
रैदास जी ने कहा कि तेरा सौ साल का नरक एक घन्टे में कट गया..तब मीरा इस बात का रहस्य समझी . सभी जानते हैं कि संत रैदास जी चर्मकार कुल में हुये थे और जूते गांठने ,बनाने का कार्य करते थे और उनकी शिष्या मीरा का सम्बन्ध महलों से था . इस बात को लेकर
सब मीरा की हँसी बनाते थे और कहते थे कि तेरा गुरु जूते गांठता है . तब परेशान होकर मीरा ने एक बहुमूल्य हीरा लिया और गुरु जी से जाकर कहा कि गुरुजी आप इस हीरे को बेचकर अपनी स्थिति सुधार लें .सब लोग मेरी काफ़ी हँसी बनाते हैं मुझसे आपकी बेइज्जती बरदाश्त नहीं होती रैदास जी ने हँसकर कहा कि संतों की रहनी अलग ही होती
है उन्हें हीरे मोती से कोई मतलब नहीं होता है . इसलिये जो कहता है उसको कहने दो और तुम कोई चिन्ता न करते हुये नाम की कमाई करो . यही मनुष्य की वास्तविक दौलत है .
विशेष- एक संत ने भी रैदास जी की कमजोर आर्थिक दशा देखते हुये पन्द्रह दिन के लिये पारस पत्थर दे दिया लेकिन रैदास जी ने उसका कोई उपयोग नहीं किया .ये घटना मेरे किसी ब्लाग में आपको मिल जायेगी .
कोई तो तन मन दुखी ,कोई चित्त उदास ..एक एक दुख सभन को सुखी संत का दास
भीखा भूखा कोई नहीं सबकी गठरी लाल ..गिरह खोल न जानही ताते भये कंगाल
नीच नीच सब तर गये संत चरन लौलीन ...जातहि के अभिमान से डूबे बहुत कुलीन .
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