रविवार, अप्रैल 04, 2010

नारद की दीक्षा.|.

गुरु का और गुरुदीक्षा का कितना महत्व है ये आप इस को पढकर जान सकते है . नारद प्रायः देवताओं की सभा में जाते थे और चले आते थे .एक दिन ऐसा हुआ कि सभा से चले आये नारद को दुबारा वहाँ जाने की आवश्यकता पङ गयी..तब नारद ने देखा कि जिस स्थान पर वह बैठे थे उस स्थान पर गढ्ढा खोदकर वहाँ की मिट्टी हटायी जा रही है . उन्होंने कहा कि आप लोग ये क्या कर रहे है . तब उन्हें जबाब मिला कि ये तो तुम्हारी वजह से हमें रोज ही करना पङता है क्योंकि तुम निगुरा (जिसका कोई गुरु ना हो ) हो अतः तुम्हारे बैठने से स्थान अपवित्र हो
जाता हैं नारद जी ने कहा कि गुरु का इतना महत्व है और मैं इस सत्य से अनजान था . फ़िर उन्होंने सलाह ली कि किसे गुरु बनाया जाय . तब देवताओं ने कहा कि सुबह सब
से पहले जो मिले उसी को गुरु बना लेना . नारद जी सहमत हो गये . दूसरे दिन विष्णु धीवर (मछ्ली पकङने वाला ) के वेश में उनको सबसे पहले मिल गये और न चाहते हुये भी अपने वचन की मर्यादा हेतु नारद को उन्हें उस धीवर को गुरु बनाना पङा . दूसरे दिन देवताओं ने पूछा कि नारद तुमने गुरु बना लिया तो नारद को सकुचाते हुये बताना पङा कि गुरु तो बना लिया लेकिन..(वह धीवर है ) अभी वह लेकिन ही कह पाये थे कि सबने कहा , नारद जी तुमने अनर्थ कर दिया गुरु में लेकिन ..लगाने से अब तुम्हें लख चौरासी भोगनी होगी , गुरु जैसा भी हो उसमें लेकिन किन्तु परन्तु नहीं करते . नारद ने चिंतित होकर कहा . अब कैसे इस गलती से बचूँ सबने कहा कि इसका उपाय भी तुम्हें गुरु ही बतायेंगे नारद धीवर के पास पहुँचे और अपनी समस्या बतायी तब नारद के गुरु ने कहा . बस इतनी सी बात है और उपाय बता दिया .

गुरु के बताये अनुसार नारद भगवान के पास पहुँचे और बोले कि भगवान ये लख चौरासी बार बार सुनी है ये होती क्या है ??
भगवान उनको समझाने लगे और नारद गुरु के बताये अनुसार सब समझते हुये भी न समझने का नाटक करते रहे और अंत में बोले . प्रभो ठीक से समझाने के लिये आप चित्र बनाकर दिखा दें . भगवान ने जमीन पर चौरासी का चित्र बना दिया और नारद ने गुरु के बताये अनुसार चित्र पर लोटपोट कर चित्र मिटा दिया . भगवान ने कहा कि नारद ये क्या कर रहे हो ? नारद ने कहा कि आपकी चौरासी भोग रहा हूँ . जो गुरु में नीचा भाव रखने से बन गयी थी .
कबीर गुरु की भगति बिनु नारि कूकरी होय..गली गली भूँसति फ़िरे टूक न डारे कोय ?
कबीर गुरु की भगति बिनु राजा बिरखभ होय ..माटी लदे कुम्हार की , घास न डारे कोय
उज्जवल पहिरे कापङे , पान सुपारी खाहिं ..सो एक गुरु की भगति बिनु ,बाँधे जमपुर जाहिं
गुरु बिनु माला फ़ेरता , गुरु बिनु करता दान ..गुरु बिनु सब निस्फ़ल गया , बूझो वेद पुरान

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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।