शनिवार, अप्रैल 10, 2010

शब्द का तात्पर्य है अक्षर यानी अविनाशी तत्व

शब्द क्या है ??
सबद सबद सब कोय कहे , वो है सबद विदेह .?
जिह्वा पर आवे नहीं , निरख परख कर लेह .?
शब्द का तात्पर्य है अक्षर यानी अविनाशी तत्व जो सदा रहने वाला है . जो जगत का कारण रूप है . वह शब्द ही सारी स्रष्टि लोक लोकांतरों तथा प्रथ्वी आकाश आदि का मिला हुआ गोल रूप सबसे घिरा हुआ आलोक प्रतीत होता है . वह ब्रह्माण्ड ही है
इसमें दो ध्रुव है . एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव के बीच एक ऐसा स्पंदन है . जिसमें अक्षर रूप ही स्पंदन है . यह शब्द दो प्रकार का है . वर्णात्मक , ध्वनात्मक .स्वांस लेने और छोङने में जो शब्द है वो वर्णात्मक है . ध्वनात्मक ध्वनिमय है .
घन्टा में हथौङा मारने से एक ध्वनि पैदा होती है . वैसी ही ध्वनि इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में लगातार समायी हुयी है . जो ह्रदय भाव से लगातार प्रतीत होती है ..यानी तत्व बोध का मार्ग रूप है . आकाश का गुण शब्द है . इसलिये यह शब्द सब
जगह आकाश होने के कारण समाया है . शब्द में सुरति के बांधने से सब प्रकार के ग्यान हो जाते हैं और यह अक्षर अविनाशी है जो कभी भी नष्ट नहीं होता है .शब्द के बारे में संतो ने भेद करके बताया कि एक शब्द घटाकाश में तथा एक आकाश में निवास करता है . जिसे निःअक्षर कहा गया है .
सबद सबद सब कोय कहे , वो है सबद विदेह .?
जिह्वा पर आवे नहीं , निरख परख कर लेह .?
शब्द का वाक्य सब लोग कहते हैं .परन्तु जो वास्तविक अक्षर है . वह विदेह है..यानी शरीर के आखिरी सिरे पर प्रकट हो रहा है . जिसको देख और पहचान ले..जो जिह्वा पर नहीं आता और न ही वह घट वाले शब्द जैसा है . वह प्राण के वाक्य से सूक्ष्म सर्वत्र समाया हुआ है . उसे ग्यानी ही जान सकता है . जिसे आँख खोलकर तथा कान के बिना प्रत्याहार से खुले रूप में ही प्रतीत होने वाला है . ऐसा वह
सुन्न में तथा सुन्न के पार स्थित है .
कुदरती काबे की तू महराब में सुन गौर से..आ रही है धुर से सदा तेरे बुलाने के लिये ?
क्यों भटकता फ़िर रहा तू ए तलाशे यार में रास्ता सहरग में है दिलवर पै जाने के लिये .?
कुदरत ने कावा रूपी शरीर दिया है . इसमें सुन . यदि तू उस शब्द को ध्यान से सुनेगा तो जो उस धुर से यहाँ तक जो ध्वनात्मक शब्द हो रहा है . वह तेरे ध्यान पर पङ जायेगा और यह भी महसूस होगा कि वह विदेह शब्द धागे की तरह सम्बन्ध में किये हुये है . वह बुला रहा है .उससे मिलकर खुदा से मिल जा . जो साहरग का मार्ग दसवें द्वार से होकर गया है . उसमें निर्भय होकर रम जा .रास्ता तय होने में कोई समय नहीं लगता .उस परमात्मा का साक्षात्कारप्रवेश होने पर क्षण में ही हो जाता है .जहाँ पाँच तत्वों की गाँठ बनती है वहाँ जीव में चेष्टा होने लगती है .
ब्रह्म में प्रीत न होकर बाह्य विषयों में आसक्ति है तभी तक विकल्प से उत्पन्न यह जगत दिखायी देता है . ब्रह्म में चित्त की स्थिरता होने पर केवल ब्रह्म ही दिखायी देता है .राग , द्वेश , काम ,क्रोध . लोभ , मोह , छह झूलों में झुलाकर ही ये कालक्रीङा कर रहा है .???

कोई टिप्पणी नहीं:

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।