शुक्रवार, अगस्त 06, 2010

but can u give me some evidences ?

लेखकीय -- आप लोगों की प्रतिक्रियाओं के लिये । आभार । कुछ चुनिंदा comments को जिनके उत्तर देना आवश्यक लगा । मैंने यहां लेख में शामिल किया है । अन्य लोग कृपया इसे अन्यथा न लें ।
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जय गुरूदेव की । राजीव जी कल में आपका लेख " सोते में जागो " का अनुवाद कर रहा था यह सोचकर कि गुरूपुर्णिमा से पहले ही प्रकाशित कर दूगां पर अनुवाद करते ही बिजली चली गयी,खैर आज गुरूपुर्णिमा को प्रकाशित कर दिया । spiritualismfromindia.blogspot.com
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Gulshankumar " सोना बनाने के रहस्यमय नुस्खे 1 " पर respected Rajiv jiin sab upyogi jankariyo or margdarshan ke liye dhanyvad.thanksGulshankumar
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Akki पोस्ट " अवधूता युगन युगन हम योगी , " पर राजीव जी क्या आप के पास यह भजन ऑडियो के रूप में उपलब्ध है ? यदि हो तो कृपया उसे मेरे email id akhil_iips@rediffmail.com पर भेज देवे तो बड़ी मेहरबानी होगी !
******* मेरी बात--sorry Akki जी । मेरे पास ऑडियो नहीं है । होने पर अवश्य आपको भेजता ।
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dr.damodar पोस्ट " मृतक का अंतिम संस्कार..? " पर आध्यात्मिक ग्यान की सरिता प्रवाहित हो रही है आपके इस आलेख में। आभार!
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Mrs. Asha Joglekar पोस्ट " बहुत से सवाल हैं जिनका कोई जवाब नहीं देता..1 " पर Achcha laga aapka blog. Bramhan shayad Brahmadnya shabd ka prakrut roop hai. Jo brahm ko janta samazta hai wahi brahman hai klantar me isme anek pakhnad ghus gaye warna Brahman ka kam to adhyayan aur adhyapan hee tha. Kisi kal me bhee samaj buraeeyon se mukt nahee tha ye aapi bat theek hai.
******** मेरी बात ।--धन्यवाद Mrs. Asha Joglekar जी । विध्यार्थी । शिक्षक । प्रवक्ता । विद्वान । पंडित । ग्यानी । ब्राह्मण । गुरु । सतगुरु । आत्मा । परमात्मा । ये क्रमशः मनुष्य जीवन में ग्यान की उत्तरोतर प्रगति है । आप इस क्रम को गौर से देखे । पहले कोई भी । शिक्षार्थी होता है । फ़िर सीखकर शिक्षक । फ़िर विषय निपुण प्रवक्ता ।फ़िर उस विषय का विद्वान । फ़िर पंडित । फ़िर अधिक परिपक्वता पर ग्यानी । ब्राह्मण का सही अर्थ ब्रह्म में स्थिति । गुरु का मतलव । उस ग्यान का नियुक्त अधिकारी ।सतगुरु का अर्थ । शाश्वत सत्य या प्रत्येक सत्य को जानने वाला । यहां तक का ग्यान हो जाने के बाद आत्मा से परमात्मा की यात्रा भर शेष रह जाती है ।
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सुज्ञ पोस्ट " बहुत से सवाल हैं जिनका कोई जवाब नहीं देता..1 " पर राजीव जी,आस्तिकता पर एक अभिनव दृष्टिकोण!!इस सुन्दर लेख के लिये आपको बधाई देता हूंनास्तिक ये क्युं मानते हैं,कि जरा भी नास्तिकता की बातें की तो सारे आस्तिक आकर पिल पडेंगे।वस्तुतः आस्तिकता एक सौम्य अवधारणा ही है, किन्तु आप जानकर किसी अल्पज्ञानी आस्तिक को छेडेंगे तो सम्भव है कुछ आक्रोश प्रकट हो। लेकिन नास्तिको में एक मनोग्रंथी है कि,नास्तिक हुए बिना व्यक्ति आधुनिक और विकासवादी हो ही नहिं सकता।
***** मेरी बात ।--ग्यान । अग्यान । अंधेरे । उजाले । इनका निरंतर संघर्ष जीवन में उत्साह और चेतना के लिये बहुत आवश्यक है । कोई भी हो । उसकी विचारधारा समय के साथ बदलती ही है । ग्यान की तरह अग्यान भी स्थायी नहीं होता । ग्यानी का पतन । और अग्यानी का उत्थान । इतिहास में इसके करोडों उदाहरण है । ईस ही इच्छा से जीव हो गया । जीव इच्छा से ईश हो जाता है । केवल आत्मा में कोई परिवर्तन नहीं होता । स्थिति में परिवर्तन हर पल होता है । क्योंकि प्रकृति मे निरंतर हलचल होना उसका स्वभाव ही है ।
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Rajeev पोस्ट " हठ योगी " पर जय गुरूदेव कीराजीव जी हठ योग के बारे में समझ आ गया,और मेरी रूचि भी ना तो हठ योग में है,ना ही कुन्डलनी में,मेरी रूचि तो प्रभु की कृपा पाने में है,और यह भी मानता हूँ,प्रभु एक हैं,फिर भी अम्बे माँ की ओर विशेष झुकाव है,और इसका उत्तर आपने दे भी दिया था ।आभार ।
