रविवार, अप्रैल 04, 2010

भोग और योग ??

आये थे हरि भजन को..करो नरक को ठौर ??
रज्जब जी एक महान संत हुये हैं .कहते हैं कि इनकी बारात जा रही थी .तब रास्ते में इनको दादू जी मिले .सब लोगों ने विवाह से पूर्व संत का आशीर्वाद लेना उचित समझा . रज्जब जी ने दादू को प्रणाम किया तो दादू जी ने कहा
"रज्जब तें गज्जब करो ,बाँधो सिर पर मौर .
आओ थो हरि भजन को करो नरक को ठौर ..??
यह बात रज्जब जी पर इस कदर असर कर गयी कि उन्होनें शादी न करने का निर्णय ले लिया.इस पर साथ के लोगो को बङी चिन्ता हुई कि शादी नही करेगा तो इसका जीवन बेकार हो जायेगा .उन्होने दादू जी पर दबाब डाला कि आपने
इसका मन शादी से हटा दिया है अब आप ही इसको समझाये . तब दादू जी ने उनको बेहद समझाया कि अभी तुम क्षणिक भावना के बहाव में ऐसा कह रहे हो बाद में तुमको कामभावना आकर्षित करेगी और तुम संसार और औरत के फ़ेर में आ जाओगे . इससे अच्छा यही है कि पहले ही अपनी इच्छाओ को पूरा कर लो जिससे बाद में साधना में भटकाव न हो (ऐसा अक्सर ही होता है .कहते हैं कि एक महात्मा ने तप से इतनी ऊँची स्थिति प्राप्त कर ली थी कि वे जल के अंदर बैठकर
साधनारत रहते थे .अचानक एक दिन साधना से आँखे खोलते ही उन्होने मैथुनरत मच्छयुगल को देखा और उनके मन में कामवासना जाग उठी और उन्होने किसी के साथ जाकर भोग कर लिया और उसी समय उनका संचित तप नष्ट हो गया
ये सत्य है कि भोग और योग एक जगह नही..एक साथ नही हो सकते हैं ) रज्जब जी ने जबाब दिया.
रज्जब घर घरणी तजी ,पर घरणी न सुहाय ..अहि तजि अपनी केंचुरी काको पहिरों जाय
जब मैंने अपनी होने वाली पत्नी की ही इच्छा त्याग दी तो मुझे अन्य स्त्रियों से क्या प्रयोजन..जिस प्रकार सर्प अपनी केंचुली को उतारकर फ़ेंकने के बाद दुबारा धारण नहीं करता . वैसे ही मैंने अपनी समस्त वासनाओं को उतारकर फ़ेंक दिया हैं और अब मैं पूरी तरह से हरिभजन कर अपनी मुक्ति का मार्ग तलाशूँगा .

एक दिल लाखों तमन्ना ,उस पे और ज्यादा हविस ..फ़िर ठिकाना है कहाँ उसके ठिकाने के लिये
कई जनम भये कीट पतंगा कई जनमगज मीन कुरंगाकई जनम पंखी सरप होइओ , कई जनम हैवर ब्रिख जोईओ
मिलु जगदीस मिलन की बरीआ ,चिरंकाल यह देह संजरीआ
कबीर मानुस जनमु दुर्लभ है होय ना बारे बार..जिउ फ़ल पाके भुइ गिरे बहुर न लागे डार

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मेरे बारे में

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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।