रविवार, अक्तूबर 16, 2011

जस्सी दी ग्रेट 21



दूसरे दिन सुबह आठ बजे का समय था ।
प्रसून बराङ साहब की कोठी की सबसे ऊपरी छत पर था ।
उसकी उँगलियों में जलती हुयी सिगरेट फ़ँसी हुयी थी । जिससे निकलती धुँये की लकीरें सी ऊपर आसमान में किसी अज्ञात सफ़र पर जा रही थी । स्वयँ बराङ उसके आसपास टहल रहा था और जस्सी की बीमारी के बारे में कम, उससे जस्सी की शादी को लेकर ज्यादा फ़िक्रमन्द था ।
उसके कहने पर राजवीर ने जस्सी और उसके एकान्त साथ के बारे में कुरेद कुरेदकर पूछते हुये उसका रुख जानने की कोशिश की थी । जिस पर जस्सी सिर्फ़ शर्माकर रह गयी थी और.. मुझे कुछ नहीं पता..उन्हीं से पूछो ना .. कहकर भाग गयी थी ।
तब राजवीर के दिल में मीठी मीठी गुदगुदी सी हुयी । उन्हीं से पूछो ना..ये उन्हीं वर्ड कुछ न बताता हुआ भी सब कुछ बता गया । ओ रब्ब ! तेनूं लख लख शुक्र है, क्या राजकुमार भेजा था, उसकी कुङी के लिये । जैसी परी सी छोरी, वैसा ही सुन्दर वो राजकुमार ।
उसने बराङ साहब से उसी की शरारत के अन्दाज में बोला - बोलती है, उन्हीं से पूछो ना..
तब वे दोनों भरपूर हँस भी नहीं सके । हँसना चाहते थे, पर सिर्फ़ खुशी के आँसू ही निकले । पहली बार बराङ जैसे अभिमानी ने जाना, जिन्दगी में माधुर्य रस क्या होता है । पहली बार उसे लगा कि वह एक जवान बेटी का बाप है, और वह आँसू भरी आँखों वाला बबुला ख्यालों में ही बङे लाङ से अपनी लाङो को उसके प्रियतम की डोली में बैठाकर खुद भावपूर्ण विदाई कर रहा था । ऐसे कितने ही अग्रिम मधुर दृश्य उन सरदार पति पत्नी की आँखों के सामने तैर गये । और अब वह बिना देरी किये इस मामले में प्रसून से बात करने वाला था । पर प्रसून के सामने, उसके पास आते ही, उसके सारे भाव एकदम साबुन के झाग की तरह बैठ गये ।
प्रसून भावहीन सा सिर्फ़ विचारमग्न था । तब शादी वाली बात कहने की वह हिम्मत नहीं कर पाया और बात को शुरू करने के लिये जस्सी की स्थिति के बारे में पूछने लगा ।
जिसके बारे में उसने संक्षिप्त में इतना ही कहा - बराङ साहब ! मैं अपनी जान की कीमत पर भी जस्सी को ठीक करके रहूँगा । चाहे इस बाधा की जङ आकाश से लेकर पाताल तक क्यों न फ़ैली हो ।
वह मोटी अक्ल का सरदार इस बात का कोई अर्थ निकाल पाता । तब तक जस्सी नहाकर ऊपर आ गयी । ये देखते ही वह उन्हें एकान्त देने के लिये वह वहाँ से नीचे चला गया । छत पर टहलते हुये से प्रसून की निगाह बाहर कहीं निकलते सतीश पर पङी । उसके यहाँ आने का कारण सतीश ही था ।
जब जस्सी के घर में हुयी कानाफ़ूसी टायप बातें सतीश के भी कानों में आयी । तब उसने जस्सी की बात का कोई पता न होने का बहाना सा करते हुये.. हमारी तरफ़ के लोग आज के जमाने में भी एक ऐसे अदभुत योगी को जानते हैं । उसके बारे में ऐसा सुना है, वैसा सुना है, जैसी अकारण सी सामान्य चर्चा की तरह बात की ।
जिसे बराङ दम्पत्ति, खास राजवीर ने पूरी दिलचस्पी से, पूरे ध्यान से सुना । और वे भी जस्सी को अलग रखते हुये उससे प्रसून के बारे में अधिक से अधिक पूछने लगे । और आखिर में उन्होंने जानना चाहा कि क्या वह जरूरत होने पर उसे बुला भी सकता है या सिर्फ़ मुँहजबानी ही उसके बारे में जानता है?
वास्तव में यूपी की मानसिकता वाला सतीश एक तीर से दो शिकार कर रहा था । वह बखूबी जानता था कि प्रसून को बुलाने का मतलब था, उसको कम से कम पचास हजार की इनकम होना । जो उसको योगी के खोजने के लिये मिलनी थी । दूसरे वह अपने घर मुफ़्त में घूमने जाता । तीसरे उनका काम सफ़ल हो जाता, तो न सिर्फ़ बराङ दम्पत्ति बल्कि इस पंजाबी क्षेत्र में उसका रौब गालिब हो जाना था, और खुद उसकी नजर में ये बेवकूफ़ सरदार उसे झुककर सलाम करने वाले थे ।
हर चालाक आदमी की तरह उसने भी ऐसे ही ढेरों प्लान यकायक सोच लिये थे । जिसे उसके यूपी में ‘बहती गंगा में हाथ धोना’ कहा जाता था । पर वह सिर्फ़ हाथ धोकर ही नहीं रह जाना चाहता था । बल्कि पूरा का पूरा स्नान ही कर लेना चाहता था ।