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uthojago (http://uthojago.wordpress.com/) पोस्ट " मृत्यु के बाद का सफ़र .. " पर I believe in this philosophy but can u give me some evidences
******** मेरी बात ।--इस लाइन ने मुझे बेहद आकर्षित किया । मुझे याद है । कि बचपन में मेरे परिवार के लोग खुशी के साथ मेरा जन्मदिन मनाना चाहते थे । मैंने कहा । तुम अजीव हो । आज मैं एक साल और मर गया । इसमें खुशी किस बात की है ? तुमने मुझे बता दिया है कि इंसान सौ साल जीता है । मुझे चिंता है कि मैं उसके बाद कहां जाने वाला हूं ? मैं जानना चाहता हूं । तुम वास्तव में मेरे अपने हो ? मैं जन्म से पहले कहां था और कौन था ? तुम कौन हो जो मेरा परिवार बने हो ? ऐसे अनेकों सवाल है । जिनका जबाब न होना मुझे बैचेन करता है । मुझे लगता है । मैं खो गया हूं । फ़िर मैं खुश कैसे हो जाऊं ?
तब मैंने तय किया । मुझे लौटना होगा । उस अदृश्य की ओर । उस अग्यात की ओर । जहां से मैं आया हूं ।
और इसमें कोई शंका नहीं है ? I believe in this philosophy but can u give me some evidences . बहुत सरल है । इसका evidences देना । जरा विचार करो । आप नदी की धारा के साथ बहते हुये आ गये हो । और निरंतर बहते जा रहे हो । तब आप धारा की मर्जी और बहाव पर निर्भर हो । यह जीवन है । जीवन के पार देखना है । मृत्यु के पार देखना है ? तो धारा के विपरीत तैरना होगा । इसलिये रुक जाओ । धाराओं का वेग त्याग दो । पीछे देखो । ये धारा कहां से आ रही है ? और इसको जानने के लिये विपरीत तैरना आरम्भ कर दो । तभी सत्य का पता चलेगा । तभी अपना पता चलेगा । तभी मृत्यु का पता चलेगा । और ये बहुत आसान है । कबीर ने कहा है । जा मरिबे से जग डरे । मेरे मन आनन्द । मरने ही से पाईये पूरा परमानन्द । बुद्ध विचलित हो गये । काफ़ी समय की कठिन तपस्या के बाद भी कुछ हाथ न आया । ह्रदय से स्वतः आवाज निकली । प्रभु तुझे ऐसे ही भक्तों को परेशान करने में मजा आता है । तुरन्त अंतर में आकाशवाणी हुयी । शरीर के माध्यम का ध्यान कर । धारा आ रही है ।
मगर तुम इसको व्यर्थ व्यय कर रहे हो । पहले थिरता । फ़िर धारा के स्रोत की तरफ़ जाना । यही उस अगम देश पहुंचने का मार्ग है । जहां तुम्हारा असली परिचय छूट गया है । और बार बार मरने से मृत्यु की अनेक दीबारे खडी हो जाने से । वो तुम्हारा निज देश ओझल हो गया । जहां के तुम वासी हो । तू अजर अनामी वीर । भय किसकी खाता । तेरे ऊपर कोई न दाता ।
*******मृत्यु के बाद का सफ़र--महज एक सप्ताह में देखा जा सकता । सुई गिरने की आवाज भी न हो ऐसा स्थान । हल्का अंधेरा । न अधिक ठंडा । न अधिक गर्म । सात दिन किसी से कोई भी कैसा भी सम्पर्क नहीं ।केवल शरीर की जरूरत । भोजन । पानी । स्नान । मल मूत्र त्याग । जैसे कार्य ही कर सकते है । ऐसी व्यवस्था जिसके पास हो । वो आराम से जीवन के पार । अग्यात को । मृत्यु को । अपने अन्य जीवन को । देख सकता
है । बस कुछ नियमों को मानना होगा । सहज तरीके में मेरा अनुभव अलग है । कुछ लोगों ने पहले ही दिन बिना किसी व्यवस्था के बहुत कुछ देखा । और कुछ को छह महीने तक लग गये । अब ये प्रयोगकर्ता की मर्जी है कि वो राकेट से जाना चाहता है । हवाई जहाज से । या अन्य वाहन से ?
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संजय भास्कर पोस्ट " पांच प्रेत...five ghost " पर मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !

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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।