इस लक्ष्मण रेखा के बाहर आकर बहुत बङी गलती की । अब तुझे इसके लिये सदा पछताना होगा ।
उस आन लगी रेखा से बाहर आते ही साधु से राक्षस में परिवर्तित हुआ रावण का ये प्रचण्ड रूप देखकर सीता घबरा गयी, और सूखे पत्ते की तरह थर-थर कांपने लगी ।
मंजरी का कलेजा धक से रह गया । उसके सीने में छुपा दिल धाङ धाङ कर बजने लगा । उसने पालिका ग्राउण्ड की चहारदीवारी पर बैठे पुष्कर की तरफ़ देखा ।
वह न जाने कब से उसे ही देख रहा था ।
जैसे ही उसकी नजरें उससे मिलीं । उसने एक गुप्त इशारा किया ।
वह सिटपिटाकर फ़िर से सामने देखने लगी ।
रामलीला स्टेज पर लटके दर्जनों बल्बों पर तमाम पतंगे मंडरा रहे थे, और इस आधुनिक शमा पर किसी प्राचीन परवाने की तरह से गर्म बल्ब से झुलस कर तत्काल मृत्यु को प्राप्त होते थे । इस निश्चित अंजाम को प्राप्त होते उन्हें नये परवाने देखते थे ।
फ़िर भी भयानक मौत की परवाह न करते हुये वे रोशनी के दीवाने एक एक कर सूली पर चढ़ते जाते थे ।
मंजरी के दिलोदिमाग में ऐसे ही अशान्त कर देने वाले विचारों का तूफ़ानी कोलाहल सा उठ रहा था । फ़िर रावण के संवाद ने तो मानों उसकी आत्मा को ही हिला दिया ।
उसे लगा कि जैसे ये बात रावण ने सीता से न कहकर खुद उससे कही हो । कहीं वह भी तो नहीं पतिवृता की लक्ष्मण रेखा लांघने जा रही थी ।
उसने अपनी नाजुक कलाई में बँधी बहुत छोटे आकार की डिजायनर घङी पर निगाह डाली ।
बारह बजने में बीस मिनट बाकी थे ।
चारों तरफ़ घुप्प अँधेरा फ़ैला हुआ था ।
बस नगरपालिका के इस ग्राउण्ड में जो रामलीला मंचन के समय रात को आबाद रहता था । बल्बों का प्रकाश फ़ैला हुआ था । यह प्रकाश भी बेहतर मंचन प्रदर्शन हेतु सिर्फ़ स्टेज पर ही अधिक था । बाकी दर्शकों वाला स्थान लगभग अँधेरे में था, और वहाँ बहुत मामूली प्रकाश ही था ।
सभी दर्शक हजारों साल पहले घटित राम कथा का नाटय मंचन, कई बार देखा होने के बाबजूद भी उसी उत्सुकता से देख रहे थे । मंजरी भी देख रही थी, और कुछ देर पहले तक उसके मन में कोई बात नहीं थी । पर अचानक ही उसके दिल में कोलाहल सा उठने लगा था ।
कितनी समानता थी, गर्म बल्ब से झुलसकर मरते इन पतंगों में, और रावण में ।
रावण भी देवी सीता की सुन्दरता का दीवाना था, और जान की कीमत पर उसे पाना चाहता था । जान की कीमत पर भी ।
जानकी जान की प्यासी है । लेकिन फ़िर भी उल्टा सीता को समझा रहा था ।
रामलीला का दृश्य आगे बढ़ चुका था ।
पर मंजरी के दिमाग में वही दृश्य अटका हुआ था ।
- सीते‍ऽऽ ! काले पहाङ सा विशाल दैत्य रावण उसके दिमाग में बोला - तूने इस लक्ष्मण रेखा के बाहर आकर बहुत बङी गलती की । अब तुझे इसके लिये बहुत पछताना होगा ।
मंजरी का दिल एकदम जोरों से उछला ।
उसका समूचा अस्तित्व निकलकर स्टेज की सीता में समा गया ।
अब उसके सामने ही रावण खङा था ।
- मंजरीऽऽ ! उसके दिमाग में रावण की आवाज गूँजी - तूने इस लक्ष्मण रेखा के बाहर आकर बहुत बङी गलती की । अब तुझे इसके लिये बहुत पछताना होगा ।
वह अचानक ही बिना बात के हङबङा गयी ।
उसकी निगाह फ़िर से चहारदीवारी पर गयी ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।