सोमवार, अप्रैल 05, 2010

जो मैं ऐसा जानती..?

मोहे गुरु मिले रैदास बलम घर ना जाऊँ .
एक बेली के दोऊ तोमा ,एक ही उनकी जात .
एक गलिन में लुढकत डोलत ,एक संत के हाथ .
एक माटी के दोऊ भांङे .एक ही उनकी जात .
एक में रक्खे माखन मिश्री , एक धोवी के हाथ .
मोहे गुरु मिले रैदास , बलम घर ना जाँऊ .
जो मैं ऐसा जानती, भगति करे दुख होय .
नगर ढिंढोरा पीटती ,भगति न करियो कोय .
नाम लेयु और नाम न होय , सभी सयाने लेंय .
मीरा सुत जायो नहीं , शिष्य न मुंङयो कोय .
सबहिं सयाने एक मत ,पहुँचे का मत एक .
बीच में जो रहे , उनके मते अनेक .
पायो जी मैंने नाम रतन धन पायो .
वस्तु अमोलक दयी मेरे गुरु ने दिन दिन बङत सवायो .
आमतौर पर कम ही लोंगों को ये बात पता है कि मीराबाई सहजयोग राजयोग ,सुर्ति शब्द योग (तीनों का एक ही मतलब है ) की महान साधिका थी . मीरा जी जब छोटी थी तो उनकी गली में एक बारात आई उनसे कुछ बङी लङकियां बात कर रही थी कि देख दूल्हा वो है . देख दूल्हा वो है . मीरा ने घर आकर पूछा . माँ ये दूल्हा क्या होता है और मेरा दूल्हा कौन है . उनकी माँ ने बालिका मीरा को बहलाने के लिये श्रीकृष्ण की मूर्ति की तरफ़ इशारा कर के कह दिया कि तेरा दूल्हा ये है . इस बात ने मीरा के मन पर गहरा असर डाला और वो श्रीकृष्ण को ही अपना पति मानने लगीं और काफ़ी समय तक उन्होंने श्रीकृष्ण की भक्ति की .
एक दिन की बात है कि उनकी एक कामवाली देर से काम पर आयी तो मीरा की माँ ने देर से आने का कारण पूछा . तब उसने कहा कि उसके घर पर उसके गुरु महाराज जी ( संत रैदास जी ) आये हुये हैं . मीरा ने उत्सुकता से पूछा कि ये गुरु क्या होते हैं ? कामबाली ने बताया कि गुरु हमें भगवान का दर्शन कराते हैं . मीरा ने उत्सुकता से पूछा कि क्या वे उसे श्रीकृष्ण का दर्शन करा सकते हैं उसने कहा . हाँ गुरु ऐसा कराने में समर्थ होते हैं . यह सुनतेही मीरा दौङी दौङी रैदास जी के पास गयी . तब रैदास जी ने उसे आत्मकल्याण का एकमात्र हेतुक नाम ( ढाई अक्षर का महामन्त्र ) दिया और वास्तविक सत्य का बोध कराया..??
पायो जी मैंने नाम रतन धन पायो..??
मीरा का नाम आज नामभक्ति से ही अमर है . मीरा ने कोई शिष्य नहीं बनाया था और न हीं उनके कोई संतान हुयी थी जो आगे चलकर उनका नाम चलाती . मीरा ने संतो की संगति के बारे में कहा है कि एक ही बेल पर दोंनों तोमे
(कङवी लौकी जिसका महात्मा कमन्डल बना लेते है ) लगते हैं पर महात्मा के हाथ में पहुँच जाने पर उसकी इज्जत बढ जाती है . अन्यथा कङवी होने से वह गलियों में पङी रहती है . एक ही मिट्टी से बने दोंनों बर्तन होते हैं लेकिन संगति के अनुसार एक में माखन मिश्री रखे होते हैं और दूसरे में धोवी के घर गन्दे कपङे भीग रहे होते हैं

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मेरे बारे में

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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।