लेकिन जब बराङ दम्पत्ति ने यकायक उससे बुलाने के बारे में कहा, तो मानों उसके हाथों से तोते ही उङ गये । वह जो कल्पना कर रहा था कि प्रसून को थोङी ही कोशिश से खोज लायेगा, अब उसे एकदम फ़ालतू की बात लगी ।
क्योंकि वह उसे सीधे सीधे नहीं जानता था । उसने किसी से सुना था । उस किसी ने भी किसी से सुना था, और उस किसी ने भी किसी और से बस सुना भर था । उसे जानता कोई भी न था ।
तब फ़िर, किसी ने किसी को फ़ोन किया । उस किसी ने और किसी को फ़ोन किया । पूरे दो दिन सतीश दिन भर बैठा हुआ अपने किसी को फ़ोन मिलाता रहा, और वह आगे अपने किसी को मिलाता रहा ।
तब सैकङों बार की बातचीत के बाद, उसे बहुत दूर के किसी से, प्रसून की कोठी का बस लैंडलाइन नम्बर ही हासिल हुआ, और उस पर भी जिस सख्त पर आंसरिग मशीन की तरह मधुर ध्वनि की लेडी आवाज सुनाई दी । उसने तो मानों उसके सब अरमानों पर पानी ही फ़ेर दिया ।
दूसरी तरफ़ से अल्ला बेबी बोल रही थी ।
उसने बहुत संक्षेप में बिना कुछ सुने कहा - सर, अभी घर पर नहीं है, सिक्स मन्थ बाद आयेंगे । तब आप फ़ोन करना ।
कहकर उसने बिना कुछ सुने फ़ोन काट दिया ।
सतीश की समस्त आशा ही खत्म हो गयी । अभिमानी बराङ को खामखाह ही यूँ लगा कि जैसे भरे बाजार में उसकी बेइज्जती हुयी हो ।
पर राजवीर समझदार थी । उसने दो तीन बार स्वयँ प्रयास किया । तब कहीं फ़ोन उठा और अल्ला बेबी से उसकी बात हुयी । प्रोफ़ेशनल लोगों से बात करने का तरीका समझ आया । तब बात बनी ।
उसने बिना किसी भूमिका के कहा - देखिये, प्लीज ये एक जिन्दगी मौत का सवाल समझो । मैं आपसे प्रसून जी का नम्बर नहीं माँग रही, कोई अन्य रिकवेस्ट नहीं कर रही । पर कोई बहुत इम्पोर्टेंट बात आने पर आप उनको डायरेक्ट कान्टेक्ट कर सकती हो, ये तो मैं जानती हूँ । तब यदि आप कहें, तो मैं अपनी बात कहूँ ।
दरअसल सतीश और राजवीर को दूसरी तरफ़ से बोलने वाली कोई युवा लेडी मालूम हो रही थी । जबकि वह महज तेरह वर्ष की अल्ला बेबी थी । जो बङी दक्षता से एक कुशल सेक्रेटरी की तरह ऐसी बातों को डील करती थी, और बहुत भावुक दिल भी थी । बस उसकी आवाज एकदम सपाट और भावरहित थी । उसने राजवीर के स्वर में दर्द महसूस किया, तो स्वतः ही उसकी आवाज अतिरिक्त मधुरता से भर उठी ।
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कहिये । वह नम्र होकर बोली - मैं आपकी हेल्प करने की पूरी कोशिश करूँगी ।
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देखिये । राजवीर बोली - मैं बहुत संक्षिप्त में बात कहूँगी, आपका कीमती समय खराब नहीं करूँगी । मेरे पास अदृश्य बाधा पीङा के अपनी बेटी के कुछ वीडियो क्लिप्स हैं । आप अपना ई मेल मुझे बता दें । मैं वे क्लिप्स और खास प्वाइंट आपको लिखकर भेज दूँगी । प्लीज आप उन्हें नजरअन्दाज न करना और किसी की जिन्दगी मौत का सवाल जानकर देखना, और फ़िर आपको मेरी बात सही लगे, और खुद विश्वास आये, तो ये बात आप अपने सर तक पहुँचा देना । मेरा मतलब मेरे मेल का मैटर आप उन्हें ई मेल कर देना । बाकी मेरी बेटी के भाग्य में जो होगा, जिन्दगी या मौत..ये फ़ैसला तो रब्ब के हाथ ही होता है ।
कहते कहते राजवीर कुछ भावुक सी हो गयी, और उसने सुबकते हुये स्वयँ ही फ़ोन रख दिया ।


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1 टिप्पणी:

Rakesh kumar yadav ने कहा…

rajeev ji kahani bahut badhiyan lagi,lekin 4,5 page padhane par dimag ki tuin. tuin. hone lagi thi.par kahani ka antim padav kabhi updeshatmak aur dimag par achchhi chhap chhodta hai.

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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।