मंगलवार, अगस्त 17, 2010

मन्त्र काम क्यों नहीं करता..? 2


फ़िर जैसा कि मुझसे अपेक्षित था । मैंने मीनाक्षी से कहा । आपको मेरे बारे में किसी ने गलत जानकारी दी
है । मैं साधारण स्तर का एक छोटा सा भक्त हूं । और तन्त्र मन्त्र आदि के सम्बन्ध में मुझे कोई जानकारी नहीं हैं । और आप जिस तरह का ग्यान पूछ रहीं हैं । उस तरह का तो मैं हरगिज नहीं जानता । हां यदि मुक्ति मोक्ष । आत्म ग्यान के सम्बन्ध में कोई रुचि रखती हों । तो मैं आपके सवालों का उत्तर दे सकता हूं । आप कुन्डलिनी के बारे में बात करना चाहें । तो उसमें भी बात हो सकती है । पर जिन विषयों का आप जिक्र कर रहीं हैं । उनके लिये वैरी सारी । तब उसने कहा कि मैं मन्त्र को सही तरह से एक्टिव करने का तरीका ही बता दूं । या सिखा दूं । और एक बार फ़िर उसने जबरदस्त काम अस्त्र चलाया । मैंने कहा । मैडम अगर में जानता होता । तो क्या पागल था । जो इस कीमत पर नहीं देता ? और अंत में मुझे पागल ही समझकर वो चली गयी । वास्तविक बात ये है । कि मन्त्र को एक्टिव करना । और उससे काम लेना लोग बहुत छोटी बात समझते हैं । आईये देखें । एक मन्त्र कैसे सिद्ध होता है । इस तरीके को मेरे द्वारा खोलने का एक ही कारण है कि मीनाक्षी जैसे तमाम लोग जो अपना समय और जिन्दगी न सिर्फ़ बरबाद करते हैं । बल्कि एक घिनौने चक्रव्यूह में फ़ंस जाते हैं । वो इससे कुछ सबक ले सकते हैं कि ये इतनी आसान जलेबी नहीं है । लेकिन जो तीसमारखां हैं । और जिन्होंने ठान ही लिया है । कि वे मन्त्र तन्त्र को सिद्ध करके ही मानेंगे । उनके परिणाम उनके तरीके । लगन । और अन्य चीजों पर निर्भर होते हैं । जिसके लिये वे खुद ही जिम्मेदार होते हैं । किसी भी मन्त्र आदि विशेष पूजा में साधक को सबसे पहले । ॐ नमः । आदि से परमात्मा का भावपूर्ण स्मरण करना होता है । अब यहीं पर मुश्किल ये है कि ये ॐ क्या है । उसका भाव क्या है । ये बडे बडे तुर्रम खां नहीं जानते । ये मेरा निजी अनुभव है । लिहाजा गाडी स्टार्ट होने से पहले ही घुर्र घुर्र कर के रह जाती है । इसके बाद । यं । रं । वं । लम आदि बीज मन्त्रों से शरीर की शुद्धि की जाती है । दुष्ट शक्तियां अनुष्ठान के मध्य बाधा न डालें इसलिये शरीर रक्षा कवच और स्थान को भी बहुत बार बांधना अनिवार्य होता है । इसके बाद एक अलग मन्त्र के द्वारा अपने साधक स्वरूप का विशेष ध्यान करना होता है । इसके बाद करन्यास और फ़िर देहन्यास करना होता है । फ़िर अलग अलग मन्त्र की आवश्यकताओं के अनुसार ह्रदय में योगपीठ पूजा आदि का विधान है । जिसमें कम से कम बीस तीस लाइनों के अलग अलग देवताओं के मन्त्र सही उच्चारण और भावपूर्ण ढंग से मन में बोलने होते हैं । इसके बाद कर्णिका के मध्य में किसी बडे मन्त्र जो स्थिति के अनुसार अलग अलग होता है । ह्रदयादिन्यास किया जाता है । इसमें भी कम से कम दस लाइन का मन्त्र होता है । इसके बाद विष्णु आदि देवता के वाहन और आयुध को नमस्कार करते हैं । और इन सबमें आठ दस लाइन के मन्त्र होते हैं । फ़िर बीज मन्त्रों से इन्द्र आदि दिक्पाल को नमस्कार करते हैं । ये भी आठ लाइन के मन्त्र हो गये । फ़िर इनके भी आयुधों को प्रणाम करने का नियम है । इसके बाद भगवान अनन्त । ब्रह्मदेव । वासुदेव । पुन्डरीकाक्ष । आदि को प्रणाम किया जाता है । जो एक लम्बी प्रक्रिया है । इसके बाद अग्नि आदि की स्थापना द्वारा हवन करके । तब मन्त्र पर कई प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद आ पाते हैं । दूसरे इसमें नियम और शुद्धता आदि का बहुत ख्याल रखना पडता है । फ़िर इसमें किसी का आवाह्न । स्वास्तिक मण्डल । सर्वतोभद्र मण्डल जैसे तमाम ठठाकर्म होते है । कोण का ध्यान रखो । मुहूर्त का ध्यान रखो आदि ऐसी कई बातें हैं । जो आज के कलियुगी माहौल में मेरे हिसाब से तो हरेक के लिये सम्भव ही नहीं है । पहले अन्य युगों में ये चीजें गुरुकुल शिक्षा पद्धित में बचपन से सिखाई जाती थी । अतः किसी सिद्धि आदि के लिये वो साधक उन्हें फ़टाफ़ट करता जाता था । पहले संस्कृत भाषा आम प्रचलन में थी । और ज्यादातर मन्त्र संस्कृत में ही होते हैं । आजकल हम बचपन से अंग्रेजी सीखते हैं । त्याग प्रवृति की जगह उपभोक्तावाद संस्कृति में जी रहे हैं । ब्रह्मचर्य की जगह free sex में जी रहे है । भक्ति पूजा की जगह पेट पूजा नोट पूजा हमारी आदत है । संस्कृत में शब्द परस्पर हार में फ़ूलों की तरह गुथे होते है । जबकि आजकल बोली जाने वाली भाषायें अलग अलग शब्दों से वाक्य बनाती है । अब सबसे महत्वपूर्ण बात ये है । कि इतनी सब बाधाओं को कोई पार कर भी ले तो । द्वापर के मध्य से ही एक विशेष नियम के तहत चार शब्द हिन्दी और संस्कृत वर्णमाला से ( दोनों लगभग एक ही हैं ) और साथ ही हमारे गले के स्वर यन्त्र से गायब हो गये । जो स्फ़ोट या गूंज स्वर थे । जिनसे मन्त्र की गति होती थी । और वह अंतरिक्ष या अपने लक्ष्य पर जाकर एक्टिव होता था । जिन्होंने संस्कृत भाषा की प्राचीन पान्डुलिपियों को देखा होगा । उन्हें कुछ ऐसे शब्द जरूर निगाह में आये होंगे । जिनको बोलना असम्भव है । दूसरे संस्कृत भाषा हिंदी या अंग्रेजी की खडी बोली की तरह रूखे या लठ्ठमार अन्दाज में नहीं बोली जाती । बल्कि काव्यपाठ के से अन्दाज में लययुक्त बोलने का विधान है । खासतौर से मन्त्र उच्चारण के समय ? अभी भी हिंदी में यां उच्चारण जैसा एक शब्द है । जिसको बोला नहीं जा सकता । अंग्रेजी के एस s की तरह जो शब्द ध्वनि सूचक होता है । उसका भी उच्चारण सम्भव नहीं है । इसलिये कुछ ऐसे रहस्य है । जिनसे वैदिक मन्त्र काम नहीं करेंगे । कलियुग के लिये वास्तव में शंकर जी द्वारा रचित शाबर मन्त्र । गोरख जंजीरा । कर्ण पिशाचिनी साधना । पंचागुली साधना । जैसे छोटे मोटे काम चलाऊ और ज्वर आदि उपचार । विषेले कीडे आदि का उपचार । भूत प्रेत से रक्षा आदि के उपचार जैसे ही मन्त्र सिद्ध होने का विधान है । और इसी तरह की पैचाशिक साधनाओं को सिद्ध करके भगवान का नाम जोडकर । साधुओं के नाम पर कलंक कुछ पाखण्डी जनता को भृमित करते हैं । वास्तव में कलियुग में साधारण भक्ति और ढाई अक्षर के महामन्त्र की भक्ति का ही आदेश है । जिसके लिये तुलसीदास ने कहा है । कलियुग केवल नाम अधारा । सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा । क्या इसमें कोई सन्देह है ?

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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।